कवि-प्रिया की कार जो थी, वो चोरी हो गई। कवि प्रिया रूठ गई। कवि घबरा गया, लेकिन कवि- प्रिया की प्रिय कार ढूँढकर लाना कोई आसान काम नहीं था।
हुआ यों कि हास्यास्पद रस के प्रसिद्ध कवि ने चार चुटकुलों की मदद से कवि सम्मेलनों से करोड़ों कूट लिये थे। कविता की दलाली में इतना पैसा है, यह कवि को इस दलदल में आकर ही पता चला। उसने नौकरी छोड़ी, छोकरी पकड़ी, उसे मंच के लटके- झटके सिखाए, चार चुटकुले पकड़ाए खुद को कवि प्रिया का मालिक घोषित किया । सुरीला कंठ , देह दर्शन की सुविधा कवि- प्रिया और कवि ने मिलकर अमेरिका, योरोप, तक कविता की कॉमेडी की धूम मचा दी, डॉलर, यूरो, पौंड आए। कोठी खड़ी की, महँगी कार ली फिर और पैसा आया और दूसरी महँगी कार कवि -प्रिया के लिए अलग से ली, और यही कार चोरी हो गई। आसमान फट गया, धरती पर भूकंप आ गया। कवि की महँगी कार की चोरी से दुनिया दहल गई। सुहागिनें विधवा विलाप करने लगीं। गन्धर्वों ने गान बंद कर दिए। सर्वत्र त्राहि -त्राहि होने लगी।
इस घटना पर कविता लिखी गई, कहानी रची गई, व्यंग्य उकेरे गए, मंच संचालकों ने इसी विषय पर कवि सम्मेलनों का आयोजन किया। कार्टून बने, कथा वाचक बाबाओं ने धार्मिक कथा- वाचन किया, मगर कार नहीं मिली। लोग कार के बहाने कवि- प्रिया पर लाइन मारने लगे। कवि उपेक्षा, ईर्ष्याग्रस्त होकर अवसाद में आते- आते बचे। वास्तव में लोग संवेदना के बहाने अपना सिट्टा सेंक रहे थें। कविता पीछे रह गई। महँगी कार और खूबसूरत मालकिन आगे हो गई। कवि तो खलासी हो गएँ। कार चोरी का शोक एक मौलिक शोक है जो अलग से चिंतन की मांग करता है। इस चिंतन के लिए विचार चाहिए और आजकल विचार की कविता कौन लिखता है सर।
कवि थाने में गया; लेकिन थाने के नियमों का पालन नहीं किया। थानेदार ने तहरीर लेने के पहले, कार का पंजीकरण, बीमा व खुद का लाइसेंस माँगा कवि के पास यह सब ना था। थानेदार ने कहा -आप की कार एक जगह पड़ी है आप में हिम्मत हो तो उठा लाओ। इतनी हिम्मत कवि में कहाँ । उसने तो विदेशी कार की कस्टम ड्यूटी भी नहीं चुकाई थी। एक राज्य के सर्वेसर्वा की मदद से कार का काम चल रहा था। मजमा जमा हुआ था ।
निराश हताश कवि ने स्थानीय पत्रकारों के कान में फूँक मारी। फूँक के साथ सजल डिनर के कारण अगले दिन दो कॉलम में कवि -प्रिया की कार चोरी का सचित्र समाचार छपा । चित्र कार का नहीं, कवि- प्रिया का छपा । यहीं से सब दुःख-सुख भी शुरू हुए।
कवि और कवि -प्रिया दोनों ही अपनी आलीशान कोठी में बैठकर चोरी की इस घटना पर टेसुए बहा रहे थे। अख़बार में छपते ही शोक व्यक्त करने वालों की लाइन लग गई। छोटे- मोटे कवि, मंच संचालक, मोहल्ले के स्थानीय नेता अड़ोसी- पडोसी कोरोना का डर भूलकर मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखकर आने- जाने लगे। कवि को लगा कार खोने के सुख भी है। इतने लोग तो मरे हुए की बैठक में भी जमा नहीं होते। उधर कवि का बेटा अपने दोस्तों को मम्मी की कार के किस्से सुना रहा था। कवि ने मन में सोचा कार का स्थान्तरण हुआ है, मन ने कहा, जो ले गया, उसके काम आ रही होगी, मगर महँगी कार का स्यापा भी महँगा होता है। एक बुड्ढी दादी तो कह गई - अन्याय से कमाया धन दस साल में नष्ट हो जाता है।
एक बुड्ढी कवयित्री उवाच-चोरी के माल से जो कमाया, वो चोरी हो गया बात ख़त्म।एक नेता जी बोले -आप कुछ खर्चा -वरचा करो, तो रैली निकालें, धरना दें। ज्ञापन दें। लेकिन कवि- प्रिया को ये रास्ते पसंद नहीं आए। जनवादियों ने किनारा कर लिया प्रगतिशील दूर भाग गए। मुसीबत में राम का नाम। हारे को हरी नाम। विरोधी कवि इस चोरी को कविता की चोरी से जोड़ने लगे। वैसे भी कवि प्रिया के पास कोई कविता ना थी, सब चोरी का माल था।
कवि ने सोचा इस कार- पुराण का एक ही रास्ता है, एक नई शानदार कार ली जाए और कवि- प्रिया को भेंट की जाए।
यह सोचकर कवि ने अपने विदेशी संपर्कों को खटखटाया, एक शानदार लेम्बोर्गिनी कार को खरीदने का फैसला किया मगर जब तक कार आती, कवि-प्रिया एक केबिनेट मंत्री की कार में बैठकर फुर्र हो गई। कवि आजकल कवि सम्मेलन हेतु दूसरी काव्य- प्रतिभा को खोजने- तराशने में व्यस्त हैं। कवि प्रिया खुद मंत्री बनने की फ़िराक में है। कार चोर खुद भी कवि बनने की फ़िराक में है। कार चोरी की यह दुर्घटना क्रन्तिकारी कविता पर बड़ी भारी पड़ी।
सम्पर्कः 86, लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002 , मो- 9414461207
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