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Dec 13, 2008

किशोर कुमार की जीवनी पर फीचर फिल्म


किशोर कुमार की जीवनी पर फीचर फिल्म

नायिकाओं की तलाश






गायक, अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, निर्माता-निर्देशक स्व. किशोर कुमार के निधन के 21 वर्ष बाद, उनकी जीवनी एवं फिल्मी सफर पर आधारित लगभग 50-60 करोड़ की लागत से एक फीचर फिल्म बनाए जाने की योजना प्रस्तावित है। किशोर कुमार के 79 वें जन्म दिन पर इस प्रस्ताव के लिए उनकी अंतिम (चौथी) पत्नी लीना चंदावरकर एवं पुत्रों - अमित कुमार, सुमीत कुमार ने अपनी हामी भर दी है जिसके लिए पहले भी कई बार असफल प्रयास किए जा चुके थे क्योंकि पूर्व में लीना चंदावरकर इसके लिए राजी नहीं थीं। किशोर कुमार की चार पत्नियों ( रुमा गुहा, मधुबाला, योगिता बाली, लीना चंदावरकर) के रोल हेतु फिल्म में चार अभिनेत्रियों को शामिल किया जाएगा। रंग दे बसन्ती (2005) के लेखक रेंजिल डी सिल्वा ने उक्त फिल्म हेतु कथा लेखन का कार्य शुरु कर दिया है।

व्यापक स्वरूप

व्यापक स्वरूप
उदंती का अक्टूबर अंक पढ़ा। अनकही- तमसो मां ज्योतिर्गमय से पत्रिका की मूल विचारधारा से अवगत हुआ। सबसे बड़ी बात इस पत्रिका के संबंध में यह है कि एक मासिक पत्रिका को इतना व्यापक स्वरूप रायपुर जैसे शहर से प्राप्त हुआ। अभी भी कई साहित्यिक पत्रिकाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं लेकिन उनमें ज्यादातर विदेशों में रहने वाले भारतीयों के भागीदारी की हैं। ऐसे में उदंती का प्रकाशन वेब पर उपलब्ध होना हिन्दी भाषा और साहित्य की नि:स्वार्थ सेवा है जिसके लिए हिन्दी जगत सदैव ऋणी रहेगा। संपादक और समस्त टीम को शुभकामनाएं।

-अंजीव पांडे, रायपुर से

आधुनिकता का यथार्थ
नवंबर अंक में सूरज प्रकाश की कविता आधुनिकता के यथार्थ की सार्थक प्रस्तुति है। लेखक को बधाई।

-दीपक शर्मा, कुवैत से

उम्दा रचनाएँ
अक्टूबर के अंक में सूरज प्रकाश जी की दिल को छू लेने वाली कविता अब दीप नहीं जलाते और नीरज मनजीत जी का आलेख किताबों की बदलती दुनिया इस अंक की उम्दा रचनाएं हैं। दोनों ही रचनाओं में हमारे आधुनिक से अत्याधुनिक (?) होते चले जाने की पीड़ा पूरी तरह अभिव्यक्त होती है। इन दोनों रचनाओं के लिए रचनाकारों को साधुवाद।

- हरिहर वैष्णव, कोण्डागांव, बस्तर से


आकर्षित करता है
रंग बिरंगी साज- सज्जा के साथ उदंती का नया अंक आकर्षित करता है। समाज के ज्वलंत मुद्दों के साथ कला संस्कृति और साहित्य का समावेश पत्रिका को गरिमा प्रदान करता है। हाथा लोक चित्र हमारी परंपरा से परिचित कराती है तो झीनी झीना बीनी चदरिया कबीर पंथ का विस्तार से विश्लेषण। रंग- बिरंगी दुनिया और क्या खूब कही जैसे स्तंभ रोचकता लिए हुए हैं। पत्रिका पठनीय और खूबसूरत है।

-मनीष गुप्ता, नई दिल्ली से

सुखद अनुभूति
आज के दौर में उदंती.ष्शद्व जैसी पत्रिका को देखना और पढऩा एक सुखद अनुभूति है। कथा साहित्य का भी समावेश हो जाए तो पत्रिका पूर्ण लगेगी।

- रचना सक्सेना, रायपुर से

रंग -बिरंगी दुनिया

सफेद दाढ़ी वालों के लिए खुशखबरी
क्रिसमस के मौके पर विदेशों में विभिन्न सडक़ों, रेस्तरांओं और माल्स में सांता क्लाज को लोगों का मनोरंजन करते देखा जा सकता है। ग्राहकों को लुभाने के लिए सांता क्लाज बना हुआ व्यक्ति अपनी पोटली में टॉफी, गिफ्ट आदि रखकर बच्चों को लुभाते नजर आते हैं। इस तरह क्रिसमस का मौका बहुतों के लिए रोजगार ले कर आता है। लेकिन जर्मनी में इस साल सांता क्लाज की कमी पड़ गई है। कंपनियां सांता क्लाज की भर्ती के लिए बाकायदा विज्ञापन दे रही हैं।
एक विज्ञापन का नमूना देखिए... हमें एक मजाकिया, थोड़ा गोल-मटोल ऐसा आदमी चाहिए जिसका कोई आपराधिक रिकार्ड न हो। सफेद दाढ़ी वाले लोगों को तरजीह दी जाएगी।
एक प्रमुख जॉब एजेंसी के मुताबिक हम तेजी से ऐसे पढ़े-लिखे लोग खोज रहे हैं जिन्हें जल्दी से प्रशिक्षण देकर सांता क्लाज बनाया जा सके। म्यूनिख में सांता की नियुक्तियां करने वाले प्रमुख जेंस विटेनबर्गर के अनुसार सांता क्लाज बनना आसान काम नहीं है। शापिंग माल्स, निजी पार्टियों और बाजारों में नियुक्त किए जाने वाले सांता क्लाज में कुछ खास विशेषताएं होनी चाहिए। जैसे वह बच्चों के साथ आसानी से घुलमिल सके, उसे अच्छा संगठनकर्ता, विश्वसनीय और कुशल अभिनेता भी होना चाहिए। हालांकि सांता बनना मुश्किल काम होता है। लेकिन मंदी के इस दौर में बेरोजगारी से तो अच्छा ही है।
भारत में भी पिछले कुछ वर्षों से विभिन्न रेस्तरां, मॉल्स और निजी पर्टिंयों में भी सांता क्लाज घूमते नजर आने लगे हैं, भारत में वैसे ही बहुत बेराजगारी है सो यहां सांता क्लाज की कमी नहीं है। हां जर्मन कंपनी चाहे तो वे भारत से सांता क्लाज ले जा सकते हैं, रही बात ट्रेनिंग की तो भारत इसमें भी एक्सपर्ट है।
शुद्ध पेयजल चहिए तो...
अमरीकी स्पेस अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा अंतरिक्ष यान में भेजे जाने वाले स्त्री पुरुषों को महीनों तक अंतरिक्ष यान के भीतर रहना पड़ता है, जहां उनके लिए पेयजल की व्यवस्था करना एक बड़ी समस्या थी। अंतरिक्ष यान में जल बहुत ही सीमित मात्रा में ले जाया सकता है। इस समस्या का बहुत ही आसान समाधान नासा ने निकाल लिया है। वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र को उपकरणों से शुद्ध करके इन्हें पीने लायक बना लिया है। नासा का दावा है कि अंतरिक्ष यान में इस प्रकार उपलब्ध जल धरती पर नगरों में उपलब्ध पेयजल से भी कहीं अधिक स्वच्छ होता है। यह तो बहुत अच्छी खबर है क्योंकि नासा की इस खोज से कम से कम भविष्य में धरती पर होने वाली पेय जल की समस्या का कुछ तो निदान किया ही जा सकेगा।
मल्टी-स्टोरी कब्रिस्तान!
अंग्रेजों द्वारा भारत से म्यांमार (बर्मा) निर्वासित किए जाने पर अंतिम मुगल बादशाह ने यह जान लिया था कि उनका नामोनिशां उनकी मातृभूमि से मिट जाएगा यानि उनकी कब्र भी भारत में नहीं होगी। तभी तो कवि हृदय इस बादशाह ने अपनी आत्मा की व्यथा को व्यक्त करते हुए कहा था दो गज जमीन भी न मिली कुए यार में... लेकिन क्या अंग्रेजों ने कभी भी यह सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि खुद अंग्रेजों के लिए ही इंग्लैंड में कब्र के लिए जमीन नहीं मिलेगी। लेकिन है यह यथार्थ।
इंग्लैंड एक छोटा सा टापू है, जिसमें सभी कब्रिस्तान खचाखच भर चुके हैं और नए कब्रिस्तान के लिए वहां जमीन नहीं मिल सकती। ऐसे में आजकल अंग्रेज मृतकों की अन्त्येष्टि उनका कफन समुद्र में दफन करके हो रही है। परंतु समुद्र में अंत्येष्टि एक महंगा सौदा है। इसमें जमीन पर कब्र बनाने की तुलना में दुगना खर्चा आता है। कुए यार (जन्मभूमि) में ही दो गज जमीं के लिए मोहताज अंग्रेजों की कराहों से व्यथित इंग्लैंड की सरकार ने एक योजना बनाई है कि वर्तमान कब्रिस्तानों में स्थित कब्रों को खोदकर उनमें दफन मृतकों को और ज्यादा गहराई में गाड़ा जाए जिससे उनके ऊपर और कब्रें बनाई जा सकें। अर्थात् मल्टी-स्टोरी कब्रिस्तान। जाहिर है इंग्लैंड के पास हर मुसीबत और समस्या का समाधान है। ये तो अच्छा है कि भारत में हिन्दू धर्म के अनुसार मृतक को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है, अन्यथा यहां की बढ़ती जनसंख्या के चलते तो न जाने कितने मल्टी स्टोरी कब्रिस्तान बनाना पड़ता।