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Dec 13, 2008

दूसरा चेहरा

1-दूसरा चेहरा 
 - सुकेश साहनी



मिक्की की आंखों में नींद नहीं थी। वह पिल्ले को अपने पास नहीं रख पाएगा, सोच कर उसका मन बहुत उदास था। पिल्ले को लेकर ढेरों सपने बुने थे पर घर आते ही सब कुछ खत्म हो गया था। मां ने पिल्ले को देखते ही चिल्लाकर कहा था, ''अरे, यह क्या उठा लाया तू? तेरे पिता जी ने देख लिया तो किसी की भी खैर नहीं। उन्हें नफरत है इनसे। जा, इसे वापस छोड़ आ।  दादी मां ने बुरा सा मुंह बनाया था, ''राम राम! कुत्ता होई जो कुत्ता पाले। बाहर फेंक इसे।'' यह सब सुनकर उसे रोना आ गया था। कितनी खुशामद करने पर दोस्त पिल्ला देने को राजी हुआ था। चूंकि दोस्त का घर दूर था इसलिए एक रात के लिए उसे पिल्ले को घर में रखने की इजाजत मिली थी। पिता जी के आने से पहले ही उसने बरामदे के कोने में टाट बिछाकर उसे सुला दिया था।

कूं ... कूं की आवाज से वह चौंक पड़ा। बरामदे में स्ट्रीट लाइट की वजह से हल्की रोशनी थी। पिल्ले को ठंड लग रही थी और वह बरामदे में सो रही दादी की चारपाई पर चढऩे का प्रयास कर रहा था। वह घबरा गया... सोना तो दूर दादी अपना बिस्तर किसी को छूने भी नहीं देतीं... उनकी नींद खुल गई तो वे बहुत शोर करेंगी... पिता जी जाग गए तो पिल्ले को तिमंजिले से उठाकर नीचे फेंक देंगे... वह रजाई में पसीने-पसीने हो गया। सोते हुए मां ने एक हाथ उस पर रखा हुआ था, वह चाहकर भी उठ नहीं सकता था। पिल्ले की कूं कूं और पंजों से चारपाई को खरोंचने की आवाज रात के सन्नाटे में बहुत तेज मालूम दे

रही थी।

दादी की नींद उचट गई थी, वह करवटें बदल रही थीं। आखिर वह उठ कर बैठ गई।

आने वाली भयावह स्थिति की कल्पना से ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसे लगा दादी पिल्ले को घूरे जा रही हैं।

...दादी ने दाएं-बाएं देखा...पिल्ले को उठाया और पायताने लिटा कर रजाई ओढ़ा दी।

2-मैं कैसे पढूं ?

पूरे घर में मुर्दनी छा गई थी। मां के कमरे के बाहर सिर पर हाथ रखकर बैठी उदास दाई मां ...रो-रोकर थक चुकी मां के पास चुपचाप बैठी गांव की औरतें । सफेद कपड़े में लिपटे गुड्डे के शव को हाथों में उठाए पिताजी को उसने पहली बार रोते देखा था....।

'शुचि!' टीचर की कठोर आवाज़ से मस्तिष्क में दौड़ रही घटनाओं की रील कट गई और वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई।

'तुम्हारा ध्यान किधर है? मैं क्या पढ़ा रही थी..... बोलो?' वह घबरा गई। पूरी क्लास में सभी उसे देख रहे थे।

'बोलो!' टीचर उसके बिल्कुल पास आ गई।

'भगवान ने बच्चा वापस ले लिया ...।' मारे डर के मुंह से बस इतना ही निकल सका ।

कुछ बच्चे खी-खी कर हंसने लगे। टीचर का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा।

'स्टैंड अप आन द बैंच!'

वह चुपचाप बैंच पर खड़ी हो गई। उसने सोचा ...ये सब हंस क्यों रहे हैं, मां-पिताजी, सभी तो रोये थे-यहां तक कि दूध वाला और रिक्शेवाला भी बच्चे के बारे में सुनकर उदास हो गए थे और उससे कुछ अधिक ही प्यार से पेश आए थे। वह ब्लैक-बोर्ड पर टकटकी लगाए थी, जहां उसे मां के बगल में लेटा प्यारा-सा बच्चा दिखाई दे रहा था । हंसते हुए पिताजी ने गुड्डे को उसकी नन्हीं बांहों में दे दिया था। कितनी खुश थी वह!

'टू प्लस-फाइव-कितने हुए?' टीचर बच्चों से पूछ रही थी।

शुचि के जी में आया कि टीचर दीदी से पूछे जब भगवान ने गुडडे को वापस ही लेना था तो फिर दिया ही क्यों था? उसकी आंखें डबडबा गईं। सफेद कपड़े में लिपटा गुड्डे का शव उसकी आंखों के आगे घूम रहा था। इस दफा टीचर उसी से पूछ रही थी । उसने ध्यान से ब्लैक-बोर्ड की ओर देखा। उसे लगा ब्लैक-बोर्ड भी गुड्डे के शव पर लिपटे कपड़े की तरह सफेद रंग का हो गया है। उसे टीचर दीदी पर गुस्सा आया । सफेद बोर्ड पर सफेद चाक से लिखे को भला वह कैसे पढ़े?

उफ... ये मौजा ही मौजा ...

उफ... ये मौजा ही मौजा ...
- डॉ. प्रतिमा चंद्राकर

यदि आपको भी आता है गुस्सा तो आइए उस गुस्से को उदंती.com के इस पृष्ठ पर लिख कर उतारने की कोशिश करें। क्योंकि बड़े- बुजूर्ग कहते हैं कि गुस्से को मन में नहीं रखना चाहिए, उसे बाहर निकाल देने से गुस्सा कम हो जाता है, तो यदि उस गुस्से को लिखकर आपस में बांट लें तो गुस्सा कम तो होगा ही साथ ही इसके माध्यम से एक अभियान चला कर संबंधित विभाग और प्रशासन का ध्यान आकर्षित भी कर सकते हैं। साथ ही एक दूसरे की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास।

आज सुबह जब मैं कॉलेज जाने के लिए गेट से बाहर निकली तो सामने वाले पड़ोसी के घर में हलचल देखकर एक अजीब सी दहशत और घबराहट होने लगी। शाम को लौटने पर गाडिय़ां और लाइट की सजावट देखकर सारा माजरा समझ में आ गया। मन गुस्से से भर गया यह सोच कर कि आज फिर रात की नींद हराम होगी।
मेरे पड़ोसी का घर बहुत बड़ा है, अपने हवेलीनुमा मकान को वे शादी, जन्म दिन आदि की पार्टी के लिए किराए पर देते हैं। मैं यहां आए दिन होने वाली शादी और पार्टियों से डरने लगी हूं। अरे ... पर यह कॉलम तो गुस्से का है, मैं डर के विषय में क्यों लिख रही हूं? दरअसल मेरा गुस्सा डर में बदल चुका है। मैं लिख रही हूं और मेरे कानों में full sound में मौजा ही मौजा... की आवाज़ गरम लावे की तरह पिघल रहा है। रात के साढ़े दस बज चुके हैं पर डिस्को की कान के पर्दे फोड़ देने वाली आवाज़.... उफ।

मैं और मेरे परिवार का सम्बन्ध पढ़ाई -लिखाई से है। शाम को और देर रात तक इस तरह कि आवाज़ से सभी परेशान रहते हैं। आप सोचते होंगे पढ़ा-लिखा परिवार और जागरूकता जऱा भी नहीं? तो मैं बता दूं तीन वर्ष पहले मैंने पुलिस को इसकी लिखित शिकायत दी थी, कि रहवासी इलाके में देर रात तक इस तरह के आयोजन हेतु कोई अपना घर कैसे किराए पर दे सकता है? पुलिस ने बताया कि उनके पास परमिशन है। ऐसी बात भी नहीं है कि इस कालोनी में अन्य जगरुक लोग नहीं रहते, यहां कई सरकारी अफसर भी रहते हैं पर शिकायत करने का कीड़ा मुझे ही काटा।
हां तो मैं बता रही थी कि जब शादी, जन्मदिन और डिस्को पार्टी का शोर शिकायत करने के बाद भी नहीं रुका तो नियमानुसार सही-सही जानकारी प्राप्त कर पुन: शिकायत पत्र लिखा परन्तु प्रशासन तो प्रशासन है चलेगी तो अपनी ही चाल से। भले ही आज हम चांद तक पहुंचने पर गर्व करें पर चलेंगे उसी बैल गाड़ी वाले युग की चाल।
आज भी स्थिति यह है कि जब तक थाने फ़ोन न करो, लाऊड स्पीकर कि आवाज़ धीमी नहीं होती। थक कर मैंने मानव अधिकार में भी इस सम्बन्ध में शिकायत की है। लेकिन शायद वहां भी उनकी अपनी सीमाएं हैं। देखते-देखते तीन साल बीत गए और दीपावाली के बाद से गर्मी कि छुट्टियों तक हम बारातियों का स्वागत करते भांगड़ा एवं पटाखे तथा गानों की गूंज में जीने के आदि हो गए।
जब-जब इस घर को किराए पर शादी या किसी और पार्टी के लिए दिया जाता है हमारी और हमारे बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो प्रभावित होती ही है, यदि हम इस शोर से बचने के लिए घूमने निकल जाते हैं तो रात को लौटते पर अपनी गाड़ी अन्दर रखने हेतु पहले शादी घर जाकर सैकड़ों लोगों से पूछ -पूछ कर अपने गेट के सामने से गाड़ी हटवाते हैं या फिर अपनी गाड़ी सडक़ पर भगवान भरोसे छोडक़र कानों में रूई डालकर सभी दरवाज़े बंद कर सोने कि कोशिश करते हैं।
मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं एक तो इसी शोर शराबे के बीच पढ़ते हुए बोर्ड पास कर दूसरे शहर पढऩे चली गई, दूसरी बोर्ड की तैयारी में है। इस तरह हम बरस- दर बरस अपने गुस्से के ग्राफ़ को ऊपर से नीचे करते हुए हार मान कर चुप- चाप बैठ गए हैं।
पर उदंती में गुस्से का यह कॉलम देखकर अपने आपको रोक नहीं पाई और मन छटपटा उठा। उदंती के पृष्ठों के लिए अपने दिल का गुबार निकाल कर मन हल्का तो हो गया लेकिन मेरी समस्या का समाधान मुझे नहीं मिल रहा है। मैंने अपने पढ़े- लिखे होने की जिम्मेदारी पूरी तरह निभाई है और पहल भी की है। लेकिन जब-जब सामने वाले इस घर में जब- जब पार्टी का आयोजन होता है, मेरे गुस्से का ग्राफ बढऩे लगता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ है क्योंकि आज रात मुझे कानों में रुई डालकर सोने का प्रयास करना ही पड़ेगा, अन्यथा कल नौकरी पर कैसे जा पाऊंगी।

इस अंक के लेखक

डॉ. खुशालसिंह पुरोहित


जन्म तिथि - 10 जून 1955 को म.प्र. में एक किसान परिवार में। शिक्षा - एम.ए.(हिन्दी), पी.एच.डी.(पत्रकारिता),डी.लिट् (पर्यावरण) कार्य - पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण जागरुकता और पर्यावरण शिक्षा के क्षैत्र में पिछले ढाई दशक से कार्यरत है, 1987 पहली हिन्दी पर्यावरण पत्रिका पर्यावरण डाइजेस्ट का प्रकाशन। पत्रकारिता - सन् 1972- साप्ताहिक मालव समाचार में प्रतिनिधि, 1974 - दैनिक स्वदेश इंदौर में जिला प्रतिनिधि, 1975-हिन्दुस्तान समाचार संवाद एजेंसी में जिला संवाददाता, 1975 - दैनिक इंदौर समाचार में अति.प्रतिनिधि, 1977-दैनिक स्वदेश इंदौर में सह-संपादक, हिन्दी के प्रतिष्ठित पत्रों में सम-सामयिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित। पता- 19 पत्रकार कॉलोनी, रतलाम, म.प्र. 457001

फ़ोन (07412) 231546, मोबाइ: 9425078098

डॉ. प्रतिमा चन्द्राकर



शिक्षा- एमएससी, पीएचडी (केमेस्ट्री) संप्रति: प्रोफेसर, रसायन शास्त्र विभाग, शासकीकय विज्ञान महाविद्यालय, रायपुर

पता- एफ-2, पेंशन बाड़ा रायपुर (छ.ग.)

mail id- pchandraker@yahoo.com
जयराम दास



जन्म - 7 फरवरी 1977 शिक्षा - पत्रकारिता में स्नातकोत्तर-माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल कार्य- भाजपा की मासिक पत्रिका दीप कमल में समाचार संपादक, विभिन्न समाचार पत्रों में अनेक आलेख प्रकाशित विशेष - इंग्लिश, संस्कृत व मैथिली भाषाओं का ज्ञान। पता - एकात्म परिसर रजबंधा मैदान रायपुर (छ.ग.) mail id- jay7feb@gmail.com


सुकेश साहनी



जन्म तिथि - 5 सितंबर 1956 लखनऊ

शिक्षा- एम. एस-सी (जियोलॉजी) तथा डीआईआईटी (एप्लाइड हाइड्रॉलॉजी) मुंबई। कार्यक्षेत्र- उपन्यास, कहानी, लघुकथा तथा बालकथाओं का लेखन। लगभग प्रत्येक हिंदी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित। लघुकथा की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण योगदान। प्रकाशित कृतियां - लघुकथा संग्रह-डरे हुए लोग (पंजाबी, गुजराती, मराठी व अंग्रेज़ी में भी ) ठंडी रज़ाई (अंग्रेज़ी व पंजाबी में ) कुछ लघुकथाएं जर्मन भाषा में अनूदित।

अनुवाद- ख़लील जिब्रान की लघुकथाएं, रोशनी कहानी पर दूरदर्शन के लिए टेलीफिल्म का निर्माण, संपादन- लघुकथाओं के आधे दर्जन से अधिक संकलनों का संपादन सम्प्रति- भूगर्भ जल विभाग में हाइड्रोलॉजिस्ट । पता- 193/ 21, सिविल लाइंस , बरेली -243001

mail id- sahnisukesh@gmail.com

प्रिया आनंद



जन्म जनवरी 1950 फैजाबाद उत्तर प्रदेश, शिक्षा एम. ए. हिंदी साहित्य, लेखन- 36 वर्षों से लेखन में सक्रिय। अब तक 260 के लगभग कहानियां, लेख, विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित। कहानी संग्रह- मोहब्बत का पेड़ प्रकाशित। पत्रकारिता- हिमाचल के दैनिक पत्र दिव्य हिमाचल में 9 वर्षों से फीचर एडिटर के पद पर कार्यरत। पता: दिव्य हिमाचल, पुराना मटौर कार्यालय, कांगड़ा पठानकोट मार्ग, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)176001

त्रिजुगी कौशिक



शिक्षा - इंटरमीडियेट । प्रकाशन- ओ जंगल की प्यारी लडक़ी (कविता संग्रह) संपादन - बस्तर- अतीत से आगत- संदर्भ ग्रंथ, सूत्र साहित्यिक पत्रिका में संपादन सहयोग, पं. बाल गंगाधर स्मृति सम्मान, सूत्र साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था में सचिव। विगत 20 वर्षों से कविता, आलेख, छायाचित्रों का दैनिक समाचार पत्रों एवं साक्षात्कार, नया ज्ञानोदय, अक्षरा परिवेश, सूत्र, सर्वनाम, वागर्थ सहित विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में कविता का प्रकाशन। संप्रति- जनसंपर्क संचालनालय रायपुर में मुख्य छायाचित्रकार। मोबाइ: 9826666657

राजेश उत्साही

जन्म- 30 अगस्त, 1958, मिसरोद, भोपा, मप्र शिक्षा- राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र तथा हिंदी साहित्य में स्नातक, समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर। कार्य - मप्र की अग्रणी शैक्षिक संस्था एकव्य में 1982 से कार्यरत। वर्तमान में एकव्य में वरिष्ठ संपादक। एकव्य द्वारा संचालित विज्ञान एवं तकनॉलोजी फीचर सर्विस 'स्रोत' में प्रबंध संपादक, द्विमासिक शैक्षणिक पत्रिका 'शैक्षणिक संदंर्भ में संपादन सहयोग। प्रकाशन - नन्हा- कहानी, खट्टा-मीठा: फिपि बुक, कौन कहां से आए जी- कविता पोस्टर, प्रज्ञा- सांपा द्वारा प्रकाशित घुकथा संग्रह 'स्वरों का विद्रोह', 'आलू मिर्ची चाय जी' व 'खिडक़ी वाला पेट' कविता एनसीईआरटी की पांचवीं कक्षा की पर्यावरण अध्ययन पाठ्यपुस्तक में सम्मिति। पता- ई-7/58,अशोका हाउसिंग सोसायटी, अरेरा कालोनी, भोपाल, मप्र, पिन-462016। फोन : 0775- 2422795, mobil : 91-09893663677

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