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Oct 1, 2025

संस्मरणः पार्क की सुनहरी शाम

  - जैस्मिन जोविअल

हर रोज़ की तरह आज भी शाम को टहलते हुए मैं पार्क पहुँची।

ताज़ा हवा चेहरे को छू रही थी, लहराते पेड़ जैसे आपस में गुप्त बातें कर रहे हों, और हिलते पत्ते हवा के साथ कोई मधुर गीत गा रहे हों। दूर बच्चों की खिलखिलाहट वातावरण को और भी जीवंत बना रही थी। ढलते सूरज की लालिमा पेड़ों के बीच से छनकर ज़मीन पर सुनहरी परछाइयाँ बिखेर रही थी।

उस पल मुझे लगा- यह साधारण-सी शाम भी अपने भीतर कितनी कहानियाँ समेटे हुए है- शांति की, अपनेपन की, और उन छोटी-छोटी खुशियों की, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।

पार्क कई हिस्सों में बँटा हुआ है। दूर फ़ुटबॉल ग्राउंड में बच्चे पूरी उमंग में खेल रहे हैं और उनकी  माताएँ  किनारे बैठकर उन्हें प्रोत्साहित कर रही हैं। वॉलीबॉल का मैच भी चल रहा है- हर सर्व और स्मैश पर युवाओं की उमंग देखते ही बनती है। बीचों-बीच शेड एरिया में लोग योग और ध्यान में मग्न हैं। पास ही जॉगिंग ट्रैक पर लोग अपनी-अपनी गति से दौड़ रहे हैं, कानों में हेडफ़ोन, अपनी ही दुनिया में खोए हुए, जैसे हर किसी की ज़िंदगी अपनी अलग लय में बह रही हो।

फूलों से सजी क्यारियाँ, झाड़ियों में चहचहाते पक्षी, और हवा में घुली खुशबू इस पूरे माहौल को जीवंत बना देती हैं। यह पार्क सिर्फ़ हरियाली का नहीं, बल्कि जीवन के हर रंगों का संगम है- एक छोटी-सी दुनिया, जहाँ हर पल ज़िंदा है।

बेंच पर बैठे कुछ युवाओं की नज़रें केवल मोबाइल स्क्रीन पर लगी हैं। मैं सोचती हूँ- कौन इन्हें बताए कि यह पल, यह समा, यह समय कभी लौटकर नहीं आएगा। कहीं पढ़ा था- ' 'Enjoy little things', छोटी-छोटी खुशियों को जीना सीखो; लेकिन आज की दुनिया में मानो सारी खुशियाँ फ़ोन की चारदीवारी में बंद हो गई हैं।

फिर अचानक कुछ अद्भुत सुनाई दिया—एक प्यारी, मासूम हँसी। और उसके साथ एक मधुर गीत भी गूँज रहा था। वह आवाज़ जैसे पूरे पार्क को रंगों और खुशियों से भर रही थी। मैं उस आवाज़ की ओर बढ़ी और अपनी पसंदीदा जगह- झूले तक पहुँच गई।

आज झूलों पर लगभग 68 साल की आंटी झूल रही थीं। हल्की हवा में झूलते हुए उनका गुनगुनाना और मुस्कान, उम्र की किसी सीमा की परवाह किए बिना खुशी का एहसास दे रहा था। उनकी मुस्कान देखकर मेरे भीतर हल्की गर्मी फैल गई- जीवन की सारी उलझनें, सारी थकान, सारी फिक्र पलभर में गायब हो गईं।

मैंने सोचा—आज मैं झूला झूलूँगी। कोई देखे या न देखे, मैं अपने भीतर के बच्चे को जीऊँगी।

1 comment:

  1. Anonymous06 October

    पार्क की सुनहरी शाम का सजीव चित्रण करता बहुत सुंदर संस्मरण। बधाई जैस्मिन । सुदर्शन रत्नाकर

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