स्कूल की मार्गदर्शक परामर्शदाता ने किंडर गार्डन के छोटे-छोटे बच्चों को चरित्र निर्माण का ज्ञान देते हुए समझाया कि तुम्हें डाँटे, तुम्हारे साथ कोई अनुचित हरकत करे जो तुम्हें अच्छी ना लगे या तुम्हें कोई शारीरिक चोट पहुँचाए, चाहे वे माँ-बाप ही क्यों ना हों, तो पुलिस को फोन करो या टीचर से बात करो। छोटे-छोटे बच्चों के दिमाग़ बड़ी-बड़ी बातों से बोझिल हो गए। विचार उलझे बालों से उलझ गए। बाल-बुद्धि ने यह ज्ञान अपने हिसाब से ग्रहण किया। पापा ने कल उसे थप्पड़ मारे थे। उसने टीचर को बता दिया। उसी का परिणाम- घर में हंगामा हो रहा है ।
सामाजिक कार्यकर्ता उनका एक-एक कमरा, ख़ास कर बच्चे का कमरा बार-बार देख रही है । ढूँढ रही है कि कहीं कोई ऐसा सुराग मिल जाए ताकि माँ-बाप दोषी साबित हो सकें। उसे परिवार से अलग करने की बात कही जा रही है और माँ दिल पर हाथ रख कर रो रही है। पापा भरी-भरी आँखों से अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश कर रहें हैं। कार्यकर्ता की बातें सुन बच्चा रुआँसा हो गया है। वह एक तरफ डरा-सहमा दुबका बैठा सोच रहा है कि शिकायत करने के बाद उसे माँ-बाप से अलग कर पोषक-गृह में भेज दिया जायेगा। ऐसा तो गाइडेंस कौंसलर ने नहीं बताया था। बाल-बुद्धि और उलझ गई। माँ-बाप से अलग होना पड़ेगा, सुनकर वह बेचैन हो गया। टीचर पर बहुत गुस्सा आया, मैडम ने और लोगों को क्यों बता दिया? उसके माँ-बाप तो बहुत अच्छे हैं। उसे बहुत प्यार करते हैं। वह उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा। वह कई दिनों से होमवर्क नहीं कर रहा था, तभी तो पापा ने गुस्से में एक थप्पड़ मारा था, उसने झूठ बोला था कि पापा ने कई थप्पड़ मारे थे और पापा रोज़ मारते हैं । वह तो चाहता था कि टीचर उसके पापा को डाँटे और पापा उसे होमवर्क के लिए न कहें।
माँ रोते-रोते बेहोश होने लगी। समाज सेविका पानी लेने दौड़ी। बच्चे को लगा कि उसकी माँ मर रही है। वह उसके बिना कैसे रहेगा? वह रात को कैसे सोएगा। उसकी माँ उसे हर बात पर चूमती है.. कहानियाँ सुनाती है। पापा उसे ढेरों खिलौने ले कर देते हैं। उसके साथ फिशिंग, बॉलिंग, साइकिलिंग के लिए जाते हैं।
वह ज़ोर -ज़ोर से रोता हुआ चिल्लाने लगा- ‘’मेरे मम्मी-पापा को छोड़ दें। मैंने टीचर से झूठ बोला था। मेरे पापा ने मुझे थप्पड़ नहीं मारा था’’- कहकर वह भाग कर माँ से लिपट गया।
समाज सेविका बच्चे का रोना देख पसीज गई। उसके अपने बच्चे उसकी आँखों के सामने घूम गए।
'बच्चे इस उम्र में परिणाम से बेखबर अनजाने में कई बार झूठ बोल देते हैं’- खुली फाइल को बंद करते हुए वह यह कह कर घर से बाहर निकल गई।
मर्यादा
'दादी जी, पापा रोज़ शराब पी कर, मेरी माँ को पीटते हैं। आप राम-राम करती रहती हैं, उन्हें रोकती क्यों नहीं?’- पोती ने नाराज़गी से पूछा।
'अरे तेरा बाप किसी की सुनता है? जो वह मेरे कहने पर बहू पर हाथ उठाने से रुक जाएगा और फिर पति-पत्नी का मामला है, मैं बीच में कैसे बोल सकती हूँ।‘
'आप जब अपने कमरे में मेरी माँ की शिकायतें लगाती हैं, तब तो वे आपकी सारी बातें सुनते हैं, और फिर पति-पत्नी की बात कहाँ रह गई? रोज़ तमाशा होता है।’
'वह काम से सीधा मेरे कमरे में आता है, तेरी माँ को जलन होती है, तुझे भी अपनी माँ की तरह, उसका, मेरे कमरे में आना अच्छा नहीं लगता।’
'दादी जी, आप पापा की माँ हैं, आप का हक़ सबसे पहले है, पर आप के कमरे से निकल कर, वे शराब पीते हैं और माँ से लड़ते-झगड़ते हैं, उन्हें पीटते हैं, यह ग़लत है। पापा को बोल दीजेगा कि अगर आज मेरी माँ पर उन्होंने हाथ उठाया, तो हम तीनों बहनें, माँ के साथ, खड़ी हो जाएँगी और ज़रूरत पड़ी तो पुलिस थाने भी चली जाएँगी, पर माँ को पिटने नहीं देंगी। ‘
'हे राम, यह सब दिखाने से पहले मुझे उठा क्यों नहीं लेता, मेरा बेटा बेचारा अकेला.. काश! मेरा पोता होता, यह दिन तो न देखना पड़ता, बाप की मर्यादा रखता।’
'आप किस मर्यादा की बात करती हैं... मर्यादा सिर्फ पुरुष की ही नहीं, औरत की भी होती है...।’
संपर्कः 101 Guymon Court, Morrisville, NC--27560, USA
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