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Mar 21, 2009

रोक सकेगी इस कुरीति को बालिका-वधू

रोक सकेगी इस कुरीति को बालिका-वधू
बस इच्छा यही है कि इसकी चमक उन अंधे मां बापों की आंखे खोलने में कामयाब हो जो अंधविश्वासों और कुरीतियों को अपने तर्कों की तलवारें चलाते हुए अपने बच्चों को होम किए जाते हैं....
-तनु शर्मा

बात करें अगर छोटे पर्दे की तो कुछ बात करने लायक नजर नहीं आता....चारों तरफ वही रंगे-पुते नकली और भयावह सास-बहू के चेहरे .......वही एक-एक शॉट के दस-दस रीटेक्स दिखाना.... जब तक कि कोई चैनल ही ना बदल दे......

लेकिन इन सबके उलट चैनल कलर्स पर आने वाला सीरियल बालिका-वधू अपनी लोकप्रियता की सारी सीमाएं लांघ चुका है......बेदम और उबाऊ हो रहे छोटे पर्दे पर बालिका-वधू एक ताज़ी सांस की तरह आया....

इस सीरियल में सब कुछ इतना गुंथा हुआ है कि कहीं कोई कमज़ोर कड़ी नजऱ नहीं आती ....बेहद सादगी के साथ इसका प्रैजेंटेशन, सभी किरदारों का सशक्त अभिनय, केंद्रीय पात्र आनन्दी का भोलापन और मां साब की भूमिका में सुलेखा सीकरी का किरदार इसमें जान डाल देता है।

पूरा सीरियल राजस्थान की पृष्ठभूमि में रचा गया है, हर चीज़ पर इतनी बारीकी से ध्यान दिया गया है....कि कहीं कोई कमी नजऱ नहीं आती......।

लेकिन एक बात जो थोड़ा कचोटती है वो ये है कि क्या सामाजिक बुराई -बाल विवाह--को दिखाने का थोड़ा भी लाभ समाज को मिलेगा...... टीआरपी मिल रही है, पैसा मिल रहा है, लेकिन क्या सामाजिक जागरुकता आ रही है ...... क्या वे मां-बाप जो इसे देख रहे है, पसंद कर रहे हैं......अपने आप को रोक पाएंगे जब आखा तीज़ आएगी और ना जाने कितने ही मासूम आनन्दी और जगिया की तरह इस बंधन में बांध दिए जाएंगे.....।

शायद किसी को याद भी नहीं होगा कि कुछ सालों पहले मध्यप्रदेश के धार जि़ले में एक महिला अधिकारी के हाथ काट दिए गए थे.... जो बाल विवाह जैसी कुरीति का विरोध कर रही थी..... मुझे पूरा विश्वास है कि कोई मुकदमा कायम नहीं हुआ होगा और किसी को सज़ा नहीं मिली होगी..... क्योंकि हम सब अपनी कानून व्यवस्था के बारे में बखूबी जानते हैं..... हमारे यहां कानूनी तौर पर अवैध घोषित कुरीतियां मरती नहीं हैं.. कोई वक्त गुजर कर भी सचमुच नहीं गुजरता।

इस सीरियल में आनंदी अनगिनत सवाल पूछती है लेकिन उसके जवाब उसे नहीं मिलते.... वह कमसिन, कोमल और निर्मल है और उसके ज़हन में हज़ार सवाल उठते हैं।

इस सीरियल में कहीं कोई कमी नहीं सब कुछ एक खूबसूरत जड़ाऊ हार की तरह.... बस इच्छा यही है कि इसकी चमक उन अंधे मां बापों की आंखे खोलने में कामयाब हो जो अंधविश्वासों और कुरीतियों को अपने तर्कों की तलवारें चलाते हुए अपने बच्चों को होम किए जाते हैं....

राज्य सरकारें भी बातें बड़ीं-बड़ीं करती है लेकिन कुरीतियों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती...... वोट बैंक के होव्वे ने ही इन कुरीतियों को पाला है और बढ़ावा दिया है।

email- tanusharma100@gmail.com

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