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Oct 1, 2025

दो लघुकथाएँ

- डॉ. शंकर पुणतांबेकर

1. आम आदमी

नाव चली जा रही थी।

मझधार में नाविक ने कहा, "नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।"

अब कम हो जाए तो कौन कम हो जाए? कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे: जो जानते थे उनके लिए भी तैरकर पार जाना खेल नहीं था।

नाव में सभी प्रकार के लोग थे- डॉक्टर, अफसर, वकील, व्यापारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता के अलावा आम आदमी भी। डॉक्टर, वकील, व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं।

उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला, "मैं जब डूबने को हो जाता हूँ तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूँ? "

जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा, "आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे।"

नेता ने कहा, "नहीं-नहीं ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे। मैं भाषण देता हूँ। तुम लोग भी उसके साथ सुनो।"

नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र, देश, इतिहास, परम्परा की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊँचा कर कहा, "हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे"….!

सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा।

2. और यह वही था

तस्कर ने जब सौगंध खाई कि अब मैं यह धंधा नहीं करूँगा तो इधर उसने उस पर तमंचा दाग दिया। तमंचा सिर्फ आवाज करके रह गया। तस्कर जिन्दा का जिन्दा।

यह देख उसने तमंचा देनेवाले की गर्दन पकड़ी।

उस गरीब ने बताया, " मेरी क्या गलती है! यह तो मैंने खासी भरोसे की जगह सरकारी आर्डनेंस फैक्टरी से चुराया था।"

उसने जाकर आर्डनेंस फैक्टरी के बड़े अफसर की गर्दन पकड़ी।

उसे अफसर ने बताया, "मेरा क्या दोष ! ऊपर आप अपने पिताजी को ही गर्दन पकड़िए।"

और उसने जाकर सचमुच अपने पिता की भी गर्दन पकड़ी। बोला, "आपकी वजह से देश की फैक्टरियों में ऐसे गलत तमंचे बन रहे हैं।"

इस पर पिता ने कहा, "तुमसे क्या छिपाऊँ बेटे! इसमें दोष मेरा है, पर पूरी तरह से मेरा ही नहीं, माल जुटानेवाले ठेकेदार का भी है। पर ठेकेदार की गर्दन न पकड़ना। हम कहीं के नहीं रहे जाएँगे।"

और पिता से जब उसने ठेकेदार का नाम पूछा,तो ज्ञात हुआ वह और कोई नहीं, वही तस्कर था, जिस पर उसने तमंचा दागा था।

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