अलसीः एक
चमत्कारी दैविक भोजन
-डॉ. ओ.
पी वर्मा
'पहला
सुख निरोगी काया, सदियों
रहे यौवन की माया। आज हमारे वैज्ञानिकों व चिकित्सकों ने अपनी शोध से से
आहार-विहार, आयुवर्धक
औषधियों, वनस्पतियों
आदि की खोज कर ली है जिनके नियमित सेवन से हमारी उम्र 200-250 वर्ष या ज्यादा बढ़
सकती है और यौवन भी बना रहे। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ है। आपको याद होगा
प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि योग, तप, दैविक आहार व औषधियों के सेवन से सैकड़ों वर्ष
जीवित रहते थे ;
इसीलिए ऊपर मैंने पुरानी कहावत को नया रूप दिया है। ऐसा ही एक दैविक आयुवर्धक भोजन
है 'अलसी' जिसकी आज हम चर्चा
करेंगें।
पिछले कुछ समय से अलसी
के बारे में पत्रिकाओं, अखबारों, इंन्टरनेट, टी.वी. आदि पर बहुत
कुछ प्रकाशित होता रहा है। बड़े शहरों में अलसी के व्यंजन जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि बेचे जा रहे
हैं। दिल्ली से कोरोनरी बाईपास सर्जरी करवाकर लौटे एक रोगी ने मुझे बताया कि उसे
डॉक्टर त्रेहन ने नियमित अलसी खाने की सलाह दी है ,ताकि वह उच्च रक्तचाप व हृदय
रोग से मुक्त रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा देता है।
आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है। मैंने कहीं पढ़ा कि सचिन के बल्ले
को अलसी का तेल पिलाकर मजबूत बनाया जाता है तभी वो चौके-छक्के लगाता है और मास्टर
ब्लास्टर कहलाता है। आठवीं शताब्दी में फ्रांस के सम्राट चार्ल मेगने अलसी के
चमत्कारी गुणों से बहुत प्रभावित थे और चाहते थे कि उनकी प्रजा रोजाना अलसी खाए और
नीरोगी व दीर्घायु रहे ;इसलिए उन्होंने इसके लिए कड़े कानून बना दिए थे।
यह सब पढ़कर मेरी
जिज्ञासा बढ़ती रही और मैंने अलसी से सम्बन्धित जितने भी लेख उपलब्ध हो सके पढ़े व
अलसी पर हुई शोध के बारे में भी विस्तार से पढ़ा। मैं अत्यंत प्रभावित हुआ कि ये
अलसी जिसका हम नाम भी भूल गये थे, हमारे स्वास्थ्य के लिये इतनी ज्यादा लाभप्रद
है, जीने की
राह है, लाइफ
लाइन है। फिर क्या था, मैंने
स्वयं अलसी का सेवन शुरू किया और अपने रोगियों को भी अलसी खाने के लिए प्रेरित
करता रहा। कुछ महीने बाद मेरी जिन्दगी में आश्चर्यजनक बदलाव आना शुरु हुआ। मैं
अपार शक्ति व उत्साह का संचार अनुभव करने लगा, शरीर चुस्ती फुर्ती तथा गजब के आत्मविश्वास से
भर गया। तनाव, आलस्य
व क्रोध सब गायब हो चुके थे। मेरा उच्च रक्तचाप, डायबिटीज ठीक हो चुके थे। अब मैं मानसिक व
शारीरिक रूप से उतना ही शक्तिशाली महसूस कर रहा था जैसा कि 30 वर्ष पहले था।
अलसी पोषक
तत्वों का खजाना:
आइये, हम देखें कि इस
चमत्कारी, आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक
भोजन अलसी में ऐसी क्या खास बात है। अलसी का बोटेनिकल नाम लिनम यूजीटेटीसिमम् यानी
अति उपयोगी बीज है। अलसी के पौधे में नीले फूल आते हैं। अलसी का बीज तिल जैसा छोटा, भूरे या सुनहरे रंग का
व सतह चिकनी होती है। प्राचीनकाल से अलसी का प्रयोग भोजन, कपड़ा, वार्निश व रंग-रोगन
बनाने के लिए होता आया है। हमारी दादी माँ जब हमें फोड़ा-फुंसी हो जाती थी तो अलसी
की पुलटिस बनाकर बाँध देती थी। अलसी में मुख्य पौष्टिक तत्त्व ओमेगा-3 फेटी एसिड एल्फा-लिनोलेनिक
एसिड, लिगनेन, प्रोटीन व फाइबर होते
हैं। अलसी गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक फायदेमंद है। महात्मा गाँधीजी ने
स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं। उन्होंने अलसी पर भी शोध
किया, इसके
चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा है, 'जहाँ अलसी का सेवन
किया जाएगा, वह
समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।‘
आवश्यक
वसा अम्ल ओमेगा 3 व 6 की कहानी:
अलसी में लगभग 18-20 प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड ALA होते हैं। अलसी
ओमेगा-3
फैटी एसिड का पृथ्वी पर सबसे बड़ा स्रोत है। हमारे स्वास्थ्य पर अलसी के चमत्कारी
प्रभावों को भली भाँति समझने के लिए हमें ओमेगा-3 व ओमेगा-6 फेटी एसिड को विस्तार से समझना होगा। ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही हमारे शरीर के लिए
आवश्यक हैं यानी ये शरीर में नहीं बन सकते, हमें इन्हें भोजन द्वारा ही ग्रहण करना होता
है। ओमेगा-3
अलसी के अलावा मछली, अखरोट, चिया आदि में भी मिलते
हैं। मछली में DHA
और EPA नामक
ओमेगा-3
फेटी एसिड होते हैं, ये
अलसी में मौजूद ALA से शरीर में बन जाते हैं। ओमेगा-6 मूँगफली, सोयाबीन, सेफ्लावर, मकई आदि तेलों में
प्रचुर मात्रा में होता है। ओमेगा-3 हमारे शरीर के विभिन्न अंगों विशेष तौर पर
मस्तिष्क, स्नायुतंत्र
व आँखों के विकास व उनके सुचारू रूप से संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
हमारी कोशिकाओं की भित्तियाँ ओमेगा-3 युक्त फोस्फोलिपिड से बनती हैं। जब हमारे शरीर
में ओमेगा-3
की कमी हो जाती है तो ये भित्तियाँ मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरूप
ओमेगा-6
फैट या ट्रांस फैट से बनती है। और यहीं से हमारे शरीर में उच्च रक्तचाप, मधुमेह प्रकार-2, आर्थ्राइटिस, मोटापा, कैंसर, आदि बीमारियों की
शुरुआत हो जाती है।
शरीर में ओमेगा-3 की कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा
करने वाले ओमेगा-6
के ज्यादा हो जाने से प्रोस्टाग्लेन्डिन-ई 2 बनते हैं जो लिम्फोसाइट्स व माक्रोफाज को अपने
पास एकत्र करते हैं व फिर ये साइटोकाइन व कोक्स एंजाइम का निर्माण करते हैं। और
शरीर में इनफ्लेमेशन फैलाते हैं। मैं आपको सरल तरीके से समझाता हूँ। जिस प्रकार एक
अच्छी फिल्म बनाने के लिए नायक और खलनायक दोनों ही आवश्यक होते हैं। वैसे ही हमारे
शरीर के ठीक प्रकार से संचालन के लिये ओमेगा-3 व ओमेगा-6 दोनों ही बराबर यानी 1:1 अनुपात में चाहिए।
ओमेगा-3
नायक हैं तो ओमेगा-6
खलनायक हैं। ओमेगा-6
की मात्रा बढऩे से हमारे शरीर में इन्फ्लेमेशन फैलते है तो ओमेगा-3 इन्फ्लेमेशन दूर करते हैं, मरहम लगाते हैं।
ओमेगा-6
हीटर है तो ओमेगा-3
सावन की ठंडी हवा है। ओमेगा-6 हमें तनाव, सरदर्द, डिप्रेशन का शिकार बनाते हैं तो ओमेगा-3 हमारे मन को प्रसन्न रखते
है, क्रोध
भगाते हैं, स्मरण
शक्ति व बुद्धिमत्ता बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 आयु कम करते हैं। तो ओमेगा-3 आयु बढ़ाते हैं। ओमेगा-6 शरीर में रोग पैदा करते
हैं तो ओमेगा-3
हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। पिछले कुछ दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा बढ़ती जा रही
हैं और ओमेगा -3
की कमी होती जा रही है। मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा बेचे जा रहे फास्ट फूड व जंक
फूड ओमेगा-6
से भरपूर होते हैं। बाजार में उपलब्ध सभी रिफाइंड तेल भी ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर होते
हैं। हाल ही हुई शोध से पता चला है कि हमारे भोजन में ओमेगा-3 बहुत ही कम और ओमेगा-6 प्रचुर मात्रा में होने के
कारण ही हम उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी
कर सकते हैं। ये ओमेगा-3
ही अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा दिलाते हैं। स्त्रियों को संपूर्ण नारीत्व तभी
प्राप्त होता है जब उनके शरीर को पर्याप्त ओमेगा-3 मिलता रहता है।
हृदय और
परिवहन तंत्र के लिए गुणकारी:
अलसी हमारे रक्तचाप को
संतुलित रखती है। अलसी हमारे रक्त में अच्छे कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ाती है
और ट्राइग्लीसराइड्स व खराब कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करती है। अलसी दिल की
धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है ओर हृदयाघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों
से बचाव करती है। अलसी सेवन करने वालों को दिल की बीमारियों के कारण अकस्मात्
मृत्यु नहीं होती। हृदय की गति को नियंत्रित रखती है और वेन्ट्रीकुलर एरिद्मिया से
होने वाली मृत्यु दर को बहुत कम करती है।
कैंसर
रोधी लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत:
अलसी में दूसरा महत्त्वपूर्ण
पौष्टिक तत्त्व लिगनेन होता है। अलसी लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत हैं। अलसी में
लिगनेन अन्य खाद्यान्नों से कई सौ गुना ज्यादा होते हैं। लिगनेन एन्टीबैक्टीरियल, एन्टीवायरल, एन्टी फंगल और कैंसर
रोधी है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। लिगनेन कॉलेस्ट्रोल कम करता है और
ब्लड शुगर नियंत्रित रखता है। लिगनेन सचमुच एक सुपर स्टार पोषक तत्त्व है। लिगनेन
पेड़ पौधों में ईस्ट्रोजन यानी महिला हारमोन के तरह कार्य करता है। रजोनिवृत्ति के
बाद महिलाओं में ईस्ट्रोजन का स्त्राव कम हो जाता है और महिलाओं को कई परेशानियां
जैसे हॉट फ्लेशेज, ओस्टियोपोरोसिस
आदि होती हैं। लिगनेन इन सबमें बहुत राहत देता है।
लिगनेन मासिक धर्म सम्बन्धी
अनियमितताएँ ठीक करता है। लिगनेन हमें प्रोस्टेट, बच्चेदानी, स्तन, आंत, त्वचा आदि के कैंसर से बचाता हैं। यदि मां के
स्तन में दूध नहीं आ रहा है तो उसे अलसी खिलाने के 24 घंटे के भीतर स्तन में दूध आने लगता है। यदि
माँ अलसी का सेवन करती है तो उसके दूध में प्रर्याप्त ओमेगा-3 रहता है और बच्चा अधिक
बुद्धिमान व स्वस्थ पैदा होता है।
एड्स रिसर्च असिस्टेंस
इंस्टिट्यूट सन् 2002
से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही है और आश्चर्यजनक परिणाम
सामने आए हैं। ARAI
के निर्देशक डॉ. डेनियल देव्ज कहते हैं कि जल्दी ही लिगनेन एड्स का सस्ता, सरल और कारगर उपचार
साबित होने वाला है।
पाचन
तंत्र और फाइबर:
अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील (म्यूसिलेज) और अघुलनशील
दोनों ही तरह के फाइबर होते हैं अत: अलसी कब्जी, मस्से, बवासीर, भगंदर, डाइवर्टिकुलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और
आई.बी.एस. के रोगियों को बहुत राहत देती है। कब्जी में अलसी के सेवन से पहले ही
दिन से राहत मिल जाती है। हाल ही में हुई शोध से पता चला है कि कब्जी के लिए यह
अलसी इसबगोल की भुस्सी से भी ज्यादा लाभदायक है। अलसी पित्त की थैली में पथरी नहीं
बनने देती और यदि पथरियाँ बन भी चुकी हैं तो छोटी पथरियाँ तो घुलने लगती हैं।
प्राकृतिक
सौंदर्य प्रसाधन:
अलसी त्वचा की
बीमारियों जैसे मुहाँसे, एग्जीमा, दाद, खाज, खुजली, छाल रोग, बालों का सूखा व पतला
होना, बाल झडऩा
आदि में काफी असरदार है। अलसी में पाये जाने वाले ओमेगा-3 बालों को स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाते
हैं। अलसी खाने वालों को कभी भी रुसी नहीं होती है। अलसी त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, व गोरा बनाती है।
नाखूनों को स्वस्थ व सुंदर बनाती हैं। अलसी खाने व इसके तेल की मालिश से त्वचा के
दाग, धब्बे, झाइयाँ, झुर्रियाँ दूर होती
हैं। अलसी आपको युवा बनाये रखती है। आप अपनी उम्र से काफी वर्ष छोटे दिखते हो।
अलसी उम्र बढ़ाती हैं।
रोग
प्रतिरोधक क्षमता:
अलसी हमारी रोग
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। गठिया, गाउट, मोच आदि में अत्यंत लाभकारी है। ओमेगा-3 से भरपूर अलसी यकृत, गुर्दे, एडरीनल, थायरायड आदि ग्रंथियों
को ठीक से काम करने में सहायक होती है। अलसी ल्यूपस नेफ्राइटिस और अस्थमा में राहत
देती है।
मस्तिष्क
और स्नायु तंत्र के लिए दैविक भोजन:
अलसी हमारे मन को शांत
रखती है, इसके
सेवन से चित्त प्रसन्न रहता है, विचार अच्छे आते हैं, तनाव दूर होता है, बुद्धिमत्ता व स्मरण
शक्ति बढ़ती है तथा क्रोध नहीं आता है। अलसी के सेवन से मन और शरीर में एक दैविक
शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। अलसी एल्जीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, अवसाद, माइग्रेन, शीजोफ्रेनिया व
पार्किनसन्स आदि बीमारियों में बहुत लाभदायक है। गर्भावस्था में शिशु की आँखों व
मस्तिष्क के समुचित विकास के लिये ओमेगा-3 अत्यंत आवश्यक होते हैं।
ओमेगा-3 से हमारी नजर अच्छी हो
जाती है, रंग
ज्यादा स्पष्ट व उजले दिखाई देने लगते हैं। ऑखों में अलसी का तेल डालने से ऑखों का
सूखापन दूर होता है और काला पानी व मोतियाबिंद होने की संभावना भी बहुत कम होती
है। अलसी बढ़ी हुई प्रोस्टेट ग्रंथि, नामर्दी, शीघ्रपतन, नपुंसकता आदि के उपचार में महत्त्वपूर्ण योगदान
देती है।
डायबिटीज
और मोटापे पर अलसी का चमत्कार:
अलसी ब्लड शुगर
नियंत्रित रखती है, डायबिटीज
के शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों को कम करती हैं। चिकित्सक डायबिटीज के रोगी को
कम शर्करा और ज्यादा फाइबर लेने की सलाह देते हैं। अलसी व गेहूँ के मिश्रित आटे
में 50 प्रतिशत
कार्ब, 16 प्रतिशत
प्रोटीन व 20
प्रतिशत फाइबर होते हैं। यानी इसका ग्लायसीमिक इन्डेक्स गेहूँ के आटे से काफी कम
होता है। डायबिटीज के रोगी के लिए इस मिश्रित आटे से अच्छा भोजन क्या होगा ? मोटापे के रोगी को भी
बहुत फायदा होता है। अलसी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इस कारण अलसी सेवन से
लम्बे समय तक पेट भरा हुआ रहता है, देर तक भूख नहीं लगती है। यह बी.एम.आर. को
बढ़ाती है, शरीर
की चर्बी कम करती है और हम ज्यादा कैलोरी खर्च करते हैं।
डाक्टर
योहाना बुडविज का कैंसर रोधी प्रोटोकोल:
डॉ. योहाना बुडविज की
चर्चा के बिना अलसी का कोई भी लेख अधूरा रहता है। ये जर्मनी की विश्व विख्यात
कैंसर वैज्ञानिक थी, जिन्होंने
अलसी के तेल, पनीर, कैंसर रोधी फलों और
सब्जियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया। उन्होंने सभी प्रकार के कैंसर, गठिया, हृदयाघात, डायबिटीज आदि
बीमारियों का इलाज अलसी के तेल व पनीर से किया। इन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा
सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह
कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा, सिर्फ दुआ ही काम
आयेगी। अमेरीका में हुई शोध से पता चला है कि अलसी में 27 से ज्यादा कैंसर रोधी
तत्व होते हैं। डॉ. योहाना का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए 7 बार चयनित तो हुआ पर
उन्हें मिला नहीं क्योंकि उनके सामने शर्त रखी गई थी कि वे अलसी पनीर के साथ-साथ
कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी भी काम में लेंगी जो उन्हें मंजूर नहीं था।
बॉडी
बिल्डिंग के लिए भी नंबर वन:
अलसी बॉडी बिल्डर के
लिए आवश्यक व सम्पूर्ण आहार है। अलसी में 20 प्रतिशत आवश्यक अमाइनो एसिड युक्त अच्छे
प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन से ही मांस-पेशियां बढ़ती हैं। अलसी भरपूर शक्ति देती
है। कसरत के बाद मांस पेशियों की थकावट चुटकियों में ठीक हो जाती है। बॉडी
बिल्डिंग पत्रिका मसल मीडिया 2000 में प्रकाशित आलेख 'बेस्ट ऑफ द बेस्ट’ में अलसी
को बॉडी के लिए सुपर फूड माना गया है। मि. डेकन ने अपने आलेख 'ऑस्क द गुरु’ में अलसी को नम्बर वन
बॉडी बिल्डिंग फूड का खिताब दिया। अलसी हमारे शरीर को भरपूर ताकत प्रदान करती है, शरीर में नई ऊर्जा का
प्रवाह करती है तथा स्टेमिना बढ़ाती है।
सेवन का
तरीका:
हमें प्रतिदिन 30-60 ग्राम अलसी का सेवन
करना चाहिये। रोज 30-60 ग्राम अलसी को मिक्सी के चटनी जार में पीसकर
आटे में मिलाकर रोटी, परांठा
आदि बनाकर खायें। इसकी ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
अंकुरित अलसी का स्वाद तो कमाल का होता है। इसे आप सब्जी, दूध, दही, दाल, सलाद आदि में भी डाल
कर ले सकते हैं। बेसन में भी मिला कर
पकोड़े, कु़ी, गट्टे आदि व्यंजन बनाए
जा सकते हैं। इसे पीसकर नहीं रखना चाहिये। इसे रोजाना पीसें। ये पीसकर रखने से
खराब हो जाती है। बस 30
ग्राम का आंकड़ा याद रखें। अलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के जीवन में चमत्कारी
कायाकल्प हो जाता है।
संपर्क: वैभव हॉस्पिटल और रिसर्च इन्स्टिट्यूट, 7-बी-43, महावीर नगर तृतीय, कोटा राजस्थान। मो. ९४६०८१६३६०
1 comment:
Thanks dr. varma ji for such a very useful article. linen seed is useful in case of loss of libido due to diabetes. indeed its a wonderful food medicine for all age groups.
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