अनुवाद - देवी नागरानी
गौरव बिस्तर पर करवट बदलता रहा। कोशिश के
बावजूद भी उसे नींद नहीं आई। साथ में लेटी सीमा ने फिर से जानने की नाकामियाब
कोशिश की।
‘आखिर क्या हुआ है ? इतने परेशान क्यों हो?’ पर गौरव ने बिना जवाब दिए
दूसरी तरफ पलटते हुए परमात्मा को प्रार्थना की कि मानसी ने उसके मुत्तल्लक फैसला लेते समय अपने पुराने स्वभाव से काम लिया
हो।
उसके सामने क्लास रूम का मंज़र उभर आया।
बीस बरसों की नौकरी में उसने ख़ुद को इतना बौना महसूस कभी नहीं किया । बोर्ड ऑफ एज्यूकेशन की ओर
से सेन्सर क्लासेज़ की परीक्षा ज़रूरी है। आज उसकी ड्यूटी रूम नं. 4 में रही। उस कमरे में ड्यूटी करने से हर एक इंचार्ज कतराता है। आजकल आम तौर पर शागिर्द अडिय़ल और गैर जिम्मेदार ही हैं, पर रूम नं. 4 का राकेश, कहकर तौबा कर लो! उसे नकल करने से
रोकने वाले का, वह घर-बार डाँवाडोल कर देता है
; इसलिए राकेश के मामले में देखा अनदेखा करना पड़ता है। गौरव ईमानदारी और
इन्तज़ाम का निबाह करने वाला है ; इसलिए घर से निकलते
वक्त भी सीमा ताक़ीद करती रही कि जानबूझकर विवेक के गुलाम बनकर अनचाही परेशानी न मोल लेना।
जैसे कि आज बोर्ड से चेकिंग के लिए खास पार्टी आ रही है, इसलिए प्रिन्सिपल ने जान-बूझकर उसकी ड्यूटी रूम नं. 4 में लगाई।
राकेश बेल बजने के 10 मिनट पश्चात् ही क्लास में आता है। आज भी ऐसा ही हुआ, इसलिए गौरव ने यह सोचकर कि और शागिर्द को लिखने में बाधा न हो, उसे बिना तलाशी के परीक्षा लिखने दी और उसने सोचा कि चोर को सुराग़ के साथ पकडऩे का मौका भी मिलेगा।
अभी पाँच मिनट भी नहीं
बीते कि चेकिंग पार्टी आ गई। उसके कमरे में पार्टी की कन्ट्रोलर मिस मानसी पहुँची, जो अपने सख्त मिज़ाज़ के लिए मशहूर है। वह अक्सर अख़बार और मैग़ज़ीन्स में मानसी के बारे में पढ़ता था
कि वह अपनी मेहनत और मज़बूती के बलबूते पर एक आम टीचर से इस अहम ओहदे पर पहुँची
है। पर यह जानकारी फ़क़त गौरव को है, कि मानसी के सख्त दिल होने का ज़िम्मेदार वह ख़ुद है। वह तो हँसती, खिलखिलाती मस्त रहने वाली ईज़ि गोइंग लड़की थी।
'टेक इट ईज़ि उसका तकिया क़लाम रहा। इस क़दर कि ज़िन्दगी के अहम संजीदा मोड़ पर भी उसने
किसी फ़ैसले को इतनी संजीदगी से नहीं लिया ।
जैसे बाज़ की तेज़ नज़र शिकार पर होती है, वैसे मानसी भी सीधे राकेश के टेबल के पास आ खड़ी हुई। राकेश बेफ़िक्र होकर
कागज़ पर से सवालों का जवाब ढूँढ़ रहा था। मानसी ने गुस्से से गौरव से कहा- ‘मास्टर साहब! इतनी गैर जिम्मेवारी से ड्यूटी दे रहे हो ? आपने इस लड़के की तलाशी ली थी ? तुरन्त इसकी तलाशी ली जाए।’ और फिर राकेश से मुखातिब होकर सख्ती से पूछा – ‘तुम्हारा नाम क्या है ?’
राकेश ने शरारती मुस्कान के साथ कहा – ‘533495’।
मानसी ने कहा- ‘अपना एडमिशन कार्ड दिखाओ।’
राकेश ने जैसे ही जेब से अपना कार्ड निकाला, तो साथ में एक काग़ज़ ज़मीन पर गिर पड़ा। जाँच करने पर उस कागज़ पर नकल
करने वाले मैटर की अनुक्रम सूची थी कि कौन-सा मैटर कहाँ है। इस बीच गौरव ने राकेश
की जेब से जवाबों के कुछ काग़ज़ निकाले, पर राकेश पर किसी
बात का असर ही नहीं हुआ। इत्मीनान से जेब से कंघी निकाली और मानसी की आँखों में
देखते हुए बालों को सँवारने लगा। उसे देखकर गौरव कुछ झेंप गए। मानसी को बीस साल
पुराने मंज़र याद आए जब गौरव भी ऐसे ही उसकी आँखों में देखकर बाल सँवारते हुए कहता था- ‘मानू बस ऐसे
ही उम्र भर तेरे नयनों में निहारता रहूँ...’ और मानसी गर्दन झुकाकर शर्माती थी। कुछ पलों में मानसी माज़ी की यादों से
बाहर आई, जब गौरव चिल्लाया-
‘अरे इसके जुराबों में रामपुरी चाकू!’
राकेश के खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई का केस
तैयार करने का फैसला प्रिन्सिपल और तमाम टीम ने लिया, शायद यह ज़रूरी था, पर जैसे ही इस गैर
जिम्मेवार कार्य के लिए गौरव को दोषी
ठहराते हुए उसके खिलाफ़ रिपोर्ट लिखने की शुरुआत मानसी ने की तो प्रिन्सिपल
ने हाथ जोड़कर बिनती की- ‘मैडम ! ये ना
इन्साफ़ी मत करना। गौरव इस स्कूल का निहायत ही ईमानदार और मेहनती शिक्षक है। मैंने
इस साल उसका नाम शिक्षक पुरस्कार के लिए प्रपोज़ किया है। आपकी रिपोर्ट, उसकी की गई सालों की सेवा को दाग़दार बना देगी। दरअसल राकेश बदला लेने के लिए
किसी भी हद तक गिर सकता है।’
‘हूँ’ मानसी ने सख़्त
लहज़े में कहा- ‘वो लड़का तो मेरे
खिलाफ़ भी कदम उठा सकता है, इसका मतलब यह तो
नहीं कि गुनहगार को गुनाह करने की छूट दे दी जाए, उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई ही
न की जाए ?’
इतने में ‘पार्ट ए’ पेपर के खत्म होने पर घण्टी बजी और गौरव भी फ़ारिग
होकर ऑफिस पहुँचा और अत्यन्त विनम्रता से कहा- ‘मैडम, आइ एम सॉरी’। दरअसल राकेश के क्लास में देर से
आने के कारण मेरे मन में ड्यूटी और परिवार के फर्ज़ के बीच में जंग रही और आप आ
गई। सीमा ने चलते-चलते भी कहा था- ‘बच्चों की क़सम, जानबूझकर कोई
परेशानी मोल न लेना।’
हालात देखते हुए मानसी ने फिलहाल काग़ज़ फाइल में रखे। वह एक बार फिर अतीत की ओर लौट गई। इस सीमा ने ही उसे गौरव से जुदा किया
था। कुछ दिन तो वह बेहद मायूस रही, पर जल्द ही ख़ुद को सँभालकर सारा ध्यान
कैरियर पर लगा दिया। सोचती रही- ‘आज सीमा के
एवज़ वही गौरव के बच्चों की माँ होती तो और क्या चाहती?’
उसे याद आया कि वह और गौरव एक ही स्कूल
में शिक्षक थे। हमखय़ाल होने के
नाते दोनों का उठना-बैठना साथ होता था। रिसेस के वक़्त, फ्री पीरियड में भी, जब दूसरे शिक्षक गैर ज़रूरी बातों में वक्त जाया करते थे तब ये दोनों चाय
पीते-पीते कभी अदब और कला के बारे में बातें, या बहस करते। किसी नई कहानी या नॉवल पढऩे के पश्चात् उसका पोस्ट मार्टम
करते, उसके किरदारों की
कमजोरियों और खूबियों पर राय पेश करते। गौरव हमेशा उन नाटकों पर अफ़सोस ज़ाहिर
करता ,जिसमें नायक अपनी नायिका को अज़ाबों की गर्दिश में छोड़कर, बुज़दिली से मैदान छोड़कर भाग जाते। बहस करते मानसी उसे समझाने की कोशिश
करती कि सच्चा प्यार करने वाले नायक के लिए , ज़रूर कोई ऐसी मजबूरी रही होगी और वह बेहद लाचारी की हालत में प्यार को क़ुर्बान करते हुए उस राह
से मुड़ जाता होगा । सच्चा प्यार तो अमर है, कभी ख़त्म होने वाला नहीं। बड़ी बात तो यह है कि शादी और प्यार का इतना
गहरा सम्बन्ध नहीं कि बिना उसके दीवानापन छा जाए। विपरीत इसके शादी के बाद फ़र्ज़ और हक़ों
की जंग में ग्रहस्ती की ओढ़ी हुई जिम्मेवारियों की वजह से प्यार का नफ़ीस जज़्बा क़ुर्बान हो जाता है।
‘पागल है वो नायक जो रात-दिन प्यार-प्यार
तो करते हैं, पर वक़्त आने पर
पीठ दिखाकर नायिका को सारी ज़िन्दगी रोने के लिए छोड़ जाते हैं...’ गौरव बेहद संजीदगी से कहता और मानसी खिलखिलाकर जवाब देती – ‘गौरव! टेक इट ईज़ि, क्यों सब कुछ सीरियसली लेते हो। कहानी के क़िरदार और हकीकी ज़िन्दगी में
बहुत फ़र्क है। लेखक कहानी लिखने के पहले अपने किरदार का अंत तय कर लेता है, जो कभी सुखांत तो कभी दुखांत होता है। पर असली जि़न्दगी में इन्सान हालात
के बस होकर सुलह करते हुए फ़ैसला करता है। ऐसे फ़ैसले अज़ाब देने वाले और दु;खदायी भी होते हैं, और न चाहते हुए भी ग़लतफ़हमियाँ पैदा करने वाले भी, और फिर दोनों के बीच में लम्बी खामोशी छा जाती थी ।’
उनकी गुफ़्तगू अब स्टाफ रूम तक सीमित न
रही थी । सुनसान वादियाँ, पहाड़ी-झरने, बहती नदियाँ, पेड़-पौधे उनकी मुलाक़ात के साक्षी रहे । ऐतिहासिक
इमारतों की सैर करते वो दोनों भी ख़ुद को किसी राजा रानी से कम नहीं समझते।
कभी-कभी मानसी गौरव से कहती- ‘अगर
तुम्हारे माँ-बाप हमारे मेल-मिलाप को बर्दाश्त न कर पाए तो ?’ गौरव बिना किसी सोच के बुलंद आवाज़ में मर्दानगी दिखाते कहता- ‘मानू दुनिया की कोई भी ताक़त तुझको मुझसे छीन नहीं सकती। मैं जल्द ही
पिताजी को मनाकर इस रिश्ते को सामाजिक मान्यता दिलाऊँगा। ’
पर, जब गौरव ने मानसी का जिक्र घर में किया तो गोया तूफ़ान उठ खड़ा हो गया।
गौरव को यह पता नहीं था कि घर में उसे एक धड़कते दिल वाला इन्सान न मानकर, एक ‘चीज़’ समझकर उसके पिता ने उसका सौदा एक साहूकार की बेटी से कर दिया था और उनसे
दहेज की बातचीत के आधार पर अपनी दो बेटियों के रिश्ते भी तय कर दिए थे। गौरव बहुत ही
तड़पा, पर उसके पिता ने
उसे लिखे हुए परचे दिखाते हुए कहा कि अगर वह इन्कार करेगा तो उसके माँ-बाप दोनों
आत्महत्या कर लेंगे । पागलपन की हदों से गुज़रता हुआ गौरव स्कूल से छुट्टी लेकर घर
बैठ गया, शायद मानसी से नज़र
मिलाने की उसमें क्षमता न थीं।
आखिर मानसी खुद उसके पास आई और गौरव ने
आज जैसी ही लाचारगी से कहा था- ‘मानू, मेरे मन में प्यार और फर्ज़ के बीच...।’
मानसी ने शांत मन से कहा – ‘टेक इट ईज़ि’ प्लीज। हम कोई कहानी के क़िरदार नहीं हैं। मेरी चिंता मत करो, मुझमें यह सदमा बर्दाश्त कर पाने का आत्मबल है।’
आज सीमा का नाम सुनते मानसी थोड़ी देर के
लिए डाँवाडोल हुई पर फिर सोचा बेचारी सीमा का क्या
दोष? यही कि वह एक
धनवान की बेटी है और मानसी की गरीब विधवा माँ में दहेज दे पाने की क्षमता नहीं थी। ये नहीं तो कोई और सीमा गौरव की जीवन संगिनी बन जाती थी । कोई भी
औरत किसी और का हक़ छीनकर कहाँ चैन पा सकेगी?
मानसी ने उस स्कूल से अपना तबादला करा
लिया था । पर सीमा के बारे में स्टाफ से जानकारी मिली थी कि वह निहायत कोमल हृदय
वाली नारी थी। उसे अगर पता होता तो वह ख़ुद ही मानसी के रास्ते से हट जाती। ख़ैर, ज़िन्दगी एक हक़ीकत है कोई कहानी नहीं। यह सोचकर मानसी ने गौरव के ख़िलाफ़
लिखी हुई रिपोर्ट फाड़ दी।
सम्पर्क:
9-डी, कार्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुम्बई 400050,
फोन: 9987928358, dnangrani@gmail.com
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