उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jan 1, 2022

जीवन दर्शनः दयालु बनें

-विजय जोशी   ( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

दया मानव को ईश्वर प्रदत्त श्रेष्ठ गुण है। दया ही वह गुण है जो हमारे सारे रिश्तों को परिभाषित करता है। उन्हें ठोस आधार प्रदान करते हुए स्थायित्व देता है। यह सभी जगहों पर हमारी स्थिति व स्वीकार्यता को स्थापित करता है। इसके अभाव में हम न तो जीवन को सही तरीके से जी सकते हैं और न ही इच्छित लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। आखिरकार किसी भी कार्य की सफलता के लिए हमें अपने सहयोगियों पर निर्भर तो होना ही पड़ता है और उसके लिए हृदय का विशाल होना नितांत आवश्यक है। साथियों की छोटी- मोटी गलतियों को नजरअंदाज करते हुए भूल जाने की प्रवृत्ति हमें तनाव रहित हो काम करने की कला सिखाती है। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वांछित सफलता प्राप्ति के मार्ग में बाधा की स्थिति में भी यही गुण हमें मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रख सकता है।

द्वापर में कृष्ण से जुड़ा एक प्रसंग है। कौरवों और पांडवों की सेनाएँ आमने -सामने आ गई। शंख बजने लगे, घोड़े खुरों से जमीन खूँदने लगे और हाथी चिंघाड़ने लगे। कुरुक्षेत्र के समरांगण में सर्वनाश तैयारी पूरी हो चुकी थी। ठीक तभी एक टिटहरी का आर्तनाद गूँज उठा।

दोनों शिविरों के बीच एक छोटी_ सी टेकरी थी। उसकी खोल में उसका घोंसला था। उसकी आँखें अपने बच्चों की ओर लगी थीं और कान धनुषों की टंकार पर। उसे चिंता स्वजीवन की नहीं अपने बच्चों की थी और नि:सहाय पुकार के रूप में आकुल मातृत्व सारे घोंसले में बिखर गया था।

कृष्ण के कानों तक यह पुकार पहुँची। असंख्य वीरों की बलि और युद्ध के कोलाहल के बीच भी जिनकी बाँसुरी के स्वर कभी विचलित नहीं हुए थे, उन्हीं कृष्ण को इस टिटहरी के स्वर ने झकझोर डाला। वे दौड़े गए। एक पत्थर उठाकर घोंसले के द्वार पर सहेज दिया ओर वापस आकर अपना स्थान ग्रहण करते हुए सेनापति भीम से कहा - महावीर भीम, अब तुम युद्ध का बिगुल बजा सकते हो।

उपर्युक्त उदाहरण का संदर्भ यही है कि हम कठिन से कठिन परिस्थिति में भी ईश्वर प्रदत्त दयालुता के भाव का हृदय से लोप न होने दें। यह कठिनतम कर्म में रत होने की स्थिति में भी हमारे मन के कोमल भावों को पूरी तरह सहेज कर रखता है तथा हम अपनी आत्मा पर किसी भी प्रकार का अनावश्यक भार ढोने से बचे रहते हैं।

दया  धर्म  का  मूल है , पाप  मूल  अभिमान।

तब तक दया न छांड़िये, जब लौं घट में प्राण॥

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- vjoshi415@gmailcom

85 comments:

संदीप जोशी इंदौर said...

भाई साहब आपकी दया के हम सब भाई बहन साक्षी हैं, बचपन मे जब भी हमे आपसे कुछ लेना होता था हम आपसे अनुरोध करते थे, और आप हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करते थे, दया का भाव आपमे शुरू से ही रह हैं जो अनवरत रूप से अभी भी हैं, हम सभी धन्य हैं आप जैसा भाई पाकर, और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हर जन्म में हमे आप जैसा भाई मिले, दया भाव का आपने अतिसुन्दर वर्णन किया हैं, आपको हम सभी की और से प्रणाम।

samaranand's take said...

बौद्ध धर्म में भी दया का अहम भूमिका है। Excellent article in your usual style.

Unknown said...

बहुत सुंदर आर्टिकल

Unknown said...

शानदार लेख सर जी

Kishore Purswani said...

बहुत ही सुंदर सीख देने के लिए ईश्वर भी अनेक रूप से हमें सिखाता है धन्यवाद महोदय

देवेन्द्र जोशी said...

दया मनुष्य का सर्व श्रेष्ठ आभूषण है यह भारत की आदि काल से मान्यता है।भारतीय साहित्य में इसके अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं। आज की इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की सर्वाधिक आवश्यकता है। आपका यह प्रयास सराहनीय है।

Ananda C said...

उत्कृष्ट महोदय। उकसाना सिखाया

कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी said...

सुन्दर कथा. हमें अपने सनातन धर्म को नही भूलना चाहिए. वह हमें मानवता की शिक्षा देता हैं. सारगर्भित लेख के लिए धन्यवाद.

Hemant Borkar said...

बहुत ही अच्छे ढंग से समझाया है दया का रूप। सादर नमस्कार व चरण स्पर्श।

pradeep gour said...

दयाभाव मानवता का मुख्य आभूषण है जिसे मानव को सदैव धारण करना चाहिए।

Dil se Dilo tak said...

बहुत ही अच्छे ढंग से प्रसंग सहित समझाया आदरणीय। एक बात मैं जोड़ना चाहता हूँ कि मदद की पुकार दयावान के कानों तक ही जाती है। बाकी सब अपने निजी हित पर केंद्रित रहते हैं। आप स्वयं एक दयावान व्यक्ति हैं एवं समाज के उत्थान हेतु सदैव कार्यरत हैं। मैं स्वयं साक्षी हूँ। बहुत धन्यवाद सर। आपका स्नेह व मार्गदर्शन हमें श्रेष्ठ मार्ग पर चलाएगा।
सादर-
रजनीकांत चौबे

Unknown said...

बहुत ही अच्छे ढंग से समझाया है सादर नमस्कार

Unknown said...

सादर नमस्कार , बहुत ही सुंदर लेख है सर जी

सुरेश कासलीवाल said...

दयाका आज के भौतिकवादी जीवन में बहुत अभाव हो गया है। आपका यह लेख बहुत सामयिक है।
प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक मार्क टवेन ने कहीं लिखा है, दया एक भाषा है जो गूंगा बोल सकता है, बधिर सुन सकता है और अंधा देख सकता है।

Vandana Vohra said...

Very nice article.....
Vandana Vohra

विजय जोशी said...

प्रिय संदीप, दरअसल मैं तो कुछ कर ही नहीं पाया। आदमी आचरण से बड़ा होता है आयु से नहीं और इस मायने में तुम मुझसे बहुत श्रेष्ठ हो। इसी स्नेह सहित मेरा गोलोक गमन हो यही अंतिम अभिलाषा है। सस्नेह

विजय जोशी said...

Thanks very much sir. Your motivation keeps me going. Kindest regards

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

प्रिय किशोर भाई, हार्दिक आभार साथ निभाने के लिये। सादर

विजय जोशी said...

आदरणीय, जीवन का यही मर्म आदमी समय रहते सीख सके तो जीवन धन्य। आपके प्रति हृदय से आभार। सादर

विजय जोशी said...

Dear Shri AnandaJi, Your value system, integrity and commitment for the organization is an example by itself, which was seen and felt by everyone during Your EDship tenure of BHEL, Bhopal. Thanks and regards

विजय जोशी said...

सही कहा आपने। आपके चरित्र के उदार पक्ष का मैं प्रत्यक्ष साक्षी हूं। हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

प्रिय हेमंत, हार्दिक धन्यवाद। यही स्नेह बना रहे। सस्नेह

विजय जोशी said...

भाई प्रदीप, आपका सेवा भाव भी तो दया का ही प्रतिरूप है। हार्दिक धन्यवाद।

विजय जोशी said...

प्रिय रजनीकांत, सेवा से बड़ा कोई सुख नहीं इसे तुमने प्रमाणित कर दिया बहैसियत G7 सेवा समूह के कुबेर रूप में। मैं रहूं न रहूं पर ये मिशन तुम सब साथियों सहित कायम रखोगे मुझे पूरा विश्वास है। सस्नेह

विजय जोशी said...

हृदय से आभार मान्यवर

विजय जोशी said...

सुंदरता तो देखनेवाले की नज़र में होता है। इसे ही नज़रिया कहा जाता है। सो हार्दिक आभार।

विजय जोशी said...

आदरणीय कासलीवाल जी, मन में दया का भाव अंतस के चक्षु खोल देता है। आपका दया भाव तो सर्वविदित है। हार्दिक आभार सहित। सादर

Mukesh Shrivastava said...

बहुत सुंदर लेख🙏🙏

विजय जोशी said...

Thanks very much Vandana, inspite being so busy with Your higher management position You always spare time to read and respond. Thanks very much.

Kishore Purswani said...

धन्यवाद सर आपके आशीर्वाद के लिए

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद भाई मुकेश। सस्नेह

Ananda C said...
This comment has been removed by the author.
Dil se Dilo tak said...

सब आपके मार्गदर्शन व संयोजन में हैं। आप G7 ग्रुप के कृष्ण रूपी सारथी हैं। सदा आपका आशीर्वाद मिलता रहे।

Ananda C said...

Thanks a lot sir fir your good words. Your foundation at BHEL is so strong even people like me also can perform optimally. Thanks once again. Excellent taught provoking.

कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी said...

आभार

pati said...

आप की लेखनी एवं संकलन अदभुद है
लेख पढ़ने के बाद मन से सादर प्रणाम

प्रेम चंद गुप्ता said...

"It is twice blest: it blesseth him that gives and him that takes."
आदरणीय, लेख पढ़ कर शेक्सपियर की पंक्तियां याद आ गई। ग्रैजुएशन के समय कालेज में पढ़ा था। यह प्रसंग इसलिए नहीं लिख रहा कि मैंने शेक्सपियर को पढ़ा है बल्कि इसलिए कि दया नामक गुण विश्वव्यापी है। जो ईश्वर मैं आस्था नहीं रखते वे भी दया में आस्था रखते हैं इस प्रकार यह सर्वोच्च मानवीय गुण प्रमाणित हो जाता है।
इसकी बड़ी विशेषता यह है कि यह देने वाले और पाने वाले दोनो के लिए ही हितकारी है। इस प्रकार यहां दया और सहानुभूति का अंतर स्पष्ट हो जाता है। सहानुभूति वश किया गया दान अथवा उपकार दया की श्रेणी में नहीं आता।
मैंने अभी हाल में ही एक उपन्यास पढ़ा 'तत्त्वमसि'। इसमें एक घटना इस प्रकार से है कि दो जुड़वा भाइयों में से एक भाई एक बाघ की हिंसा का शिकार हो जाता है। दूसरा भाई यह निश्चय करता है कि वह उस बाघ को अवश्य ही मार डालेगा। संयोग से एक रात वह बाघ एक फंदे में फंस जाता है। सर्च लाइट की तेज रोशनी में वह उस बाघ को पहचान भी लेता है। वह यह भी पहचान लेता है कि वह एक मादा बाघ है। इसके साथ ही उसे यह भी विचार आता है कि इसके बच्चे भी होंगे। और इसके बाद वह चुपके से जाकर बाघ को फंदे से आजाद कर देता है।
यह है वह मानवीय गुण जहाँ एक मनुष्य एक पशु की पीड़ा को भी अपनी ही पीड़ा समझ कर आचरण करता है। जैसा कि आपने भगवान कृष्ण का बहुत ही सटीक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
बहुत साधुवाद।

Vandana Vohra said...

It is a pleasure to read your articles in fact I look forward to reading them...

Unknown said...

Nice and apt narration. Your writings in prose and verse are equally powerful and impressive.

Manish Gogia said...

Excellent article Sir

Amulya Deota said...

Sir. Very good written and should be adopted by all human beings. Great 👍👍👏

विजय जोशी said...

Thanks very much Dear Amulya. With regards

विजय जोशी said...

So nice of you please. Thanks and regards

विजय जोशी said...

So kind of you. All courtesy wishes of colleagues like You. Thanks again. Regards

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

आदरणीय गुप्ताजी,
बिल्कुल सही सोच है आपका। कहा ही गया है। दया धर्म का मूल है। मार्क ट्वेन से लेकर सूर, तुलसी, मीरा सब तक यह विचार सदा से प्रवाहित होता रहा है
आपके द्वारा साझा किया गया संस्मरण अद्भुत है। अंतरात्मा जागने का सुंदर उल्लेख।
आपके साहित्यिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान की मैंने सदा मिसाल दी है।
यही अनुराग बना रहे। इसी कामना के साथ सादर आभार सहित

O. P. Singh said...

Excellent & Relevant Article .. Great sir.

Unknown said...

मनुष्य सभी प्राणियों में इसलिए श्रेष्ठ है। अपने अलावा भी वह जीव मात्र के प्रति दया का भाव का गुण प्रगट करते हैं।

सी आर नामदेव said...

सही कहा सर जी विपरीत परिस्थिति में इंसान अक्सर दया करना भूल जाता है।
पर स्थिति अनुकूल होते ही पछताता है जो इन बातों से परे हो जाता है वही तो सही मायने पुरुषार्थ है।
गुरुजी आपको सादर प्रणाम।

Jj said...

अति उत्तम आशय ....सर। गीता के इस वाक्या से पहली बार साझा होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.... इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। जयेश जनार्दनन ।

विश्वास भावे said...

एक मर्मस्पर्शी घटना और अति सुंदर प्रस्तुति।
विश्वास भावे

विजय जोशी said...

विश्वास भाई, हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

प्रिय जयेश, हार्दिक धन्यवाद। तुम्हारी पीढ़ी ही संदेश को आगे तक लेकर जायेगी। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय चंद्र, सही कहा। जो विषम को भी सम बना ले, सहायक सिद्ध हो सके वही तो परमार्थी पुरुष है। सस्नेह

विजय जोशी said...

Dear Om Prakash, Thanks very much.

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद।

विजय जोशी said...

Great. Passion for reading is the best mental exercise in the direction of positive thinking. So you deserve the best.

dinesh vishwakarma said...

अत्यंत सुंदर ह्रदय को स्पर्श यह लेख

विजय जोशी said...

Dear Sir,
Your sincerity & commitment in dealing with organisational responsibilities and connectivity at gross root level during corona period was heart touching for which You deserve the Best. Kind regards

Ananda C said...

Thanks a lot sir for your qords

Vijendra Singh Bhadauria said...

आपसे बहुत कुछ सीखा है सर और आज भी सीखने को मिल रहा है!

विजय जोशी said...

प्रिय विजेंद्र, यह तुम्हारे मानस की सादगी व सरलता है जो हमारा संबंध आज भी कायम है, वरना इस दौर में कौन किसकी परवाह करता है बगैर मतलब के। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय दिनेश, तुम संस्कृति के मूल आधार पर काम कर रहे हो, यह बहुत सराहना का विषय है। सस्नेह

Sk Agrawal said...

I sent my reaction

Khalil aslam qureshi said...

सही कहा सर आप के आदर्श के बिल्कुल अनुरूप लेख हे सर
कबीर दास जी ने खूब कहा हे
जां धर्म वहां लाभ जहां लोभ तहां पाप
जहां क्रोध वहां काल हे जहां क्षमा वहां आप
खलील असलम कुरैशी

Unknown said...

दया युक्त हृदय ही सच्चा मानव है। बाकी तो शरीर ही है। उत्तम उदाहरण से आपने समझाया ,सब पुन:स्मरण हो आया।धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।
सुनीता यादव

विजय जोशी said...

भाई क़ुरैशी, आप खुद एक बहुत बड़े शायर हैं, सो मर्म को समझने का पूरा माद्दा रखते हैं। हार्दिक धन्यवाद। सादर

विजय जोशी said...

साहित्य परिषद समूह की आप अकेली एकमात्र विदुषी हैं, जो नियमित रूप से लिंक देखकर मनोबल में अभिवृद्धि की स्रोत हैं मेरे लिये। सो हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

डॉ. अग्रवाल,दिखा नहीं। पर फिर भी जुड़े रहने के लिए हार्दिक आभार

Unknown said...

पुरुषोत्तम तिवारी, भोपाल
सर, भारतीय दर्शन दया, करुणा, प्रेम जैसे दिव्य सद्गुणों के आधार पर वसुधैव कुटुंबकम् की घोषणा करता है. समस्त प्राणियों में अद्वैत भाव की अनुभूति दया के चिन्तन पर ही एकात्म को स्थापित करता है. दया की भावना का जागृत होना ईश्वरीय तत्व है. जय श्री कृष्ण

विजय जोशी said...
This comment has been removed by the author.
विजय जोशी said...

प्रिय तिवारीजी, भारतीय दर्शन ऐसे अनेक सद्गुणों से भरा है। यह बात दूसरी है कि हम जानते सब कुछ हैं, मानते कुछ नहीं। इस दौर की यही त्रासदी है। यह दायित्व मूलतः अभिभावकों का है। आपके विचार तो सदा से प्रासंगिक रहे हैं. हार्दिक आभार. सादर

सुमन said...

दया प्रथमो धर्म, एकदम सही शुद्ध विचार , उदाहरण भी बहुत सटीक, इतना अच्छा संस्कारित लेख आपके कोमल ह्रदय से ही निकलता है, आपको सादर प्रणाम भाई साहब .... सुमन

सुमन said...

दया प्रथमो धर्म, बहुत ही सुंदर कोमल संस्कारित भाव, उदाहरण भी एकदम सटीक , ऐसे सुंदर भावपूर्ण विचार आपके ह्रदय में ही आते है भाई साहब, आपको सादर प्रणाम .... सुमन

विजय जोशी said...

प्रिय सुमन,
तुम मेरी विद्वान बहन हो, जिसने सुधा मूर्ति की तर्ज पर अपना जीवन ब्ल्यू कालर कठिन जाब से आरंभ किया. इस बात का मुझे सदा गर्व रहेगा. और अब बहैसियत प्रोफेसर भी तुम्हारा योगदान सर्वविदित है. मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया दी यह बात सुख दे गई. सस्नेह

सुमन शर्मा said...

आपका स्नेह आशिष

Mandwee Singh said...

सादर अभिवादन,
जब कुछ बहुत सुस्वादु व्यंजन खाने को मिलता है तो उसे बहुत प्रेम से धीरे -धीरे स्वाद का आनन्द उठाते हुए भोजन के अंत में ग्रहण किया जाता है।मेरे साथ भी ऐसा ही है ।आपकी लेखनी इतनी प्रेरणादायक और सारगर्भित होती है कि कई बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरता।
कभी -कभी तो "अविगत गति कछु कहत न आवत
जो गूंगे मीठे फल को रस अन्तर्गत ही भावत " वाली स्थिति हो जाती है।
शब्द मूक हो जाते हैं,भावना मुखर।
प्रथम टिप्पणी में जो आदरणीय संदीप भाई साहब ने बात कही है वह हमारे परिवार पर भी लागू है।
आपका और आदरणीय आंटी जी की स्नेह धारा का फैलाव आपकी दया धर्म की पृष्ठस्ति ही है।
आपके सभी आलेख नई विचारधारा, समुचित मार्गदर्शन और प्रेरणा से परिपूर्ण होते हैं।
आपकी प्रेरक लेखनी से यूं ही लाभान्वित होते रहें,तथा आपका आशीर्वाद प्राप्त होता रहे।इसी शुभकामना के साथ:--------
माण्डवी सिंह ,भोपाल।

sunil rathi said...

perfectly explained.
Such incident keep us on track of love and kindness.
Thanks for reminding values of dharma.

विजय जोशी said...

Dear Rathiji,
we have shared many such moments together on selfless missions.
Thanks very much. Regards

विजय जोशी said...

माण्डवी जी,
हार्दिक आभार. कई बार खून के रिश्तों से भी ऊपर जीवन में सार्थक स्वरूप सम अवतरित होते कुछ व्यक्तित्व पावनता के साथ. आप दोनों ऐसे ही हैं, जो सालों से परिवार सदस्यों के रूप में जुड़े हैं.
जहां तक लेख की बात है, इसमें कुछ भी नया नहीं. सब कुछ सर्वविदित है. प्रयास केवल ऊपरी पर्त हटाकर प्रस्तुति का विनम्र प्रयास है.
हां यह बात अवश्य है कि अपनों की पसंदगी मन को सुख के पल दे जाते हैं. सो सस्नेह

विजय जोशी said...

भाई प्रदीप, बिल्कुल सही कहा आपने. हार्दिक धन्यवाद. सादर

Yogendra Pathak said...

Bahut sundar sandesh. Hardik badhai

Yogendra Pathak

विजय जोशी said...

Thanks very much sir for the encouragement. Kind Regards