ज्योति दुर्गा जब तू होगी
ज्योति दुर्गा जब तू होगी
-डॉ.ओमप्रकाश गुप्ता
द्वापर युग की बात है, कल की जैसे बात है.
धृतराष्ट्र दरबार सजा, दुर्योधन ने द्यूत रचा.
शकुनि ने माया फैलाई, द्रुपद सुता तब बुलबाई.
दुशासन करने निर्वस्त्र लगा, मानवता का हृदय फटा.
भीष्म पिता ने मोड़ी आँखे, द्रोण गुरु बगले झांकें.
मानवता का नाश हुआ, मानव पापों का दास हुआ.
कृष्णा ने केशव याद किये, प्रभु ने आकर चीर दिए.
द्रुपद सुता की लाज रखी, मानवता की रक्षा की.
द्वापर कब का बीत गया, दुर्योधन-दुशासन अब भी राजा.
नारी अब भी लज्जित होती, होता द्वापर फिर से ताजा.
अंतर अब केवल इतना है, कृष्ण नहीं अब आते हैं.
दुष्टों से मिलने में अब तो, भगवान स्वयं कतरातें हैं.
नारी, तू माता पुत्री, दुष्टों के पापों को पड़ता सहना.
पुरुष वर्ग धृतराष्ट्र हुआ, रक्षा कौन करे तेरी बहना.
अपनी रक्षा तुम स्वयं करो, माँ दुर्गा का रूप धरो.
लो खड्ग हाथ में तुम अपने, दुष्टों का संहार करो.
दुष्ट दृष्टि जो भी डाले, दृष्टिहीन कर दो उसको.
अपशब्द यदि कोई बोले, गिराहीन कर दो उसको.
हाथों से पापी स्पर्श करे, भुजाहीन कर दो उसको.
नारी तू बनकर चंडी, पुरुषत्वहीन कर दो उसको.
तेरे भीतर है शक्ति अपार, आह्वान करो उसका बहना.
युग-युग से अत्याचार सहे, और नहीं तुझको सहना.
माता बहना वह दिन दूर नहीं, तेरी पूजा फिर से होगी,
खोया सम्मान मिले तुझको, 'ज्योति' दुर्गा जब तू होगी.
सम्पर्कः ह्युस्टन, अमेरिका, 7१३४७१७८२२ (मोबाइल)
Labels: कविता, डॉ. ओमप्रकाश गुप्ता
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home