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Nov 25, 2016

नोटबंदी और आम आदमी...

            नोटबंदी और आम आदमी...
                                  - डॉ. रत्ना वर्मा
देश इस समय बेहद उतार- चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है। नोटबंदी ने जैसे सबको हिला कर रख दिया है।  काला धन कमाने वाले तो अपना काला सफेद करने की जुगत में दिन रात एक किए हुए हैंपर जिनके पास न काला है, न सफेद। वे भौचक हो इस परिवर्तन के दौर को देख रहे हैं। बैंक के आगे लाइन में खड़े होकर वे सोच रहे हैं कि मेरे पास तो ये हजार पाँच सौ के कुछ नोट हैं, उन्हें बदल कर अपनी रोजी रोटी का इंतजाम तो कर लूँ। नगद बेचने और नगद खरीदने वालों की मुसीबत बढ़ गई है। बाजार में सन्नाटा-सा पसर गया है। लोग खर्च के मामले में किफ़ायत बरत रहे हैं। वहीं चीज़ें खरीद रहे हैंजो जीने के लिए ज़रूरी हैं। व्यापारियों के लिए बेहद मुश्किल का समय है।
कुल मिलाकर पिछले कुछ दिन से जैसे लोगों की दुनिया ही सिमटकर नोट तक आकर रुक गई है। पर जिंदगी फिर भी नहीं रुकी है। पैसा नहीं है, पर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ तो किसी तरह हो ही जाता है। जिन्हें करोड़ों अरबों की शादी करनी है ; वे शादी भी कर रहे हैं। लेकिन मेहनत कर कमाने वाला आम आदमी, जिन्हें बेटी की शादी के लिए जेवर कपड़े लेने हैं, शादी की रस्में निभानी हैं ;वे चिंतित हैं कि जो पुराने नोट निकाल लिए हैं; उन्हें कैसे खर्च करें, जमा करने के लिए भी बैंक में लाइन लगाने का समय नहीं है और एक बार में दो- चार हजार निकालने से कैसे काम चलेगा, वह यह सोच- सोचकर वह कुढ़ रहा है कि फिर भी कुछ लोग कैसे अरबों -खरबों वाली शादी कर गए !!!
एक तरफ विपक्ष हल्ला मचा रहा है ;तो दूसरी तरफ काला धन छुपाकर रखने वाले बेचैन हैं कि कैसे सालों की इस मेहनत को पानी में बह जाने दें!!! चारो तरफ अफरा- तफरी मची है। काले को सफेद करने वाले, ऐसे लोगों को तलाश रहे हैं; जो उनका काला धन अपने अकाउण्ट में रख कर सफेद कर दें। खबर तो यह भी है कि इसके लिए वे तीस- पैतीस प्रतिशत तक कमीशन देने को तैयार हैं। नोटों से भरे ट्रक इधर से उधर दौड़ रहे हैं। ऐसे में कुछ ऐसे भी निकले ; जिन्होंने अपना काला धन चुपचाप सामने रख दिया कि टैक्स देने के बाद कम से कम आधा तो बचेगा। काश ऐसा सब कर पाते। 
आर्थिक विषयों के कुछ विशेषज्ञ ,जहाँ सरकार के इस कदम को शुभ संकेत मान रहे हैं; तो कुछ का मानना है कि फैसला सही है ;पर जल्दबाजी में बगैर तैयारी के ले लिया गया है, पहले जनता की परेशानियों से निपटने का इंतजाम कर लेना था, उसके बाद नोटबंदी जैसा कदम उठाना था। इसके साथ ही यह भी सवाल उठ रहा है कि हमारे देश में कैशलेस पेपेंट कितना सार्थक हो पागा। कितने लोग नेट बैंकिंग, वालेट मनी या ऑनलाइन पेमेंट कर पाएँगे। हिन्दुस्तान की सवा करोड़ जनता इसे कितनी जल्दी अपना पागी। तो एक जवाब इसका यह भी हो सकता है कि जब मोबाइल जैसा संचार साधन देखते- देखते देश के हर कोने में पहुँच गया है और क्या पढ़ा-लिखा आदमी ,क्या अनपढ़ सबको इसका इस्तेमाल करना आसानी से आ गया है, तो फिर कैशलेस पेमेंट तो पैसे का मामला है, इसे तो वह और भी जल्दी सीखेगा। भई मानव स्वभाव का विज्ञान तो यही कहता है!
तो सवाल तो कई उठ रहे हैं बावजूद इसके आम आदमी बैंकों में सुबह से शाम तक लाइन में खड़े होकर आपस में अपने आप को समझाने की कोशिश भी कर रहा है। सरकार ने यह बड़ा निर्णय लिया हैतो कुछ तो अच्छा ही होगा। कमा- कमाकर, गरीबों का खून चूसकर, जो धन्नासेठ बने बैठे हैं वे हमारी खून-पसीने की कमाई से ऐश कर रहे हैं। जरूर उनपर लगाम कसने की जुगत होगी यह सब कसरत। जाहिर है काले धन के कारण उनकी जिंदगी में जो कमियाँ उत्पन्न हो गईं हैं ,उनके सब दूर होने की एक उम्मीद बन गई है.... काला धन बाहर आगा ,तो जनता के हित में काम होंगे ,आम जनता की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, उसके स्वास्थ्य में, उसके जीवन स्तर में, उसके बच्चों की शिक्षा में, उसके गाँव की गली- मोहल्लों में, सड़क में, पानी में, खेती में, रोजगार में, खान- पान की वस्तुओं में, क्या इन सबमें कुछ सुधार होगा? और सबसे बड़ी बात यह कि बात-बात में हर विभाग में चपरासी से लेकर बाबू तक और उससे भी ऊपर बैठे आकाओं तक घूस लेने की अघोषित परम्परा का अंत होगा? इसमें कोई दो मत नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की दिशा में नोटबंदी एक सार्थक कदम हो सकता है यदि साथ- साथ कैंसर की तरह जड़ जमा चुके भष्टाचार को भी समाप्त किया जाए।
कुल मिलाकर हमें तो यही लगता है कि आम आदमी की यह सोच और सरकार की सोच यदि मिल जाए तो बदलाव आने में देर नहीं लगेगी। संभवत: इसी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर मोदी सरकार ने इतना बड़ा निर्णय लिया है।  यदि उसकी नियत में सच्चाई है, दम है तो जनता को थोड़ा सब्र से काम लेना होगा। इतिहास गवाह है कि जब भी कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करनी होती है तो इम्तिहान तो देना ही पड़ता है। यह हम सब के लिए इम्तिहान की घड़ी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार तो 80 प्रतिशत जनता नोटबंदी के पक्ष में बताई गई है।
फिर भी सवाल अभी भी वहीं का वहीं है  कि जो जनता हर प्रकार का कष्ट झेलती हुई उम्मीद की आस लगाए सरकार की ओर देख रही है, क्या उसके सपने साकार होंगे? क्या काला धन बाहर आएगा? क्या आम आदमी के शोषण से निचोड़ा गया धन जन-कल्याण कार्यों में लगेगा या फिर घूम-फिरकर कुबेरों के तहख़ाने में दफ़्न हो जाएगा ! जवाब तो एक ही होना चाहिए कि सरकार की भी मंशा अंतत: भ्रष्टाचार को नकेल डालने की ही होनी चाहिए उसे जनता के सपनों को साकार करना होगा, अन्यथा जनता को अपनी ताकत दिखाना आता है। 

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