बहुत कठिन है डगर पनघट की...
-डॉ. रत्ना वर्मा
प्यार
की कोई भाषा नहीं होती,
कोई परिभाषा नहीं होती, न इसे किसी देश-काल से
बाँधा जा सकता न किसी बंधन में। प्यार एक अनुभूति है, एक
अहसास है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। दिल के इस
रिश्ते में ऐसी ऊर्जा है, ऐसी ताकत है कि प्यार करने वाले
बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना करके भी उसे हासिल करना चाहते हैं । तभी तो कहा गया
है, 'बहुत कठिन है डगर पनघट की’ जो सुख देता है ; तो दु:ख भी कम
नहीं देता। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो प्यार की ऐसी मिसालें मिलेंगी ,जिसके
बारे में आज के प्यार करने वाले सोच भी नहीं सकते। चाहे वह मीरा का कृष्ण के प्रति
अलौकिक प्रेम हो, चाहे राधा का कृष्ण के प्रति समर्पण,
शीरीं-फरहाद, हीर-राझा, लैला-मज़नू,
सोहिनी-महिवाल जैसे प्रेम करने वालों ने प्रेम को ही भगवान माना और
उसकी पूजा की। उन्होंने प्रेम में ही जीवन का सत्य तलाशा और अमर हो गए। यदि कुछ
विशेष शब्दों में बाँधे बगैर प्यार के मायने बताने का प्रयास करें ,तो कह सकते है
कि प्यार ऐसा जीवनदायी अमृत है ; जो इन्सान को कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी ताकत
देता है , साथ ही हिंसा, क्रूरता और तनाव से दूर रखते हुए
जीवन को खूबसूरती से जीना सिखाता है।
लेकिन
उन वैज्ञानिकों को कैसे बताएँ कि भले ही वे गॉड पार्टिकल को खोज लेने का दावा कर
लें, पर प्यार के अहसास को समझ पाना आज भी उनके लिए रहस्य है। लेकिन फिर भी वैज्ञानिक
यह जानने में बरसों से लगे हुए हैं कि आखिर दो लोगों के बीच होने वाले इस अलौकिक
प्यार के पीछे कौन- सा रसायन काम करता है। अन्य खोजों की तरह वे प्यार के रहस्य के
भेद को भी जान लेना चाहते है, पर अफ़सोस उनके लिए इस रहस्य की गुत्थी को सुलझाना आसान
नहीं है ; क्योंकि प्यार करने वालों ने प्यार के बल पर यह जाना है कि प्यार का
दूसरा नाम है विश्वास। प्यार करने वाले एक-दूसरे पर जितना विश्वास करेंगे प्यार की
मिठास उतनी ही बढ़ेगी।
वैज्ञानिकों
ने अपने शोध से प्यार करने वालों के व्यवहार को देखकर इतना अवश्य जान लिया है कि
मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए प्यार जरूरी है। जिनके सच्चे मित्र
होते है, जो सच्चा प्यार करते हैं,
वे दूसरो की तुलना में अधिक सफल होते हैं और अधिक जीते हैं ।
चिकित्सा विज्ञान ने प्यार करने वालों का अध्ययन करके यह पाया है कि पहली नज़र में
प्यार के लिए जिम्मेदार शरीर की कुछ रासायनिक क्रियाएँ है। अनुसंधान कर्ताओं ने
मानव नसिका में एक विशिष्ट इंद्रिय का पता लगाया है; जिसके अनुसार प्यार करने
वालों के अंदर एक रासायनिक क्रिया होती है। अभी तक यह मान्यता थी कि सिर्फ महिलाओं
में छठी इंद्रिय होती है जबकि अनुसंधान बताता है कि यह छठी इंद्रिय स्त्री-पुरुष
दोनों में समान रूप से पायी जाई है। जो नाक में मौजूद होती है। खैर वैज्ञानिक चाहे
जो कर लें, प्यार की गहराई को नापना अभी बाकी है।
प्यार
के बारे में इतनी बातें करने के पीछे यह ऋतुराज वसंत है। जिसे प्यार के मौसम के
नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक समाज इसी मौसम में 14 फरवरी को वेलेंटाइन-डे मना कर अपने प्रेम
का इज़हार कर रहा है। परन्तु हम यह क्यों भूल जाते हैं कि भारतवर्ष में तो वंसत के
आगमन के साथ ही मदनोत्सव मनाने की प्राचीन पंरपरा रही है। फागुन के आगमन होते ही
चैत्र माह तक गीत-संगीत, नृत्य और रंगों की बौछार के साथ यह
पर्व कई रूपों में मनाया जाता था। कालिदास के मालविकाग्निमित्रं और हर्ष देव की रत्नावली
में मदनदेव की पूजा का उल्लेख है । मदनदेव की पूजा के बाद ही अशोक के फूल खिला
देने का अनुष्ठान होता था, जिसमें एक सुन्दरी नुपूर पहनकर अपने बाएँ पैर से अशोक
वृक्ष पर आघात करती थी । पैरों के कोमल आघात से अशोक वृक्ष प्रफुल्लित हो उठता था और
फूल खिल उठते थे। आज न मदनदेव की पूजा होती है,न कोई सुंदरी अशोक वृक्ष पर आघात
करती है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि फूल नहीं खिलते
प्रेम नहीं होता। यह जरूर है कि आज प्रेम को समझने और प्रेम करने के मायने बदल गये
है। प्रेम एक दिन का त्योहार हो गया है।
वेलेंटाइन-डे
इसी बदलते रूप का एक अंग है। अब जमाना उपहारों के जरिये प्यार का इज़हार करने का
है। वेलेंटाइन-डे तो जैसे अपने प्रिय को उपहार देने का दिन ही बन गया है। पहले जब
आम बौराते थे, टेसू के फूल खिलने लगते थे, कोयल कुहुकने लगती थी और
खेतों में पीले-पीले सरसों के फूल अपनी छटा बिखेरते थे , तो प्रेमी दिलों की
धड़कनें अपने आप समझ जाती थीं कि ऋतुराज वसंत ने दस्तक दे दी है और प्रिय से मिलने
की घड़ी आ गई है। लेकिन आज अपने दिल की बात प्रिय तक पहुँचाने के लिए बाज़ार एक
बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। आज का दिन नाच- गानों, पार्टी
और उपहारों के आदान-प्रदान तक सीमित होकर रह गया है। इस दिन बाजार लाल गुलाब,
तरह तरह के चॉकलेट और उपहारों से पट जाता है। मजबूरी भी है मॉल
संस्कृति में इज़हार करने के लिए और कुछ होता भी तो नहीं।
दिल की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आज लोग चाहे
जिस भी माध्यम का सहारा लें ,पर प्रेम हमेशा ही पवित्र समर्पण, त्याग और विश्वास का प्रतीक होता है।
प्रेम प्रतिदान माँगने का नाम नहीं।यदि यह सब नहीं है तो समझिए वह प्यार नहीं
है। जीवन की इस भागमभाग में मानव के पास
अपने विषय में सोचने का भी वक्त नहीं है। ऐसे में यदि हम एक दिन को भी प्रेम के
नाम पर समर्पित करते है तो हमारे लिए यह सौ दिन के बराबर होगा। चाहे वह
वेलेंटाइन-डे हो या वंसतोत्सव ,जरूरत प्रेम को समर्पित इन दिनों को,सही मायने में
समझने की है,मन-प्राण से जीने की और कोमल अहसास को जीवित रखने की।
1 comment:
मेरी मानसिक धारणा के मुताबिक प्रेम, आत्मियता की एक मौन अभिव्यक्ति ....बस और कुछ नहीं ! रही बात वेलेंटाइन डे मनाने कि तो यहाँ मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा ...कि किसी के पिता को अपने पिता के समान सम्मान देना तो उचित है, पर किसी के पिता को पिता कहकर सम्बोधित करना सर्वथा गलत !!! .....यह मेरी वक्तिगत सोच है, बाकी दुनिया क्या सोचती है कह नहीं सकता !!!
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