उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Oct 14, 2019

दीपोत्सव पर कुछ कविताएँ

दीपोत्सव पर कुछ कविताएँ 
-रामेश्वर काम्बोजहिमांशु
1-उजाले
उम्र भर रहते नहीं हैं
संग में सबके उजाले ।
हैसियत पहचानते हैं
ज़िन्दगी के दौर काले ।
तुम थके हो मान लेते-
हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का ।
रोकता रस्ता न कोई
प्यार का या बन्दगी का ।
हैं यहीं मुस्कान मन की
हैं यहीं पर दर्द-छाले।
तुम हँसोगे ये अँधेरा,
दूर होता जाएगा ।
तुम हँसोगे रास्ता भी
गाएगा, मुस्कराएगा ।
बैठना मत मोड़ पर तू
दीप देहरी पर जलाले ।

2- द्वारे दीपक जलाए रखना

जीवन के अँधेरों में
बाधा बने घेरों में
सभी द्वारे दीपक जलाए रखना ।
खुशियाँ ही जग को मिलें
मुस्कान के फूल खिलें
थोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना ।
इन नयनों की झील में
झिलमिल हर कन्दील में
प्यार के कुछ दीये , सजाए रखना ।
वही धरा का रोग हैं,
जो स्वार्थ-भरे लोग हैं
तनिक दूरी उनसे ,बनाए रखना ।

3-जलते ही जाना

जब तक बची दीप में बाती
जब तक बाकी तेल है।
तब तक जलते ही जाना है
साँसों का यह खेल है॥
हमने तो जीवन में सीखा
सदा अँधेरों से लड़ना ।
लड़ते-लड़ते गिरते–पड़ते
पथ में आगे ही बढ़ना।।
अनगिन उपहारों से बढ़कर
बहुत बड़ा उपहार मिला।
सोना चाँदी नहीं मिला पर
हमको सबका प्यार मिला॥
यही प्यार की दौलत अपने
सुख-दुख में भी साथ रही।
हमने भी भरपूर लुटाई
जितनी अपने हाथ रही॥
ज़हर पिलाने वाले हमको
ज़हर पिलाकर चले गए।
उनकी आँखो में खुशियाँ थीं
जिनसे हम थे छले गए॥
हमने फिर भी अमृत बाँटा
हमसे जितना हो पाया।
यही हमारी पूँजी जग में।
यही हमारा सरमाया
अनगिन पथिक कारवाँ के,
देखो कैसे खिसक गए हैं
रहबर हमें यहाँ लाके।

4- हर देहरी पर
यह ज़िन्दगी का कारवाँ,
इस तरह चलता रहे ।
हर देहरी पर अँधेरों में 
दिया जलता रहे ॥
आदमी है आदमी तब,
जब अँधेरों से लड़े ।
रोशनी बनकर सदा,
सुनसान पथ पर भी बढ़े ॥
भोर मन की हारती कब,
 घोर काली रात से ।
न आस्था के दीप डरते,
आँधियों के घात से ॥
मंज़िलें उसको मिलेंगी ,
जो निराशा से लड़े ,
चाँद- सूरज की तरह,
उगता रहे ढलता रहे ।
जब हम आगे बढ़ेंगे,
आस की बाती जलाकर।
तारों –भरा आसमाँ,
 उतर आएगा धरा पर ॥
आँख में आँसू नहीं
होंगे किसी भी द्वार के ।
और आँगन में खिलेंगे,
सुमन समता –प्यार के ॥
वैर के विद्वेष के कभी
शूल पथ में न उगें,
धरा से आकाश तक
बस प्यार ही पलता रहे ।

5- हरेक कोने से 

-रश्मि शर्मा
इस दीपावली
घर के हरेक कोने से 
धूल-कचरा निकाल बाहर करते वक़्त 
लगा
कि मन में जमे गर्द बुहारने को भी 
होता एक झाड़ू
तो हम सारी बेकार बातें , बुरी यादें 
और तकलीफ़देहपलों को 
एक साथ जमा कर 
कहीं बहुत दूर फेंक आते 
तब 
हमारे घर -सा ही 
जगमग करता हमारा मन भी 
नए दीयों की तरह 
नई भावनाओं, नई उमंगों की लड़ियाँ
हम सजाते 
ख़ुशियों की फुलझड़ियाँ छोड़
गमों को पटाखे की तरह तीली दिखा 
बहुत दूर भाग आते

इस दीपावली 
दराज़ के कोने में चिपकी 
तस्‍वीरों की तरह 
मन में छिपा बचपन खींच लाएँ
छत के जंगले पर कंदील टांग 
ताली बजा खुश हो जाएं
घी के दीये सी पवित्र मुस्‍कान चेहरे पर सजाएं
आओ, इस दीपावली 
हम अपने मन को भी धो-पोंछ कर चमका लें 
विगत के हर दर्द को 
अपने मन से बुहार लें 
हो जाएं उज्ज्वल, विकारहीन
किसी के लिए मन में 
कोई द्वेष न पालें
जगमग-जगमग दीप जला लें। 

3 comments:

प्रीति अग्रवाल said...

आदरणीय भाई साहब, सभी कविताएं बहुत सुंदर एवं शिक्षाप्रद! विशेषतः हर देहरी पर। आपको बधाई एवं दीवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
रश्मि जी आपकी कविता भी दीवाली का उज्ज्वल सन्देश देती हुई सुंदर रचना। आपको बधाई।

Dr. Shailja Saksena said...

आदरणीय काम्बोज जी की सभी कविताएँ मन के अँधेरे को दूर करने के उद्बोधन से भरी, उजालों की ओर ले जाने वाली रचनाएँ हैं, हार्दिक बधाई भाईसाहब! रश्मि शर्मा जी की रचना भी उजास के मीठे अहसास से भरी हुई है, उन्हें भी बधाई!

नीलाम्बरा.com said...

सुन्दर व प्रासंगिक सृजन हेतु हार्दिक बधाई।