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Nov 12, 2019

हाशिए पर प्रेम


हाशिए पर प्रेम

-डॉ. कविता भट्ट

एक शाम ;
आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को।
आज मेरी आँखों में-
वही शख़्स खोजता है-
प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?

2-अनिवार्य प्रश्न तुम

जीवन-प्रश्न पत्र
अनिवार्य प्रश्न तुम
परीक्षार्थी-सा विवश
है मेरा प्यार
समय भी कम है
उत्तीर्ण भी होना है
बताओ तो सही
कहाँ से प्रारम्भ करूँ ?

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