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Feb 12, 2013

ढूँढ़ते रह जाएँगे



दूर्गा पूजक इस देश में...  ढूँढ़ते रह जाएँगे


- कैलाश शर्मा
आजकल देश के अधिकतर भाग में नवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है। आदिशक्ति दुर्गा का पूजा- अर्चन सभी जगह अपनी अपनी परंपरानुसार किया जा रहा है। नौ दिन दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है और सभी जगह वातावरण भक्तिमय हो जाता है। उत्तर भारत में दुर्गा अष्टमी को, जो नवरात्रों में आठवें दिन आती है, दुर्गा पूजा का समापन बहुत श्रद्धापूर्वक किया जाता है और छोटी बालिकाओं को बुलाकर उनको भोजन कराकर उनकी पूजा और चरण वंदन की जाती है। यह कन्या या कंजक-पूजन के नाम से भारत के अधिकतर भागों में जाना   जाता है।
नवरात्रि में दुर्गा पूजन आदिशक्ति के पूजन का प्रतीक है। भारतीय समाज में प्रारंभ से ही नारी को बहुत उच्च स्थान दिया गया है और उसे शक्ति और ममता का प्रतीक होने की वजह  से पूजनीय माना गया है; लेकिन आज के समाज में जब अपने चारों ओर दृष्टि डालते हैं; तो हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि क्या हम आज नारी को, चाहे वह माँ, बहन, पत्नी या पुत्री के रूप में हो, उनका उचित स्थान दे रहे हैं। क्या केवल वर्ष में दो बार नवरात्रि के अवसर पर नारी शक्ति का वंदन काफी है? क्यों नहीं हम इसे अपनी जीवन पद्धति और सामाजिक व्यवस्था का अंग बना पाते?
आज सुबह एक समाचार पढ़कर कि देश में लड़कियों की संख्या का अनुपात लड़कों की तुलना में निरंतर कम होता जा रहा है, मन क्षुब्ध हो गया। जिस लड़की को हम नवरात्रों में घरों से बुलाकर बड़े प्यार से लाते हैं और उनका पूजन करते हैं, वे ही लड़कियाँ नवरात्रों के बाद क्यों अवांछित हो जाती हैं? क्यों हम लड़की के जन्म पर खुश नहीं होते? क्यों प्रत्येक व्यक्ति परिवार के वारिस के रूप में एक पुत्र ही चाहता है? पुत्रियाँ हमारे पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की वारिस क्यों नहीं बन सकतीं?
पुत्र की चाह में कुछ पारिवार जन्म से पहले ही बच्चे का भ्रूण परीक्षण कराते हैं और अगर कन्या का परिणाम आता है, तो उसका गर्भपात कराके जन्म लेने से पहले ही उसकी हत्या कराने से भी नहीं हिचकिचाते। यह सही है कि कुछ कारण हमारी सामाजिक दुर्व्यवस्था, गलत रीति-रिवाज विकृत सोच आदि के कारण भी पैदा होते हैं। दहेज जैसी कुरीतियाँ, लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार और हमारे धार्मिक अन्धविश्वास भी इस सोच में आग में घी का काम करते हैं।  हमें अपनी सोच बदलनी होगी। शिक्षा के साथ आज इस विचारधारा में कुछ परिवर्तन आने लगे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। इस कुरीति के कारण और परिणाम एक अलग विशद विवेचन के विषय हैं, लेकिन यहाँ मुख्य उद्देश्य इस कुप्रथा पर सभी का ध्यान आकृष्ट करना है।
भ्रूण जाँच और उसके आधार पर कन्या भ्रूण की हत्या एक जघन्य कृत्य है, जिसको रोकने के लिए न केवल कठोर कानून की जरूरत है ; बल्कि हमें लड़की के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। अगर हम लड़कियों को भी वही सुविधाएँ दें, वही शिक्षा दें, वही प्रोत्साहन दें जो एक पुत्र को देते हैं, तो कोई कारण नहीं कि हमारी पुत्रियाँ परिवार और समाज में वही स्थान प्राप्त न कर सकें, जिसकी हम पुत्रों से आशा करते हैं।
यह कितनी बड़ी विडम्बना और हमारा दोगलापन है कि जिस लड़की को हम नवरात्रों में देवी का प्रतिरूप मानकर उसकी पूजा करते हैं, उसी लड़की से हम जन्म लेने का अधिकार छीन लेते हैं। अगर हम दुर्गा माता की सच्ची पूजा-अर्चना करना चाहते हैं तो हमें लड़कियों को वही प्यार और सम्मान देना होगा ; जो हम उन्हें नवरात्रों में कन्या-पूजन के समय देते हैं। अगर हम इसमें चूक गए; तो वह दिन दूर नहीं जब हम नवरात्रों में कन्या पूजन के लिए कन्या ढूँढ़ते रह जाएँगे।     
Email- kcsharma.sharma@gmail.com

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