नये
साल में कैलेण्डर की तारीख बदलते ही हर आने वाले साल को रस्मी तौर पर निभाते चले
जाना हम सबकी एक मानवीय कमज़ोरी बन गई है। बीते साल का लेखा-जोखा और नये साल की योजना बनाना ठीक है।
क्या खोया, क्या पाया की तर्ज पर साल भर को पीछे मुड़कर देखना
गलत नहीं है, पर इधर कुछ दशकों से बढ़ते बाजारवाद, इलेक्ट्रानिक मीडिया की आपसी प्रतिद्वंद्विता और
भाग-दौड़ भरी जिंदगी के बीच एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ ने नए साल के उत्सव को हमनें एक रस्मी दिन बना कर रख दिया है। पर क्या आगत का
स्वागत इस तरह किया जाता है?...
आजकल
लोग नव-वर्ष का स्वागत धूम- धड़ाका करते हुए पार्टी मनाकर करते हैं तो कुछ लोग
टी.वी. के आगे सितारों का नाच-गाना देखकर तो कुछ किसी खूबसूरत जगह घूमने जाकर नया
साल मनाते हैं। कुल मिलाकर छुट्टी मनाने का एक दिन बन गया है नये साल का पहला दिन।
इसी तरह एक नया संकल्प लेना भी फैशन बन गया है इन दिनों, भले ही वह संकल्प पहले दिन ही
धाराशायी होते नजर आता है।
जब
हम सुबह उठते हैं तो मन में यही भाव रहता है
कि आज का दिन अच्छा बीतेगा। पर क्या वास्तव में हमारे सोचे अनुसार हमारा दिन अच्छा
बीतता है? हम जैसे ही अखबार का पन्ना या टीवी के चैनल बदलते
हैं तो - हत्या बलात्कार लूट मार जैसी हिंसा से भरी खबरों से हमारा सामना होता
है। राजनीति की उठा -पटक, आरोप प्रत्यारोप और भ्रष्टाचार की खबरें मन को
खिन्न कर देती हैं। अब ऐसे में दिन भला कैसे खुशनुमा बने? ...जब बात नये साल के पहले दिन की हो तब तो इस तरह की खबरों को नज़रअंदाज़ कर देना ही ठीक लगता है, यही लगता है कि आज का दिन बगैर किसी तनाव के खुशी- खुशी बीत जाए तो आने
वाला पूरा साल बेहतर गुजरेगा।
प्रश्न
यह उठता है कि क्या सिर्फ ऐसा सोच लेने भर से हमारा साल अच्छा हो जाएगा? नहीं इसके लिए हमें अपनी आदतों
को, अपने काम करने के तरीकों को और अपने नकारात्मक विचारों
को बदलना होगा।
कुल
मिलाकर यही बात समझ में आती है कि जिस तरह हम नए साल के पहले दिन कुछ अच्छा काम
करने और कुछ बेहतर करते हुए किसी बुरी आदत या बुराई को छोडऩे का संकल्प लेते हैं
उसी तर्ज पर अपनी पूरी दिनचर्या के जीने के ढंग को बदलना होगा। लोग सवाल तब भी
उठते हैं कि सोचने और करने में बहुत अन्तर होता है। सोचना या सपने देखना बहुत आसान है उसे पूरा
करना मुश्किल।
ऐसे
समय में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की याद आती है ,जो हमेशा कहा करते हैं कि जीवन
में तरक्की के लिए सपनों की महत्ती आवश्यकता है- छात्र, अभिभावक
तथा शिक्षक सभी को सपने देखने चाहिए, सपने देखने वाला ही आगे
बढ़ता है ; क्योंकि सपनों से विचार बनते हैं और विचार से
क्रिया का जन्म होता है। क्रिया से व्यवहार बनता है और व्यवहार से इंसान की पहचान
होती है, जैसा इंसान होगा, वैसे ही
समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा।
कुल
जमा यही बात समझ में आती है कि आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें हर किसी को
बेहतर इंसान बनना होगा। जिंदगी में मन का सुकून हो शांति हो और प्रसन्नता हो तभी
जीवन के असली मायने है। पैसे के पीछे भागते हुए यह सब नहीं पाया जा सकता। लोग अपनी
लाइन बड़ी करने की बजाय दूसरों की लाइन छोटी करने में अपना समय ज़ाया करते हैं। काश हम सब यह समझ पाते कि अपने सपनों को अपनी
जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी दूसरे की ओर देखने की बजाय अपने काम को पूरी ईमानदारी से करने में ही सबका भला है। सिर्फ दोहन न करें, कुछ सर्जन भी करें। ताकि आने वाली पीढ़ी गर्व से अपने पूर्वजों का नाम
लेते हुए उनके नक्शे-कदम पर चलते हुए ,अपने सुनहरे सपनों को
पूरा करते हुए आगे बढ़ते जाएँ।
प्रकृति
ने हमें सोचने समझने और कुछ नया करने की जो ताकत दी है उसका सही उपयोग जिस दिन हम
करने लग जाएँगे उस दिन सुख की परिभाषा ही
बदल जाएगी। तो आइए क्यों न सुख की इस परिभाषा को बदलने का
प्रयास करें। अपने जीवन को, अपने आस- पास को खुशहाल और
खुशनुमा बनाते हुए आने वाले कल का स्वागत करें।
सभी
सुधी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ।
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डॉ. रत्ना वर्मा
1 comment:
ratna ji bahut achhi samagri hai ,abhi ek nazar dekhi hun ...phir padhti hun
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