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May 1, 2023

चोकाः नदी


 - भीकम सिंह

नदी-1

नदियाँ सभी

जहाँ तक भी गईं

भँवर सारे

उसके साथ गए

फिर कौन है

जो नदियों की सारी

हँसी खा गया

बड़े सिन्धु के बीच

चर्चा ज्यों हुई

शहरी काफिलों पे

रुकी शक की सुई।

नदी-2

नदी बूढ़ी है

हौसले को हारी-सी

मैदान खोले

जंग की तैयारी-सी

निर्बल तट

उदासियों की बालू

बेच-बेचके

पत्थर तराशे हैं

चला-चलाके

दिल पर आरी-सी

जागी है खुद्दारी-सी।

नदी-3

नावें थकीं-सी

घाटों पे बँधी हुई

तेरे दुःख से

दुःखी हुई हैं नदी!

तुझ पे जुल्म

बढ़ता देखकर

सभी ने जैसे

अन्याय के विरुद्ध

हड़ताल की

तेरा पाट लौटेगा

केवट ने बात की।

नदी-4

साल वृक्षों से

लिपटकर रोई

पीड़ित नदी

दूभर हुआ मेरा

इस समय

जिन्दा बने रहना

किससे कहूँ

तुमसे क्या छिपाना

खोजे हैं मैंने

जमीन में सूराख

आती सीता की याद।

नदी-5

बाढ़ ओढ़के

खींच लेती है नदी

तट की बाँहें

गुजरे समय की,

याद करके

कुछ भूली- सी राहें

छोड़के आई

सावन में बहाके

तोड़ी गई वो

तमाम वर्जनाएँ

नदी को याद आएँ।

नदी- 6

भटके हुए

मैदानों के हालात

देख नदी ने

जख्म़ी हुए पंखों* को

जैसे फैलाया

रोता हुआ झरना

बुदबुदाया-

ठेकेदार गुज़रे

जहाँ-जहाँ से

निर्जन है वहाँ पे

तू सँभल यहाँ से।

(*पर्वतीय ढाल से जब नदी मैदानों में प्रवेश करती हैतो जलोढ़ पंख नाम की स्थलाकृति बनाती हैउससे पहले जल- प्रपात (झरना) का निर्माण कर चुकी होती है।)

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