संग्रहणीय अंक
नबम्बर अंक में दीपावली और सांस्कृतिक परंपराओं की शुरूआत जैसे जीवन में खुशी भर देता है। डॉ. परदेशीराम
वर्मा का संग्रहणीय आलेख-तीन दिन का महापर्व देवारी और लतीफ घोंघी तथा
ईश्वर शर्मा का जुगलबंदी भरा दीपावली अभिनंदन मन लुभावन है। डायबिटिक लोगों के लिए उपयोगी सेब और लक्ष्मी
वाहन उल्लू के बारे में बहुत अच्छी जानकारी इस अंक में पढऩे को मिली। श्री
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कालजयी कहानी गूँगी
और शशि पाधा का संस्मरण विदाई भी पठनीय है। छत्तीसगढ़ के गुमनाम और हिन्दी
साहित्य के इतिहास में उपेक्षित साहित्यकारों को रेखांकित करने वाली पुस्तक- छत्तीसगढ़
के साहित्य साधक- पर
प्रांजल कुमार की समीक्षा का प्रकाशन सराहनीय है। संग्रहणीय अंक के लिए मेरा
साधुवाद।
-प्रो. अश्विनी केशरवानी, ashwinikesharwani@gmail.com
पत्नी
को पगार
उदंती के दिसंबर अंक में अनकही स्तंभ के अंतगर्त पत्नी
को पगार शीर्षक से लिखी गई रत्ना जी की बातों से मैं पूरी तरह से
सहमत हूँ... भला 20 रुपये देने के बाद खाना, कपड़ा और
इलाज का खर्च कौन उठाएगा?
-ऋता शेखर
मधु
प्रभावशाली मुख्य पृष्ठ
जनवरी 2013 के अंक
को पढ़कर बेहद बहुत खुशी हुई। मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित वंदना परगनिहा द्वारा बनाई
पेंटिंग बहुत प्रभावशाली है, जिसमें एक युवा लड़की की अंतर्व्यथा स्पष्ट चित्रित है। इस अंक की सभी सामग्री
उत्कृष्ट है।
-डॉ. जेन्नी शबनम
जागृति आयेगी...
जनवरी के अनकही में लिखा आलेख विचारोत्तेजक है। ऐसे ही कलमें चलती रहें तो जागृति तो
आएगी हालाँकि बहुत ही धीमे। क्योंकि जो
कुछ दिख रहा है, उसके पीछे बहुत कुछ है। उसे सामने लाकर व्यर्थ करना होगा। इंटरनेट,
टीवी, फिल्म और शराब ये चार कारक मानसिकता को बिगाडऩे में अहम भूमिका निभा रहे हैं
। इंटरनेट पर महिलाओं के बेहद अश्लील फोटो देना, फिल्मकारों का फिल्म में बेशर्मी के साथ
अन्तरंग दृश्य देना, टीवी पर संस्कारहीन सामग्री का प्रसार... ये सब हमारे आसपास
एक अशिक्षित व अनैतिक वातावरण तैयार कर रहे हैं। समाज को स्वच्छ बनाने के लिये
केवल कानून को ही जिम्मेदार नही माना जा सकता उसके लिये पुरुषों के साथ महिलाओं का
भी दायित्व बनता है।
इसी अंक में कुदरत का करिश्मा में प्रकाशित आर्किड के
फूल सचमुच विस्मयकारी लगते हैं। मैंने इन फूलों के परागण के बारे में भी बड़ा रोचक
तथ्य पढ़ा था कि फूलों के रंग रूप और आकार के कारण ही परागण होता है। प्रकृति की
रचनाएं अद्भुत होती हैं।
कड़वा सच
नए वर्ष के पहले अंक में प्रकाशित कविता नारी कहाँ नहीं
हारी एक कड़वे सच को उजागर करती है। ये
रचना दिल को छू गई। काम्बोज जी को मेरी हार्दिक बधाई...
अच्छी लघु कथा
इस अंक में
प्रकाशित लघु कथा ‘ब़ेखबर’ बाल
मनोविज्ञान को रेखांकित करती एक बहुत अच्छी लघुकथा है। सुधा जी को इसके लिए बधाई।
दामिनी प्रकरण से ओत-प्रोत
जनवरी 2013 का नव वर्षांक प्राप्त हुआ। अनुमान को
प्रत्यक्ष करता यह अंक दामिनी प्रकरण से ओत-प्रोत रहा जो कि सर्वथा उचित ही था।
चयन अति उत्तम रहा। विचारात्तेजक संपादीकीय से आरंभ होकर माँ तुम सुनरही हो ना (गिरीजा
कुलश्रेष्ठ), नारी
कहाँ नहीं हारी (रामेश्वर काम्बोज हिमांशु), मुद्दा (लोकेन्द्र सिंह), विचार
(डॉ. जेन्नी शबनम), मंथन (डॉ. कौशलेन्द्र मिश्रा) सभी एक से बढ़कर एक, उच्च कोटि
की रचनाएँ है। प्रासंगिक होने से मूल्यवत्ता बढ़ गई है। यू तो उदंती एक पारिवारिक, सुसंस्कृत, शालीन
पत्रिका है किन्तु मंटो कि अमर कहानी (विवादास्पद रही भी) खोल दो का
पुनप्र्रस्तुतीकरण करके आपने जो साहस (बोल्डनेस) दिखाया वह बेमिसाल है। चरम तक
पहुँचते-पहुँचते जहाँ करूणा हाहाकार कर उठती है और स्वयं मानवीयता शर्मसार होकर
सिर से पैर तक पसीने में गर्ग हो उठती है।
ऐसी त्रासदी को प्रस्तुत करने के लिए आपको अनेकानेक साधुवाद। उदंती उत्कर्ष के नित
नये सोपान प्राप्त करे इन्ही शुभकामनाओं के साथ-
-डॉ.
सुधा गुप्ता, मेरठ
बेजोड़ पत्रिका
उदंती का इस बार का अंक देखा जो काफी रुचिकर लगा। दोहे, कविता, हाइकु, लघुकथा, व्यंग्य, कहानियाँ
सभी का समावेश करती पत्रिका अपने आप में बेजोड़ है ,जिसमे हर पाठक की रुचि का ध्यान
गया है और यही पत्रिका की विशेषता है।
-वंदना
गुप्ता, rosered8flower@gmail.com
उदंती से रू-ब-रू
वेब के माध्यम से पहली बार आपकी पत्रिका उदंती से
रू-ब-रू हुई। अंक बहुत अच्छा लगा... हार्दिक बधाई ....
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