उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 28, 2011

छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम


- पी.एन.सुब्रमणियन
छत्तीसगढ़ की राजधानी, रायपुर से लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में तीन नदियों का संगम है। महानदी (चित्रोत्पला), पैरी तथा सोंढुर। महानदी और पैरी दो अलग- अलग भागों से आकर यहां मिल रही है और एक डेल्टा सा बन गया है जबकि तीसरी नदी सोंढुर कुछ दूरी पर सीधे महानदी से मिल रही है। महानदी अथवा चित्रोत्पला को प्राचीन साहित्य में समस्त पापों का हरण करने वाली परमपुण्यदायिनी कहा गया है। महाभारत के भीष्म पर्व में तथा मत्स्य एवं ब्रह्म पुराण में भी चित्रोत्पला का उल्लेख है। इस नदी के उद्गम के बारे में जो बातें मिलती हैं उससे कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह नाम महानदी के लिए ही प्रयुक्त किया गया था। महानदी जैसे पापनाशिनी में दो अन्य नदियों के संगम के कारण यह एक परमपुण्य स्थली मानी जाती है। यही है छत्तीसगढ़ का प्रयाग। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम तट पर पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण आदि करते हुए लोगों को देखा जा सकता है। यहां एक प्राचीन नगर राजिम भी है जो महानदी के दोनों तरफ बसा है। उत्तर की ओर की बस्ती नवापारा (राजिम) कहलाती है जब कि दक्षिण की केवल राजिम। यह पूरा क्षेत्र पद्म क्षेत्र कहलाता है और एक अनुश्रुति के अनुसार पूर्व में यह पदमावतीपुरी कहलाता था। राजिम नामकरण के पीछे भी कई किस्से कहानियां हैं, जिसमें राजिम नाम की एक तेलिन से सम्बंधित जनश्रुति प्रमुख है। एक धार्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र के रूप में राजिम ख्याति प्राप्त है। यहां मंदिरों की बहुलता तथा वहां आयोजित होने वाले उत्सव आदि इस बात की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं।
यह पूरा क्षेत्र अपनी वन सम्पदा एवं कृषि उत्पाद के लिए सदियों से प्रख्यात रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए उस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन हेतु अंग्रेजों के शासन काल में बी.एन.आर रेलवे द्वारा रायपुर से धमतरी तथा उसी लाइन पर अभनपुर से नवापारा (राजिम) की एक नेरो गेज रेलवे लाइन प्रस्तावित की गयी। सन 1896 में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ा था अत: उस प्रस्तावित रेलमार्ग को स्थानीय लोगों को रोजगार दिलाने (या यों कहें कम खर्च में काम चलाने के लिए) राहत कार्य के अंतर्गत रेल लाइन का निर्माण प्रारंभ कर दिया गया। सन 1900 में रेल सेवा भी प्रारंभ हो गयी थी। राजिम के आगे गरियाबंद वाले रस्ते के जंगलों के भीतर भी रेल लाइन होने के प्रमाण मिलते हैं। कहीं कहीं पटरियां भी हमने देखी हैं परन्तु वह लाइन कहां तक गयी थी और कहां जाकर जुड़ती थी, इस बात से अवगत नहीं हो सके। विषयांतर हुआ जाता प्रतीत हो रहा है। राजिम के लिए रेलमार्ग के संदर्भवश रेलवे की कहानी संक्षेप में कह डाली। रायपुर से राजिम जाने के लिए सड़क मार्ग ही बेहतर है जबकि रेलमार्ग कष्टदायक।
बात तो राजिम की ही होनी थी। ऊपर हमने वहां मंदिरों की बहुलता का उल्लेख किया था। पुराने मंदिरों में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त राजीव लोचन का मंदिर है जिसके अहाते में ही कई और मंदिर हैं। राजेश्वर, दानेश्वर, तेलिन का मंदिर, उत्तर में सोमेश्वर, पूर्व में रामचंद्र तथा पश्चिम में कुलेश्वर, पंचेश्वर एवं भूतेश्वर। इन सभी मंदिरों में अग्रणी एवं प्राचीनतम है राजीव लोचन का मंदिर। इस मंदिर के स्थापत्य के बारे में यहां सूक्ष्म वर्णन मेरा उद्देश्य नहीं है अपितु संक्षेप में कुछ कहना सार्थक जान पड़ता है। स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर छत्तीसगढ़ के अन्य मंदिरों से भिन्न है एवं अपने आप में विलक्षण है। विद्वानों का मत है कि राजीव लोचन मंदिर का स्थापत्य दक्षिण भारतीय शैली से प्रभावित हुआ है। उदाहरण स्वरूप मंदिर के अहाते में प्रवेश हेतु गोपुरम सदृश प्रवेश द्वार, प्रदक्षिणा पथ, खम्बों में मानवाकार मूर्तियां आदि।
मंदिर का अहाता पूर्व से पश्चिम 147 फीट और उत्तर से दक्षिण 102 फीट है। मंदिर बीच में है। उत्तरी पूर्वी कोने पर बद्री नारायण, दक्षिणी पूर्वी कोने पर वामन मंदिर, दक्षिणी कोने पर वराह मंदिर तथा उत्तरी पश्चिमी कोने पर नृसिंह मंदिर बना हुआ है जिन्हें मूलत: बने राजीव लोचन मंदिर के सहायक देवालय कहा जा सकता है परन्तु उनका निर्माण कालांतर में ही हुआ है। राजीव लोचन मंदिर के पश्चिम में अहाते से लगभग 20 फीट दूर राजेश्वर मंदिर तथा दानेश्वर मंदिर हैं। दोनों ही शिव मंदिर हैं। परन्तु दानेश्वर मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है जहां नंदी मंडप बना हुआ है। राजिम में ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं। ये दोनों मंदिर भी राजीव लोचन मंदिर के समकालीन नहीं हैं परन्तु स्थापत्य में कुछ समानताएं हैं। इन्ही मंदिरों के आगे राजिम तेलिन का मंदिर है या यों कहें की सती स्मारक है।
इस मंदिर के महामंडप में बारह खम्बे हैं जिनमें बेहद कलात्मक शिल्प उकेरे गए है। गर्भ गृह का प्रवेश द्वार तो लाजवाब है। पत्थर के विशाल चौखट को बड़ी तल्लीनता से शिल्पियों ने अलंकृत किया है। चौखट के ऊपर शेषासायी विष्णु अद्भुत है। गर्भ गृह में प्रतिष्ठा शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुए महाविष्णु की है और यही राजीव लोचन कहलाते हैं। प्रतिदिन उन्हें प्रात: बालरूप में, मध्याह्न युवारूप में और सायं वृद्धरूप में श्रृंगारित किया जाता है परन्तु सिले सिलाये कपड़े पहनाने का रिवाज नहीं है। कपड़ों को मोड़ कर उढ़ा दिया जाता है यहां तक कि गांठ बांधना भी वर्जित है। एक बात और हमने जो जानी वह ये कि यहां के परंपरागत पुजारी क्षत्रिय हैं न कि ब्राह्मण।
कुछ लोगों में भ्रम है कि राजीव लोचन मंदिर भगवान श्री रामचन्द्रजी के लिए बना था। इसका एक कारण यह है कि महामंडप के पीछे की दीवार में जगपाल देव (14 वीं सदी) का एक शिलालेख जड़ा हुआ है जिसमे श्री रामचन्द्रजी के लिए एक नए मंदिर के निर्माण की बात कही गयी है। जगपाल देव कलचुरी शासक पृथ्वी देव द्वितीय का सामंत था। वास्तव में इस सामंत के द्वारा बनवाया गया रामचंद्र मंदिर पूर्व दिशा में अभी भी विद्यमान है। उसी शिलालेख के बगल में एक दूसरा शिलालेख भी है जिसमे राजीव लोचन मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। इस शिलालेख में कोई तिथि तो नहीं दी गयी है परन्तु राजा का नाम विलासतुंग बताया गया है। यह नल वंशी था जिनका बस्तर पर अधिपत्य रहा। यही नल वंश सिरपुर के सोमवंशियों का उत्तराधिकारी बना था। शिलालेख की लिपि एवं स्थापत्य के आधार पर राजीव लोचन मंदिर का निर्माण काल सन 700 ईसवी का मान लिया गया है। समय- समय पर विभिन्न शासकों द्वारा मंदिर के मूल संरचना में कुछ नए निर्माण आदि कर परिवर्तित/ संरक्षित किया जाता रहा है।
पैरी और महानदी के संगम पर नदी के बीच 9 वीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर (उत्पलेश्वर) है और यह मंदिर भी विलक्षण है। पिछले वर्षों में यहां का परम्परागत माघ पूर्णिमा मेला अब विशाल हो कर राजिम कुंभ कहलाने लगा है।
पता: 23, यशोदा परिसर, कोलार रोड, भोपाल मो. 09303106753
राजिम कुंभ
छत्तीसगढ़ में महानदी का वही स्थान है जो भारत में गंगा नदी का है। यहां का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है जो माघ मास की पूर्णिमा से शुरु होकर फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि तक चलता है। इस अवसर पर राजिम एक तीर्थ का रूप ले लेता है। यहां हजारों श्रद्धालु संगम स्नान करने और भगवान राजीव लोचन तथा कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने दूर- दूर से पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि वे राजिम की यात्रा नहीं कर लेते।
2005 से छत्तीसगढ़ शासन ने राजिम मेले के आयोजन को राजिम कुंभ का स्वरूप देकर लोकव्यापी बनाने की दिशा में एक नई पहल की है। यही वजह है कि राजिम कुंभ के अवसर पर पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। कुंभ में देश भर से पर्यटकों की भीड़ के साथ श्रद्धालु एवं साधु- महात्माओं के अखाड़े विशेष रूप से आमंत्रित रहते हैं।
राजिम कुंभ तक पहुंचने के लिए
हवाई मार्ग- रायपुर (45 किमी) निकटतम हवाई अड्डा है तथा दिल्ली, मुंबई, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम और चेन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग- रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है जो कि मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग पर स्थित है।
सड़क मार्ग- राजिम नियमित बस तथा टैक्सी सेवा से रायपुर व महासमुंद से जुड़ा हुआ है।
तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए कुंभ के अवसर पर संस्कृति विभाग विशेष रुप से व्यवस्था करता है। सामान्य पर्यटकों के लिए रायपुर में अनेक होटल उपलब्ध हैं।

2 comments:

Rahul Singh said...

ब्‍लॉग पर लेख पहले पढ़ चुका था. बढि़या और सामयिक प्रस्‍तुति. बधाई.

Dudhwa Live said...

very nice collection of our great traditions, thank you udanti