इस बार
- बालकवि बैरागी
- बालकवि बैरागी
प्रेम का कोई पर्याय
या विकल्प होता
तो धरती पर कोई प्रेमी
बेचैन होकर
इस तरह नहीं रोता।
चुन लेता वह कोई विकल्प
अपना लेता दूसरा पर्याय
पर हाय!
वैसा हुआ नहीं।
जब भी आप प्रेम करेंगे
किसी देह या किसी शरीर से
तब फिर आप
प्रेम को बना लेंगे सापेक्ष
चाहेंगे कि उधर से भी
वैसा ही हो
जैसा कि हो रहा है इधर से।
और फिर
सब कुछ हो जाता है
सशर्त-
काटो पहाड़
पार करो उफनता दरिया
कच्चे मटकों के सहारे
खेलो अपनी जान पर
याने कि आठों पहर चढ़े रहो
किसी मचान पर।
कहते रहो कि-
'मैंने या उसने किया नहीं है
यह तो बस हो गया है
क्योंकि यह किया नहीं जाता
हो जाता है
इसमें करने वाले का
सब कुछ खो जाता है'।।
पर जब यह नहीं होता
जिस्मानी
किसी देह या शरीर से
तो फिर पूछ देखो किसी
मीरा या कबीर से
किसी रूहानी संत या फकीर से
वे कहेंगे-
'प्रेम गली अति सांकरी
या में दो न समायÓ
या
'ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पण्डत होय'
ऐसे में बदल जाता है
सारा व्याकरण
उलट जाते हैं सारे समीकरण
मार्ग हो जाता है एकांगी
फिर मार्ग- मार्ग नहीं
पंथ हो जाता है
वासना का वीरेन्द्र
संसारी संत हो जाता है।
बे मौसम
चटक जाता है चम्पा
महक पड़ता है मोगरा
खिलखिला पड़ती है चमेली
जयवंती हो जाती है जुही
पलकें खुल जाती है पारिजात की
कल्पवृक्ष की कोटरों से
झर पड़ता है कोई झरना
सार्थक हो जाती है सांसें
मन में मचल जाता है
एक नया मनोज
और गाने लगता है
अब क्या डरना और क्या मरना?
आयु की मटकी में से
टपक कर बिखरने लगता है
मन का माखन
अपने आप लुटने लगता है
आत्मा का अनुराग।।
इस एकांगी- अनंत पंथ पर
चलकर देखो- मचल कर देखो
एकाध बार ऐसी पहल कर देखो
अभी बहुत उम्र बाकी है
जरा सरल हो जाओ
सार्थक के साथ- साथ
सफल हो जाओ
बनालो खुद को एक द्वीप
जरा सजल हो जाओ
प्रेमी बनकर पछाड़ खाने से
बेहतर है
बस प्रेमल हो जाओ।।
बहुत आसान है प्रेमी होना
पर प्रेमल होना बहुत कठिन है
आसान नहीं है
अनजान वीराने में
वनफूल की तरह खिलना
और अनिश्चित जीवन
के अंधेरे में
आत्मदीप होकर जलना
कोई छोटा अवदान नहीं है।।
प्रेमी एक का होता है
'सिर्फ' होता है 'केवल' होता है
पर प्रेमल
हर अंधे आकाश में
करोड़ों सूरज- लाखों चांद
और हजारों झिलमिल
नये नक्षत्र बोता है।।
दीपावलियों पर
पूजा- पाठ, ताश- जुआ
न जाने क्या- क्या करते हो
अब के थोड़ा खुद के भीतर भी
उतर के देखो
करने जैसा एक काम ये भी है
इस बार ऐसा भी कर के देखो
काली कलूटी अमावस भी
पूजा की थाली हो जाएगी
दीवाली सचमुच दीवाली हो जाएगी
जिन्दगी एक हाथ से
बजने वाली ताली हो जाएगी।।
पता: धापू धाम, 169 डॉ. पुखराज वर्मा मार्ग,
नीमच (मप्र) 458 441
मोबाइल: 9425106136
या विकल्प होता
तो धरती पर कोई प्रेमी
बेचैन होकर
इस तरह नहीं रोता।
चुन लेता वह कोई विकल्प
अपना लेता दूसरा पर्याय
पर हाय!
वैसा हुआ नहीं।
जब भी आप प्रेम करेंगे
किसी देह या किसी शरीर से
तब फिर आप
प्रेम को बना लेंगे सापेक्ष
चाहेंगे कि उधर से भी
वैसा ही हो
जैसा कि हो रहा है इधर से।
और फिर
सब कुछ हो जाता है
सशर्त-
काटो पहाड़
पार करो उफनता दरिया
कच्चे मटकों के सहारे
खेलो अपनी जान पर
याने कि आठों पहर चढ़े रहो
किसी मचान पर।
कहते रहो कि-
'मैंने या उसने किया नहीं है
यह तो बस हो गया है
क्योंकि यह किया नहीं जाता
हो जाता है
इसमें करने वाले का
सब कुछ खो जाता है'।।
पर जब यह नहीं होता
जिस्मानी
किसी देह या शरीर से
तो फिर पूछ देखो किसी
मीरा या कबीर से
किसी रूहानी संत या फकीर से
वे कहेंगे-
'प्रेम गली अति सांकरी
या में दो न समायÓ
या
'ढाई आखर प्रेम का
पढ़े सो पण्डत होय'
ऐसे में बदल जाता है
सारा व्याकरण
उलट जाते हैं सारे समीकरण
मार्ग हो जाता है एकांगी
फिर मार्ग- मार्ग नहीं
पंथ हो जाता है
वासना का वीरेन्द्र
संसारी संत हो जाता है।
बे मौसम
चटक जाता है चम्पा
महक पड़ता है मोगरा
खिलखिला पड़ती है चमेली
जयवंती हो जाती है जुही
पलकें खुल जाती है पारिजात की
कल्पवृक्ष की कोटरों से
झर पड़ता है कोई झरना
सार्थक हो जाती है सांसें
मन में मचल जाता है
एक नया मनोज
और गाने लगता है
अब क्या डरना और क्या मरना?
आयु की मटकी में से
टपक कर बिखरने लगता है
मन का माखन
अपने आप लुटने लगता है
आत्मा का अनुराग।।
इस एकांगी- अनंत पंथ पर
चलकर देखो- मचल कर देखो
एकाध बार ऐसी पहल कर देखो
अभी बहुत उम्र बाकी है
जरा सरल हो जाओ
सार्थक के साथ- साथ
सफल हो जाओ
बनालो खुद को एक द्वीप
जरा सजल हो जाओ
प्रेमी बनकर पछाड़ खाने से
बेहतर है
बस प्रेमल हो जाओ।।
बहुत आसान है प्रेमी होना
पर प्रेमल होना बहुत कठिन है
आसान नहीं है
अनजान वीराने में
वनफूल की तरह खिलना
और अनिश्चित जीवन
के अंधेरे में
आत्मदीप होकर जलना
कोई छोटा अवदान नहीं है।।
प्रेमी एक का होता है
'सिर्फ' होता है 'केवल' होता है
पर प्रेमल
हर अंधे आकाश में
करोड़ों सूरज- लाखों चांद
और हजारों झिलमिल
नये नक्षत्र बोता है।।
दीपावलियों पर
पूजा- पाठ, ताश- जुआ
न जाने क्या- क्या करते हो
अब के थोड़ा खुद के भीतर भी
उतर के देखो
करने जैसा एक काम ये भी है
इस बार ऐसा भी कर के देखो
काली कलूटी अमावस भी
पूजा की थाली हो जाएगी
दीवाली सचमुच दीवाली हो जाएगी
जिन्दगी एक हाथ से
बजने वाली ताली हो जाएगी।।
पता: धापू धाम, 169 डॉ. पुखराज वर्मा मार्ग,
नीमच (मप्र) 458 441
मोबाइल: 9425106136
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