विशाल धनेश (Buceros bicornis) हिमालय की तलहटी, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी घाट में पाया जाता है। यह अरुणाचल प्रदेश और केरल का राज्य पक्षी है। पाँच फीट पंख फैलाव वाले विशाल धनेश का किसी टहनी पर उतरना एक अद्भुत (और शोर भरा) नज़ारा होता है।
धारीदार चोंच वाला धनेश (
Rhyticeros
undulatus), भूरा धनेश (Anorrhinus austeni) और
भूरी-गर्दन वाला धनेश (Aceros nipalensis) साइज़ में थोड़े
छोटे होते हैं, और ये केवल पूर्वोत्तर भारत में पाए जाते
हैं। उत्तराखंड का राजाजी राष्ट्रीय उद्यान पूर्वी चितकबरे धनेश (Anthracoceros
albirostris) को देखने के लिए एक शानदार जगह है। मालाबार भूरा धनेश
(Ocyceros griseus) का ज़ोरदार ‘ठहाका' पश्चिमी घाट में गूंजता है। सबसे छोटा धनेश, भारतीय
भूरा धनेश (Ocyceros birostris), भारत में थार रेगिस्तान को
छोड़कर हर जगह पाया जाता है और अक्सर शहरों में भी देखा जा सकता है- जैसे चेन्नई
में थियोसोफिकल सोसाइटी उद्यान।
धनेश की बड़ी और भारी चोंच कुछ बाधाएँ भी डालती हैं - संतुलन
के लिए, पहले दो कशेरुक (रीढ़
की हड्डियां) आपस में जुड़े होते हैं। नतीजा यह होता है कि धनेश अपना सिर ऊपर-नीचे
हिलाकर हामी तो भर सकता है, लेकिन ‘ना' करने (बाएँ-दाएँ सिर हिलाने) में इसे कठिनाई होती है। मध्य और दक्षिण
अमेरिका के टूकेन की भी चोंच बड़ी होती हैं। यह अभिसारी विकास का एक उदाहरण -
दोनों ही पक्षियों का भोजन एक-सा है।
लंबे वृक्षों को प्राथमिकता
दक्षिण पूर्व एशिया के विशाल तौलांग वृक्ष का ज़िक्र लोककथाओं
में इतना है कि इस वृक्ष को काटना वर्जित माना जाता है। यह हेलमेट धनेश (
शिकार के मारे
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दुर्भाग्य से,
अवैध कटाई के लिए नज़रें लंबे पेड़ों पर ही टिकी होती हैं। इसलिए
धनेश की संख्या में धीमी रफ्तार से कमी आई है, जैसा कि
पक्षी-गणना से पता चला है। रफ्तार धीमी इसलिए है कि ये पक्षी लंबे समय तक (40 साल
तक) जीवित रहते हैं। इनका बड़ा आकार इनके शिकार का कारण बनता है। सुमात्रा और
बोर्नियो के हेलमेट धनेश गंभीर संकट में हैं क्योंकि इनकी खोपड़ी पर हेलमेट जैसा
शिरस्त्राण, जिसे लाल हाथी दाँत कहा जाता है, बेशकीमती होता है। सौभाग्य से, विशाल धनेश का शिरस्त्राण
नक्काशी के लिए उपयुक्त नहीं है।
दक्षिण भारत में धनेश की आबादी बेहतर होती दिख रही है। मैसूर के दी नेचर कंज़र्वेशन फाउंडेशन ने डैटा की मदद से दिखाया है कि प्लांटेशन वाले जंगल धनेश की आबादी के लिए उतने अनुकूल नहीं हैं जितने प्राकृतिक रूप से विकसित वर्षावन हैं, हालांकि कभी-कभी सिल्वर ओक के गैर-स्थानीय पेड़ पर इनके घोंसले बने मिल जाते हैं। धनेश का परिस्थिति के हिसाब से ढलने का यह स्वभाव भोजन में भी दिख रहा है; वे अफ्रीकन अम्ब्रेला पेड़ के फलों को खाने लगे हैं। ये पेड़ हमारे कॉफी बागानों में छाया के लिए लगाए जाते हैं। (स्रोत फीचर्स)



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