-डॉ. हरदीप कौर सन्धु
1
क्या था ज़माना!
बड़ा था परिवार,
एक ठिकाना ।
2
रात अँधेरी
दे रही है पहरा
बापू की खाँसी।
3
याद उनकी
हर पल है आती
बड़ा रुलाती।
4
याद किशोरी
मन खिड़की खोल
करे किलोल।
5
बिटियाँ होती
फूल- पँखुरियों पे
ओस के मोती।
6
माँ के आँगन
फूलों जैसी बिटियाँ
दिव्य सर्जना।
7
जन्मी बिटियाँ
खुशबू ही खुशबू,
आँगन खिला।
8
गोद में नन्हीं
माँ के आँचल में ज्यों
खिली चाँदनी।
9
बिटियाँ जन्मी
हृदय-धड़कन
ज्यों माँ की बनी।
10
नन्ही को पिता
जब गोद उठाए
दुनिया भूले।
11
कब है सोना
एक माँ ही समझे
शिशु का रोना।
12
शिशु जो रोए
माँ के मोम- दिल को
कुछ-कुछ हो।
13
फूल-पँखुरी
तितली से पँख- सी
नाज़ुक दोस्ती।
14
छोड़ें निशान
उखाड़ी हुई कील,
कड़वे शब्द।
15
ऊँचा पर्व
नीली अँखियों
वाली
झील निहारे।
16
घटा घूमती
यूँ घाघरा उठाए
जमीं चूमती।
17
शीत के दिनों
सर्प- सी फुफकारें
चलें हवाएँ।
18
खोई खुशबू
गुलाब पँखुरियाँ
अश्रु नहाई।
19
गूँगे जंगल
ज़ार-ज़ार रो रहे
जख्मी आँचल।
20
कहाँ से लाएँ?
धुआँ-धुआँ बादल
निर्मल जल ।
21
गंदला पानी
रो रही मछलियाँ
वे जाएँ कहाँ!
22
मौन मुकुल
आम पे बौर कहाँ
रोए कोयल।
23
फूलों के अंग
खुशबू ज्यों रहती
तू मेरे संग।
24
भरी है नमी
जो इन हवाओं में
रोया है कोई।
25
छलकी हँसी
ये गगन से जमीं
अपनी लगी ।
संपर्क: Dr
Hardeep Kaur Sandu, 28
Bellenden Close, Glenwood- 2768, NSW, (Sydney-Australia) Email- haikusyd@gmail.com
1 comment:
sabhi haiku ati sundar !!!!! badhai
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