उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 10, 2015

लघुकथाएँ


फीस
अचानक ही मेरी नजर 'डेली वेजेज' पर बैंक में काम कर रहे चपरासी कनवाल पर पड़ी। देखा -वह स्टूल पर बैठा अंग्रेजी अखबार बड़ी तन्मयता से पढ़ रहा है। समसायायिक घटनाओं को पढऩे के बाद कई तरह के भाव उसके चेहरे पर आ- जा रहे हैं।
कनवाल और अंग्रेजी का अखबार। मुझे आश्चर्य हुआ। यह लंच टाइम था और इस समय बैंक में अन्य कोई मौजूद नहीं था। मैंने कनवाल को अपने पास बुलाया और कहा।
'क्यों कनवाल, अखबार तो बड़ी तन्मयता से पढ़ रहे हो। ऐसा लगता है कि तुम्हें अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान है। कहां तक पढ़े हो?'
वह कहने लगा, 'साहब मैं तो नवीं फेल हूं।'
मैंने कहा, 'सच-सच बताओ। मुझसे तो झूठ न बोलो। जिस तन्मयता से तुम अंग्रेजी का अखबार पढ़ रहे हो, उससे तो नहीं लगता है कि तुम सिर्फ नवीं तक पढ़े हो।'
वह सकपका गया और बोला, 'नहीं साहब, गलती हो गई। अब से नहीं पढ़ूंगा अंग्रेजी का अखबार। हिन्दी का ही पढ़ूंगा। वैसे मैं नवीं फेल हूं।'
मैंने उसे धमकाया, 'सच-सच बताओ वरना कल से हम 'डेली वेजेज' पर दूसरा चपरासी रख लेंगे।'
इस पर वह बोला, 'नहीं साहब, नहीं। ऐसा न कीजिएगा साहब। मैं सच-सच बता देता हूं। वैसे तो मैं बीए पास हूं। मगर मैनेजर साहब ने कहा था कि अगर कोई पूछे तो नवीं फेल ही बताना। चूंकि इससे ज्यादा पढ़े- लिखे को नियमानुसार डेली वेजेज पर बैंक में चपरासी नहीं रखा जा सकता। अब मेरी असली योग्यता जानने के बाद यदि आप लोगों ने मुझे इस काम से हटवा दिया तो मैं बड़ी नौकरी के कम्पटीशन में बैठने के लिए फीस की राशि कहां से जुटा पाऊंगा साहब?'
बड़ा होने पर
'तू... तूने हमारे बापू का फावड़ा बिना पूछे उठा लिया। ...चोर है तू!' धनुआ के बेटे ने मुझसे कहा। मैंने उसके पिता की झोंपड़ी के दरवाजे पर रखा फावड़ा उठा लिया था और अपने आंगन में बनी फुलवारी में उग आई थोड़ी-सी घास को खुद ही छीलने लगा था। फावड़ा लेने के लिए पूछने की आवश्यकता थी भी नहीं।
धनुआ हमारे खेतों में मजदूरी किया करता है। उसके पिता और पिता के पिता... और जाने कितनी पीढिय़ां हमारे पूर्वजों के खेतों में इसी तरह मजदूरी करती चली आ रही हैं। उनकी पुश्तैनी झोंपड़ी हमारे आंगन के पास ही लगी है।
'अरे, देता नहीं है तू हमारा फावड़ा। चोर! मैं, दरांती से तेरा हाथ काट दूंगा। अब से हमारी मढ़ैया (झोंपड़ी) से कुछ न उठाना।'
उस बच्चे ने आगे कहा।
मैं मुस्कराकर रह गया। चार- साढ़े बरस के उस बच्चे को भला क्या डांटता।
तभी चेहरे पर दीनता के भाव लिये हुए, धनुआ झोंपड़ी से बाहर निकला और एक झापड़ अपने बेटे को लगाता हुआ बोला, 'बाबूजी, यह तो अभी नासमझ बच्चा है। इसकी बात का बुरा न मानिएगा, हुजूर।......आप तो हमारे माई-बाप हैं। अन्नदाता हैं। बड़ा होने पर यह अपने आप समझदार हो जाएगा तो ऐसा नहीं बोलेगा।'
मैं सोचने लगा कि एक दिन धनुआ को भी उसके बापू ने इसी तरह डांटा होगा। बड़ा होने पर ये लोग खुद को कितना छोटा मानने को विवश हो जाते हैं।
सम्पर्कः प्रबंधक, नैनीताल बैंक लि. प्रधान कार्यालय,  सेवन ओक्स मल्लीताल, नैनीताल- 263 001,    
मोबा. 09897849737,  Email- palni_nainital@yahoo.in

No comments: