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May 1, 2022

दो लघुकथा 1. विकलांग

-माधव नागदा
  लँगड़ा भिखारी बैसाखी के सहारे चलता हुआ भीख माँग रहा था, “तेरी बेटी सुख में पड़ेगी, अहमदाबाद का माल खायेगी, बंबई(मुंबई) की हुंडी चुकेगी । दे दे सेठ लँगड़े को रुपये-दो रुपये।”

     उसने एक साइकिल कि दुकान के सामने जाकर गुहार लगाई । सेठ कुर्सी पर बैठा-बैठा रजिस्टर में किसी का नाम लिख रहा था । उसने सिर उठाकर भिखारी की तरफ देखा ।

    “अरे, तू तो अभी जवान और हट्टा-कट्टा है । भीख माँगते शर्म नहीं आती ? कमाई किया कर,    कमाई ।”

    भिखारी ने स्वयं को अपमानित महसूस किया । स्वर में तल्खी भरकर बोला, “सेठ, तू भाग्यशाली है । पूरब जनम में तूने अच्छे करम किए हैं । खोटे करम तो मेरे हैं । जन्म लेते ही भगवान ने  एक टाँग न छीन ली होती, तो मैं भी आज तेरी तरह कुर्सी पर बैठकर राज करता।”

    सेठ ने इस मुँहफट भिखारी को ज्यादा मुँह लगाना ठीक नहीं समझा । वह गुल्लक में भीख लायक परचूनी ढूँढने लगा । भिखारी आगे बढ़ा।

    “ये ले । ले जा ।”

    भिखारी हाथ फैलाकर नजदीक गया । परन्तु एकाएक हाथ वापस खींच लिया मानो, सामने सिक्के की बजाय जलता हुआ अंगारा हो । कुर्सी पर बैठकर ‘राज करने वाले’ की दोनों टाँगें घुटनों तक गायब थीं ।

2. परिवार की लाड़ली

       एक साथ तीन पीढ़ियाँ गाँव के बस स्टैण्ड पर बस का इंतजार कर कही थीं। दादी, माँ, , बेटा और उसकी नई-नवेली बहू। बस स्टैण्ड हाइवे के किनारे था। हालाँकि यातायात की कमी नहीं थी; लेकिन लोकल बसों की कमी थी। फलस्वरूप लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता था।

   समय गुजारने के लिये बेटे ने एक तरीका ढूँढ निकाला। वह आते-जाते ट्रकों के पीछे की लिखावटों को पढ़ने लगा। जरा जोर से, ताकि सब सुन लें। कोई रोमांटिक- सी बात होती, तो बहू की ओर देखकर और जोर से बोलता। बहू घूँघट कुछ ऊपर उठाती नीचे का ओंठ दाँतों तले दबाती और सबकी नजरें बचाते हुए पति की ओर आँखें तरेरती । पति को पत्नी के चेहरे की यह लिखावट ट्रक की लिखावट से भी ज्यादा रोमांचित कर देती। उसे इंतजार में भी अनोखा आनंद आने लगा।

  अभी-अभी मार्बल से लदा एक ट्रक गुजरा था। ओवरलोड। धीमी रफ्तार। दर्द से कराहता हुआ सा। लिखा था, ‘परिवार की लाडली’। बेटे ने कहा, वो देखो परिवार की लाडली जा रही है और बड़े लाड़ से पत्नी को निहारा।

  “हुँह,इतना तो बोझा लाद रखा है और परिवार की लाड़ली।” पत्नी ने व्यंग्य किया।

   सासूजी सुन रही थीं । उन्होंने तिरछी निगाहों से अपने पति व सास की तरफ देखा, फिर बोली, “इतना बोझा लाद रखा है तभी तो परिवार की लाड़ली है। वरना.....।”

बहू ने महसूस किया कि सासूजी की आवाज घुट कर रह गई है।

सम्पर्कः  लालमादड़ी (नाथद्वारा)- 313301(राज). मोब-9829588494

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