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Dec 5, 2020

क्षणिकाएँ- वक्त की रेत पर, छोड़ने हैं निशाँ...!

प्रीति अग्रवाल

1.
माँगने से यहाँ
कभी कुछ न मिला....
हमने माँगकर
माफ़ी तक
देख ली...!
2.
भुलाने की कोशिश,
करूँगी तमाम...
माफ़ करना 
मगर,
मेरे बस में नहीं...!
3.
ज़िन्दगी की गाड़ी
चले भी तो कैसे....,
एक पहिया 
अड़ा है....
एक ही जगह खड़ा है।

4.
तुम्हें
माफ करने की
कोशिश तो की थी....
मगर क्या करूँ
ज़ख़्म
अब भी हरा है....!
5.
कसम है तुम्हें
यूँ न देखा करो.. 
धड़कनें जो थमी,
मर जाएँ
न हम...!
6.
उठो और बढ़ो,
यूँ न रेंगते रहो...
वक्त की
रेत पर,
छोड़ने 
हैं निशाँ...!
7.
बात छोटी नहीं
बात थी वो बड़ी...
वो,

जो तूने कही...
जो
मैं सह न सकी...!
8.
भूल जाने की आदत,
नियामत ही है....
याद रहता जो सब,
जी न पाता कोई...!
9.
गिले -शिकवे
थक चुके हैं बहुत....
अब चलो
ख़ाक डालें....
चलो
सब भुला दें...!  
10.
इक बात पे तेरी
जो मरते
तो कहते.....
दीवानगी की बस्ती
बसे जा रही है.....!
11.
आधेआधे का वादा
है हमने किया...
जो मैं थक गई
तू न रुकना पिया...!
12.
चले जो साथ हम
रास्तेसंग हुए...
उन्हें भी भा गए
गीतअपनी प्रीत के!
13.
सौंह रब की तुझे
जो किसी से कहा....
वो जो
मैं कह न पाई....
वो जो
तूने सुन लिया ...!
14.
जीवन में,
सुख-दुख,
कुछ भी नही...
जो मानो...तो दुख है,
जो मानो ..तो सुख .....!

सम्पर्कः (agl.preeti22@gmail.com)

4 comments:

शिवजी श्रीवास्तव said...

प्रीति जी की क्षणिकाएँ विविध मनोभावों को बहुत सहज ढंग से व्यक्त कर रही हैं।बधाई

प्रीति अग्रवाल said...

आदरणीय आपके प्रोत्साहन के लिए अनेकों धन्यवाद!!

Ramesh Kumar Soni said...

जीवन चलते जाने का नाम है ।
जीवन की हकीकतों से रु ब रु कराती अच्छी रचना - बधाई ।

Sudershan Ratnakar said...

विविध भावों के समेटे ,जीवन के सत्य के उजागर करतीं क्षणिकाएँ। बधाई।