- सांत्वना श्रीकान्त
पिता की ढीली-सी
स्वेटर पहन मैं अब भी
महसूस कर रही हूँ उन्हें,
बिल्कुल नरम
उनके अंतस जैसी,
मानो हर धागे में गुँथा है
उनका निर्मल- तेजस् स्पर्श।
कभी थपकियाँ देता है,
तो कभी बचा लेता है मुझे
सर्द हवाओं के थपेड़ों से।
दरअसल,
आजकल नहीं आते वो
दबे पाँव यह देखने
कि-
मैं सोई हूँ या जाग गई हूँ
कोई बुरा सपना देखकर
या बुन रही हूँ अपने लिए
कोई सुनहरा ख्वाब।
मैं उनकी कोई कमीज
पहनकर तो
कभी कोई पुराना स्वेटर
या पुरानी घड़ी बाँधकर
उनके पास चली जाती हूँ।
या फिर दीवार पर टँगी
उनकी तस्वीर में
ढूँढ लेती हूँ उन्हें।
email - drsantwanapaysi276@gmail.com
No comments:
Post a Comment