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Feb 11, 2020

प्रेरक



41 साल-10 सबक
-निशांत

मैं आज ही 41 साल का हो गया हूँ, आज मेरा जन्म दिन है। अपने ब्लॉग पर मैंने कुछ साल पहले अपने जन्मदिन के दिन एक पोस्ट लिखी थी, और यह संकल्प लिया था कि हर साल वैसी ही पोस्ट लिखा करूँगा, लेकिन मनुष्य अपने लिए संकल्पों के दस प्रतिशत पर ही क्रियान्वयन कर ले, तो बहुत बड़ी बात होगी... खैर...
मुझे वह दिन याद है, जब मैं 30 साल का हुआ था; तब मेरी पक्की नौकरी लगे ज्यादा अरसा नहीं हुआ था और शादी भी कुछ महीने पहले हुई थी। 30 साल का होने को लेकर मेरे विचार बहुत रोमानी थे। जि़ंदगी में सब बहुत बढिया चल रहा था। प्रचलित मुहावरे में मैं सेटल हो गया था। फ़ैमिली बड़ी हो रही थी। अब 11 साल बाद ये बातें इतनी नई-सी लगती हैं; जैसे कल ही की बात हो।
40 पार कर जाना मध्यकाल की शुरुआत माना जाता है। यह जीवन का वो दौर है, जब आप चीज़ों को अपने अनुभव के दम पर आँकने के योग्य हो जाते हैं। 40 पार कर चुके लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे खिलंदड़पन न करें। मैं अपने ही अनुभव से यह जानता हूँ कि मुझमें थिरता आ गई है और उम्र के बढ़ते हुए साल मुझे ईश्वर के उपहार की तरह प्रतीत होने लगे हैं। मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे बढ़ती उम्र के दुष्परिणामों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। मैं स्वस्थ हूँ, सानंद हूँ। मैं अपने हर दिन को समग्रता से जीता हूँ।
आज मेरे मन में कुछ बेतरतीब से खय़ाल आ रहे हैं। अपनी बीती हुई जि़ंदगी को जब मैं पलटकर देखता हूँ, तो पाता हूँ कि मैंने जीवन से बहुत कुछ सीखा है। अपने उन्हीं विचारों को मैं आपसे शेयर करना चाहता हूँ। ये विचार बहुत रैंडम हैं, बेतरतीबी मेरे स्वभाव में है, इसलिए हो सकता है मैं किसी ज़्यादा गहरी बात को पीछे धकेल दूँ। ये हैं मेरे  जि़ंदगी के सिखाए दस सबक:
1. जो मिला है उसके लिए शुक्रगुज़ार रहिए -
मैं बचपन और किशोरावस्था में बहुत बिगड़ैल था। मुझे या तो सब कुछ चाहिए होता था कुछ भी नहीं। मुझमें सही-ग़लत की समझ नहीं थी। कॉलेज की शिक्षा समाप्त होने के बाद जब मेरे सामने 'क्या करेंका सवाल आकर खड़ा हो गया, तब मेरी जि़ंदगी में एक नया मोड़ आया। युवावस्था में मुझमें यह देखने की समझ विकसित हुई कि मेरे पास बहुत कुछ था जिससे मेरे साथ के बहुत लोग वंचित थे। मेरे परिजनों, मित्रों, शिक्षकों और मेरी जि़ंदगी ने मुझे इतना कुछ दिया जिसके लिए मुझे कोटि-कोटि आभारी होना चाहिए, बहुत पहले ही होना चाहिए था; लेकिन मैंने देर कर दी थी।
 तुम्हें भी चाहिए कि तुम्हारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है, जो कुछ भी बेहतर है उसकी पहचान करें और उसके लिए आभारी रहें। जो आपके पास नहीं है उसे पाने का प्रयास करें लेकिन जो है उसे सँजोकर रखें।
2. हर दिन एक बेहतर शख्स बनने की कोशिश करते रहिए -
बाबा रामदेव की लोग कई मामलों में आलोचना करते हैं लेकिन एक बात है जिसे रामदेव बार-बार कहते हैं और बिल्कुल सही कहते हैं, और व यह है कि... करने से होता है- मैं अपनी बात करता हूँ - वर्ष 2000 में जिसे एक ई-मेल भेजना बहुत कठिन काम लगता था वह आज बिना किसी कोडिंग की जानकारी के कई ब्लॉग्स सफलतापूर्वक चला रहा है और रोज़मर्रा में आनेवाली मुश्किलों का हल बिना किसी परेशानी के निकाल लेता है।
हर नया दिन आपके सामने कुछ नया सीखने, करने और बनने के असंख्य मौके लेकर आता है। हर नए दिन में आप अपनी पिछली गलतियों के लिए शर्मिंदा हो सकते हो और उनसे सबक लेकर आगे बढ़ सकते हो। आप कर सकते हो क्योंकि... करने से होता है। यह बात हमेशा याद रखिए कि प्रयास करने पर हो सकता है कि आप असफल हो जाएँ लेकिन यदि कोशिशें नहीं करेंगे तो 100 प्रतिशत असफल हो रहेंगे।
3. अपने अहंकार से छुटकारा पाइए -
हम सभी अपने अहंकार का शिकार बनकर बहुत से मामलों में पीछे रह जाते हैं। हमें कुछ सीखना होता है; लेकिन हमारी आत्म-गुरुता उसके आड़े आ जाती है। अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना और आत्मविश्वास होना सकारात्मक चीज़ है लेकिन अहंकार हमारी प्रगति में बाधक है। अहंकार वास्तव में हमारे आत्म रक्षा का तरीका है। यह हमें ठुकराए जाने और असफल होने से तो बचाता है; लेकिन हमारी जि़ंदगी में कुछ जोड़ता नहीं है। मनुष्य दूसरों से तभी प्रेरित हो सकता है जब उसमें विनम्रता हो। किसी को कुछ सिखाने के संबंध में भी यह सही है। जिस व्यक्ति में अहंकार नहीं है, वह खुद से ही आगे बढ़कर दूसरों की सहायता कर सकता है।
जिस व्यक्ति का अहंकार प्रबल न हो, वह आलोचना को सकारात्मकता से लेता है। सच कहूँ तो मैं भी हर कटाक्ष व आलोचना को सकारात्मकता से नहीं ले पाता; लेकिन मैं यह सीख रहा हूँ। आप भी सीखिए- अभी उम्र पड़ी है।
4. अपने भोजन की जाँच-परख करते रहिए -
महानगरीय जीवनशैली का शिकार होकर मैं अपने खान-पान की आदतों को बिगाड़ बैठा। इसका बड़ा ख़ामियाज़ा मुझे इसी वर्ष फरवरी में भुगतना पड़ा, जब मुझे दो सप्ताह से भी ज्यादा समय तक बुखार बना रहा। बुखार के कारण कुछ और रहे होंगे; लेकिन समय-असमय कैसा भी खानपान करने की बुरी आदत का प्रभाव मेरे शरीर पर दो-तीन सालों से ही दिखने लगा था। गले का बार-बार खराब होना और पेट की गड़बडिय़ाँ जैसे गैस मेरे स्वास्थ्य को बिगड़ रही थी।
हाल ही में मैंने अपने खानपान में व्यापक सुधार किया है और उन पदार्थों की पहचान कर ली है, जो मुझे नुकसान पहुँचाते हैं। मैं चाय-कॉफ़ी से परहेज़ करने लगा हूँ और सोडा, ड्रिंक्स का पूरी तरह से परहेज करता हूँ। मैं मानता हूँ कि खानपान का विषय बहुत निजी होता है और आप किसी की भी सलाह आँख मूँदकर नहीं मान सकते। यदि आप अपने स्वास्थ्य को सँजोए रखना चाहते हैं, तो अपने भोजन की परख करते रहिए और इस दिशा में अपनी जानकारी बढ़ाइए। वॉट्सएप के ज़रिए फैलाई जानेवाली हैल्थ-टिप्स को भी प्रामाणिक स्रोतों से जाँच लेने के बाद ही व्यवहार में लाइए।
5. अपने शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखिए -
मैं लगभग 15 घंटे कुर्सी पर बैठता हूँ। छुट्टियों के दिन भी मेरा लगभग पूरा दिन कंप्यूटर टेबल पर बीत जाता है। शरीर के हर जोड़ और मांसपेशी को चलायमान रखने के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि रोज़ थोड़ा व्यायाम की जाए। बैठे-बैठे शरीर कई तरह के दर्द और अकडऩ का शिकार हो जाता है। मैं बहुत ज्यादा काम करता हूँ और व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाता; क्योंकि एक थके हुए शरीर और दिमाग को पर्याप्त नींद की ज़रूरत होती है।
ऐसे में मैं अपने काम के दौरान ही छोटे-छोटे ब्रेक लेकर आसपास चहलकदमी कर लेता हूँ। रोज़ाना किसी-न-किसी काम के बहाने अपने ऑफि़स से थोड़ी दूर पैदल चलता हूँ और कभी भी लिफ़्ट का उपयोग नहीं करता। मैं जानता हूँ कि इतना करना ही पर्याप्त नहीं है। मैं अपने फि़टनेस गोल से दरअसल बहुत पीछे हूँ और कोशिश कर रहा हूँ कि अपने व्यायाम का स्कोर बढ़ा सकूँ। मेरा मानना है कि घर के पास ही कई छोटे-मोटे काम करने के लिए कार या बाइक से चल देना खराब पॉलिसी है; इसलिए मैंने साइकल खरीदने का भी निश्चय किया है। यदि आप व्यस्तता के कारण व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हों तो साइकल में निवेश करना आपके लिए भी सही रहेगा।
6. अपने लक्ष्य निर्धारित कीजिए-
मैंने अपने लक्ष्य कभी लिखकर नहीं रखे; हालाँकि मुझे ऐसा करना चाहिए था। मेरे साथ सबसे बुरी बात तो यह थी कि बहुत लंबे समय तक मेरे लक्ष्य स्पष्ट ही नहीं थे। मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था कि मुझे क्या करना है और कैसे करना है। आज मेरे सामने जो लक्ष्य हैं उन्हें यदि मैंने 20 साल पहले निर्धारित कर लिया होता, तो मैं बहुत दूर तक जा चुका होता; लेकिन ये एक काल्पनिक बात है।
मैंने अपनी ऑनलाइन उपस्थिति को लेकर जो लक्ष्य कुछ समय पहले बनाए थे, उनका परिणाम मुझे अब दिखने लगा है। तय किए गए समय के भीतर अपने गोल्स को प्राप्त कर लेने से बेहतर  कुछ नहीं हो सकता। अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करना मेरे लिए एक दृश्य अभ्यास है, जो हमेशा काम करती है। मुझे इसके लिए किसी तरह के नक्शा बनाने की ज़रूरत नहीं है। मैं कुछ करने के बारे में सोचता हूँ और उसमें अपनी पूरी ऊर्जा लगा देता हूँ। कुछ बड़ा करने के बारे में सोचना, और उसे छोटे-छोटे कदमों से प्राप्त करते जाना... यही मेरे लक्ष्य निर्धारित करने के तरीका है। शायद यह उपाय आपके लिए भी काम कर जाए, अन्यथा आप अपना तरीका अपना सकते हैं।
7. दूसरों को आपकी जि़ंदगी के फ़ैसले मत लेने दीजिए -
आपको बहुत से लोग मिलेंगे जो आपको बताएँगे कि आपके लिए क्या करना सही होगा। यह ज़रुरी नहीं कि उनमें से सभी आपको गलत सलाह ही दें। कुछ लोग आपको वाकई सही राह सुझा सकते हैं; लेकिन आपको हर व्यक्ति की बात को किसी विशेषज्ञ के सुझाव की तरह नहीं लेना है। अपनी ऑनलाइन दुनिया में मुझे हर कहीं यही सुनने को मिलता है कि मैं 9 से 5 के अपनी नौकरी में खुद को नष्ट कर रहा हूँ लेकिन मैं अपनी सीमाओं और परिस्तिथियों से बेहतर वाकिफ़ हूँ। मैं अपने अनुभव से यह बेहतर जान पाया हूँ कि मेरे लिए इस समय क्या करना सही है।
आप किसी की भी जीवनशैली को आदर्श मानकर उन्हें आपकी जि़ंदगी के फैसले मत लेने दीजिए। हर व्यक्ति के लिए सफल होने के पैमाने अलग-अलग होते हैं। हर व्यक्ति अपनी मंजिल पर पहुँचने के रास्ते खुद तय करता है। सफल-असफल होना और इसमें लगनेवाला समय बहुत से तथ्यों पर निर्भर करता है। सुनिए सबकी, लेकिन कीजिए वही जो आपका दिल कहे। और हाँ, बहुस्तरीय बाजार करनेवालों के बहकावे में कभी मत आइए।
8. अपने जुनून का पीछा कीजिए -
अपनी चाह, अपनी उम्मीदों, अपनी आकांक्षाओं, अपनी इच्छाओं  को आगे बढ़ाइ। यही एक जीवन है और आपको मौके बार-बार नहीं मिलेंगे।  उस विषय पर, उस दिशा में अपने कैरियर को मोड़ दें, जिसे आप प्यार करते हैं। करोड़ों लोग किसी और शख्स का मुखौटा लगाकर रोज़ काम पर जाते हैं और बोझिल कदमों से वापस घर आते हैं। आप अपने साथ ऐसा मत होने दीजिए। आपको परफ़ॉर्मर बनना है या ग्राफि़क डिज़ाइनरचाहे जो बनना चाहते हों, इंटरनेट के इस दौर में कोई काम छोटा नहीं है। 25 साल पहले स्कूल से बाहर निकलते वक्त मेरी पीढ़ी के बहुत से लोगों के सामने रास्ता साफ नहीं होने का संकट होता था। आज वह दुविधा किसी के मन में नहीं होनी चाहिए; क्योंकि मिलेनियल्स (जिनका जन्म पिछले 20-25 सालों के दौरान हुआ है) के पास विकल्पों की कोई कमी नहीं। अपनी चाहतों को पूरा करना उन्हें अपनी मंजि़ल तक ले जाएगा।
9. अपने डर को पहचानिए और उसका सामना कीजिए -
ऐसा बहुत कुछ है जिससे आप भयभीत होंगे। जब जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तो किसी अनिष्ट के होने का डर भी विकराल हो जाता है। जब मैं साइकल चलाना सीख रहा था तब गिरने की आशंका से मेरा डर इतना पुख्ता हो जाता था कि नजऱ सड़क के दूसरी ओर पड़े पत्थर पर ही टिकी रहती थी और हैंडल अपने आप ही साइकिल को उस दिशा में ले जाने लगता था। घनीभूत डर इसी तरह आपको बुरी परिस्तिथियों में धकेलता है और आपको पता भी नहीं चलता।
डर सभी को लगता है। कलेजा सभी का काँपता है। अच्छे से अच्छे धावकों की भी फ़ाइनल रेस के वक्त धुकधुकी लगी रहती है; लेकिन वे अपने डर को सकारात्मक ऊर्जा में बदलकर बाजी मार ले जाते हैं। पर्याप्त सावधानी लेकर लिये गए जोखिम व्यक्ति को मंजि़ल तक पहुँचा सकते हैं। बैकअप लिये बिना ब्लॉग की क्रूशियल सैटिंग्स या सी-पैनल में छेड़छाड़ करना कितना बेवकूफ़ी- भरा होता है ये मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। मैंने अपनी कई महीनों की मेहनत कई बार हमेशा के लिए खो दी है। लेकिन थोड़ा सँलकर और सीख-सीखकर तकनीक का डर मैंने अपने दिल से निकाल ही दिया। यदि मैं यह नहीं कर पाता तो इतना लंबा सफऱ तय करना मुश्किल था।
10. बचपन अच्छा था... उसे अतीत   में ही रहने दीजिए -
बचपन हमारे जीवन का सबसे खुशनुमा समय होता है। हमारे व्यक्त्त्वि का सबसे बड़ा अंश हमारे बचपन में ही निर्धारित हो जाता है। बचपन के साथ बहुत सी खट्टी-मीठी यादें जुड़ी होती हैं। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे स्वर्णिम बचपन जीने का मौका मिला। बचपन में ही मैंने परिष्कृत रुचियाँ विकसित कीं, जिन्हें बहुतेरे लोग हाईस्कूल पूरा करने का बाद जान पाते हैं।
बचपन में बहुत संरक्षित माहौल में पलने-बढऩे के कारण मैं जीवन के कठोर सबक समय रहते नहीं सीख पाया। लोगों के बीच जल्दी खुल नहीं पाना, बहिर्मुखता का न होना, दोस्त जल्दी नहीं बना पाना, भीड़ में बोलने से कतराना जैसे बहुत से व्यक्त्त्वि परीक्षण थे, जो मेरे बचपन से होते हुए युवावस्था में प्रवेश कर गए। इनसे उबरने में मुझे खासा वक्त और हिम्मत लगी है। आज भी में अपने बचपन और गुम हो चुकी मासूमियत को शिद्दत से याद करता हूँ; लेकिन उसकी भरपाई मैंने गंभीरता और परिपक्वता से की है।
अपने बच्चों के साथ बच्चा बनना, खूब ठठाकर हँसना और हरी घास पर सहसा लोटपोट हो जाना, इसका लक्षण है कि आपके भीतर का बच्चा कभी भी जाग्रत हो सकता है। उसे बनाए रखिए पर अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। बच्चों के समान बनिए, बचकाना नहीं। (हिन्दी ज़ेन से)

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