- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
ऐसा क्यों होता है
कि कभी- कभी
कुछ अपरिचित चेहरे
जिन्होंने हमारा
कुछ भला नहीं किया
जिनके साथ हमने
एक क्षण भी नहीं जिया
अचानक लगने लगते हैं
अपनों से
पिछले पहर के
सुखद सपनों से
और हमें बहुत भाते हैं
अंतरतम तक सुहाते हैं
जबकि कभी- कभी
ऐसा भी होता है कि
कुछ जाने पहचाने चेहरे
जिन्होंने हमारा
कोई नुकसान नहीं किया
हमसे कभी कुछ नहीं लिया
हमें बिल्कुल नहीं भाते
जरा भी नहीं सुहाते।
एक दिन यह बात
जब मैंने तुमसे कही
तो पहले तो तुम सकुचाई
फिर मुस्काई और बोली
यही बात
जब मैंने पहले पहल
तुमसे कही थी
तो तुम्हें यकीन नहीं आया
तुमने इसे
मेरा भ्रम बताया
इसीलिए
आज फिर दोहराती हूँ
वही लय
दुबारा गुनगुनाती हूँ
कि संबंध
देश, काल, सीमा
जाति, धर्म, भाषा
रंग, रूप, उम्र
सबसे परे होते हैं
और हम उन्हीं के साथ जागते
तथा उन्हीं के साथ सोते हैं।
और यह भी
बिलकुल जरूरी नहीं कि
हर रिश्ते के पीछे
कोई तर्कसंगत कारण ही हो
जीवन में कुछ चीजें
अकारण भी तो होती हैं
जो हमारे जीवन में
सुख के बीज बोती हैं
तथा इस तरह
उस ईश्वर की सत्ता से
हमारा साक्षात्कार कराती हैं
आत्मा को
परमात्मा से मिलाती हैं
वरना उसका वजूद
कौन मानता
और उसके होने का एहसास
कोई कैसे जानता।
तुम्हारी बात ने
एक बार फिर मुझे
अंदर तक छुआ
हृदय की गहराई में
बहुत कुछ हुआ
और मैंने
मन के नक्शे पर
तुम्हारे अस्तित्व को
एक बार फिर
पूरी शिद्दत के साथ
महसूस किया
उस एक पल को मैंने
केवल तुम्हारे साथ जिया।
हाँ तुम ठीक कहती हो
मैं ही नादान था
ज़िंदगी की उलझनों में
परेशान था
पर अब इस रूहानी रिश्ते को
पूरे मन से स्वीकारता हूँ
और ऐसा क्यों कर रहा हूँ
यह भी अच्छी तरह जानता हूँ
यही नहीं अब तो
तुम्हारे प्रेम की गहराई को
अंतरतम तक पहचानता हूँ।
इसलिए अब तुम्हें
मुझसे कोई शिकायत
नहीं रहेगी
तुम जब जिस क्षण
मुझे चाहोगी
अपने पास पाओगी
अंदर झाँकोगी
अपना ही जानोगी
मेरी बात का विश्वास
तुम्हारी मजबूरी नहीं
तुम मेरी हर बात मानो
यह भी जरूरी नहीं
यदि सच कहूँ तो
मेरे तुम्हारे बीच
अब कोई दूरी नहीं
अब तो यह मन
तुम्हारे प्रति
पूरी तरह समर्पित है
और मेरी बात
यहीं खत्म नहीं होती
मेरे सारे पुण्यों का फल भी
अब केवल तुमको
और केवल तुम्हीं को
अर्पित है।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
मो. 09826042641, E-mail- .joshi415@gmail.com
58 comments:
मानवीय मनोविज्ञान का सूक्ष्म विवरण देती हुई सुन्दर कविता है।
मन से मन मिलने की अद्भुत व्याख्या। कोई एक अदृश्य शक्ति अवश्य है जो दो व्यक्तियों को मिलाती है। वर्ना अचानक ही किसी से एक बार मिलने से ही प्रगाढ़ संबंध बन जाते हैं और अन्य के साथ लगातार प्रयास के बाद भी मन नहीं मिल पाते हैं। बहुत सुन्दर रचना।
सर, बहुत ही सुंदर रचना.
बहुत खूब । धन्यवाद सर जी
बहुत खूब । धन्यवाद सर जी
आनंद सी
Very beautiful poem, ya, it happens when you connect at soul level with someone
पिताश्री 'ऐसा क्यों होता है ' कविता मानवीय व्यवहार का सटीक विवरण है. पिताश्री आपसे मेरी पहचान सन 2010 में हुई थी और तब मैं झाबुआ रहता था। तभी से आपके लेख ईमेल पर पढता था।
पिताश्री आज ये लगता आपसे कोई पुरानी पहचान या पूर्वजन्म का कोई रिश्ता है जो अधूरा रह गया । पिताश्री को सादर नमस्कार व चरण स्पर्श। पिताश्री को धन्यवाद 🙏🙏
Thats a splendid one. I recalled few instances -having met them with instant positivity 🙏
बिलकुल सही कहा आपने सर.. कुछ रिश्ते स्वार्थ व खूनी रिश्ते से परे होते हैं.. यह रिश्ता है मानवता का😊🙏🏼
बधाई सर 💐
आदरणीय सर,
मन को छू लेने वाली बहुत ही नाजुक एवं सुंदर कविता । शायद हर मनुष्य को अपने जीवन में कभी न कभी किसी ना किसी के लिए ऐसा एहसास जरूर हुआ होगा ।
वैसे तो कविता अपने आप में परिपूर्ण एवं सारगर्भित है किंतु यह एक खास रिश्ते को ही केंद्रित करती महसूस होती है इसलिए एक बात मैं अपनी ओर से भी जोड़ना चाहूंगा, वह यह की ऐसा एहसास हमे किसी के भी लिए हो सकता है, यहां तक की किसी पशु अथवा पक्षी या अन्य जीव के लिए भी (मेरे निजी विचार अनुसार )
धन्यवाद ।
बात जब प्रेम की हो, और वह भी सात्विक प्रेम तो सब कुछ दर्पण की भांति साफ और चमकदार हो जाता है। जैसे कि यह कविता।
आरम्भ और विस्तार जितना सुगठित है। अंत भी उतना ही सशक्त। समर्पण प्रेम की सम्पूर्णता और सार्थकता है। यह एक स्वाभाविक परिणति है। इस स्वाभाविकता को जिस प्रकार काव्यात्मक जामा पहनाया गया है वह सुन्दर और सराहनीय है।
बहुत बधाई।
It happens with me when I Shake hand 👌
बहुत सुंदर 👍 - मुकेश श्रीवास्तव
जोशी जी , आपने मानवीय मनोभावों को बहुत ही सरल वह सुंदर शब्दों में कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है आपके विचार हमारे सनातन हिंदू धर्म की मूल भावनाओं को फिर से प्रति लक्षित करते हुए ये बताते हैं कि कैसे एक अनजान रिश्ते को धीरे धीरे हम अपना लेते हैं । वह रिश्तों के संबंध प्रगाढ़ होते जाते हैं । बहुत ही सराहनीय वा प्रभावी प्रस्तुति आपके द्वारा। डॉ मुकेश आरोरा
बहुत सुन्दर सर 🙏🙏
प्रेम के रिश्ते जन्मों का बंधन होते हैं।
निशीथ खरे
प्रिय भाई निशीथ, हार्दिक आभार।
Beautiful poem sir, will touch everyone's heart beautiful ❤️
D Roy Choudhury
परम आदरणीय जोशी जी,
अति सुन्दर अभिव्यक्ति। अन्तर्मन को झकझोरने वाली जो आपकी लेखनी से ही सम्भव है। ईश्वर आपको स्वस्थ रखें व दीर्घायु करें।
-वी.बी.सिंह,लखनऊ।
अति सुंदर ऐसा अनुभव बार हुआ है और तब सोचता हूँ ऐसा कैसे संभव है
अनुभबि कबिता,full of wisdom!
हार्दिक आभार आदरणीय. सादर
प्रिय किशोर भाई, हार्दिक आभार.
आदरणीय सिंह सा.,
यह तो अंतस के सफ़रनामे का विनम्र प्रयास मात्र है. हार्दिक आभार. सादर
दीपांकर भाई, हार्दिक धन्यवाद. सादर
प्रिय बंधु मुकेश, हार्दिक धन्यवाद.
हार्दिक आभार
प्रिय रजनीकांत, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
Dear Daisy, Thanks very very much
Dear Vandana, You're right. Though connecting at soul level is difficult, but pleasure and peace lies there only. Thanks very much
आदरणीय आनंदा जी, कन्नड़ भाषी होकर भी जिस स्नेह व उदारता से कठिनाई के बावजूद पढ़कर मनोबल बढ़ाते हैं वह वर्णनातीत है. राष्ट्रीय सौहार्द की मिसाल हैं आप. हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय महेश, हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
आदरणीया, विद्वान तो हैं ही आप, पर समय संकट के बावजूद जिस तरह से सर्वप्रथम प्रतिक्रिया दी वह वर्णनातीत है. मनोभावों को परख पाना भी अद्भुत कला है. हार्दिक आभार सहित सादर
आदरणीय, सही कहा आपने. संबंधों की यही सौगात तो सुख का सोपान व साधन बनकर जीवन को सार्थक एवं सारगर्भित करती है. हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय हेमंत, अद्भुत हैं आप वरना इतनी पुरानी बात कौन याद रखता है। खुद मुझे भी याद नहीं थी। स्मृति के पन्नों की गर्द हटाई आपने। संवेदनशीलता ही संबंधों की सार्थकता का पैमाना है। आपकी बात पर अपनी एक कविता की पंक्तियां मानस में उभर आईं : 🌷
- पुनर्जन्म मैं नहीं मानता
- पिछले जन्मों की नहीं जानता
- पर जो सच
- आज तक तुमसे नहीं कहा
- आज कहता हूं
- कि मेरा तुम्हारा जरूर
- पूर्वजन्म का कोई नाता है
- जो इस जन्म तक आता है
- वरना कौन यह सब निभाता है.
हार्दिक आभार सहित सस्नेह 👍🏾
प्रिय शरद, अद्भुत. तुमने तो बात को वृहद आयाम ही दे दिया. विशाल, आकाश सा विस्तृत. यह साफ़दिली का सूचक और पढ़कर योगदान के सार्थक पैमाने की पहचान है. हार्दिक धन्यवाद सद सस्नेह
पिताश्री को साष्टांग नमस्कार 🙏कोई शब्द नहीं पिताश्री आपके लिखे हुए पर 🙏🌹🙏
दिल से दिल का मिलन और फिर रूह तक पहुंच जाना, मानव जीवन सफल है, अगर कुछ रिश्ते भी ऐसे बन जाए।
बिलकुल सही कहा आपने सर. कुछ रिश्ते खूनी रिश्ते से परे होते हैं.। यह रिश्ता है मानवता
आदरणीय गुप्ता जी, आप तो बहुत विद्वान हैं. सात्विकता में ही तो सार है. प्रेम एक ऐसा उदार तत्व है जीवन का जो देने और पाने वाले दोनों का उद्धार करता है। आप तो लेखनी के धनी हैं
- प्रेम प्रार्थना की तरह एक मंदिर का दीप
- जिसको यह मोती मिले वह बड़भागी सीप
हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय सौरभ, सही कहा खून के रिश्ते से ऊपर होता है मन का रिश्ता, मानवता का रिश्ता, संस्कारों का रिश्ता. हार्दिक धन्यवाद. सस्नेह
मुकेश भाई, बिलकुल सही कहा आपने. यही भारतीय दांपत्य जीवन के सुचारु व सफल जीवन का सूत्र है. पारिवारिक जीवन की सुदृढ़ नींव का आधार भी. मनोयोग से पढ़ने हेतु दिल से आभार. सादर
धन्यवाद सरजी
How do you think so beautifully sir?
Thanks dear for giving us such a beautiful poem. Each line express the real relationship of humanity and actually true meaning of any relation is how you treat it and not the blood relation only.
🙏
आदरणीय सर
सादर प्रणाम,
संवेदना की सरस भावभूमि पर सूक्ष्म अनुभूतियों की स्याही से मनोविज्ञान की लेखनी से रची गई यह कविता सभी पाठकों के हृदयस्थली में सदा विचरती रहेगी।
किसी कठिन विषय को सरस और सरल बनाकर प्रस्तुत करने की कला आपकी लेखनी की अद्भुत विशेषता है।इस रचना को कई बार पढ़ने के बाद भी मन नहीं भरता। मां सरस्वती की असीम कृपा है आप पर।
पुनः सादर अभिवादन।
आदरणीय भाईसाहब..
आपने रिश्तों और प्रेम की बहुत सही,सारगर्भित और उम्दा व्याख्या की हैं ..
जीवन के सफर में जन्म से बंधे रिश्तों
के अलावा और अन्य कई राही मिलें
कुछ साथ चलें, कुछ छुट गए ,
कुछ याद रहें, कुछ को भूल गए
जो याद आते हैं वह क्यों याद आते हैं
मन आत्मा का ये प्रेम बंधन क्यूं
किसी से अपनेआप जुड़ जाता हैं
और किसी से जुड़ ही नहीं पाता,
आत्मा की शुद्ध तरंगो का ,आपस में
अंतस की गहराइयों से मिलना हैं ये
सादर प्रणाम
मधु शर्मा
बहुत सुन्दर भावात्मक चित्रण!
प्रिय अरविंद भाई, हार्दिक आभार। सादर
Dear Vijendra, Your Company gives me strength to continue this journey. With Regards
Thanks very very much for deep analysis of thought behind this. With kind regards
प्रिय मांडवी, सरस्वती से अधिक तो आपका स्नेह है जिसके कारण प्रयास संभव हो पाता है। सादर सस्नेह।
प्रिय मधु, अद्भुत। बहुत ही सुंदर सृजन परिलक्षित है उपरोक्त पंक्तियों में। अपनी कविताएं मुझसे साझा करो। इस प्रतिभा से अब तक अनजान रहा हूं। सस्नेह
ह्रदय स्पर्शी मार्मिक अभिव्यक्ति। अपनो मे अपना मात्र दिल ही ढूँढता है। सादर प्रणाम।
राजेश भाई, आप तो स्वयं निर्मल प्रेम के साक्षात स्वरूप हैं। हार्दिक आभार। सादर
आदरणीय सर य़ह मात्र सुन्दर अभिव्यक्ति ही नहिं वल्कि अंतर्तम से उठे भाव हैं जिसमें आत्मीय भाव हैं साथ ही आध्यात्मिक दृष्टी से देखें तो दो दिलों का ओरा है तुरंत एक दूसरे को आकर्षित कर देता है। बेह्तरीन भाव अभिव्यक्ति को नमन
D C Bhavsar
हार्दिक आभार सादर
हार्दिक आभार मित्र
Post a Comment