- सूरज प्रकाश
किसी भी लेखक की अपनी खुद की दुनिया बहुत पेचीदगी भरी होती है और कई बार उसे उसके लिखे हुए के जरिये नहीं पहचाना जा सकता। लेखक के भीतरी और बाहरी संघर्ष, उसकी कुछ खास आदतें, उसकी जीवन शैली, लिखने के लिए खुद को तैयार करने के कुछ नायाब तरीके, उसकी तकलीफें और कई बार उसकी जीवन शैली के हैरान कर देने वाले पक्ष हमें लेखक के नज़़दीक ले जाते हैं और हमें यकीन होने लगता है कि लेखन करना अय्याशी करने जैसा तो नहीं ही होता। लेखन एक ऐसी साधना है जिसकी अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम से तुलना नहीं की जा सकती।
दुनिया भर के लेखकों के बारे में पढ़ने पर पता चलता है कि शायद ही कोई ऐसा लेखक हो जिसे तरह-तरह की तकलीफ़ों से न गुज़रना पड़ा हो। किसी लेखक का बचपन ही बचपनविहीन रहा तो किसी लेखक को भयंकर आर्थिक और दूसरी तरह की तकलीफों से दो चार होना पड़ा। कई ऐसे भी लेखक रहे जो जीवन के आये दिन के संघर्षों का डट कर मुकाबला नहीं कर पाये और शराब की शरण में चले गये। कुछ लेखक बेहतरीन रच कर खुदकुशी कर बैठे। कई लेखक ऐसे भी रहे जिन्होंने अद्भुत रचा लेकिन उन्हें उनके काम की तुलना में मान्यता या तो मिली ही नहीं या कम मिली या देर से मिली या मिली तो मरने के बाद मिली।। चाहे कुछ भी रहा हो, हर लेखक ने अपना बेहतरीन लेखन आने वाली पीढ़ियों को दिया। दुनिया का हर लेखक अपने शब्दों के जरिये हमारे बीच आज भी ज़िंदा है। वैसे भी कहा जाता है कि लेखक कभी मरता नहीं, वह अपने शब्दों के जरिये देश, काल और भाषा की सारी सीमाएँ लांघता हुआ हमेशा ज़िंदा रहता है।
हर लेखक दूसरे लेखक से अलग होता है। उसकी आदतें, उसकी लिखने की शैली, उसका लेखन के लिए खुद को तैयार करना अपने आप में रोचक अध्ययन होता है। हर लेखक इस मायने में अनूठा होता है कि वह दिन के किस समय लिखता है, एकांत में लिखता है या शोर- शराबे में लिखता है। शब्द गिनकर लिखता है या हर तरह के लेखन के लिए अलग रंग के कागज स्याहियाँ चुनता है। कई ऐसे भी लेखक रहे जो खड़े हो कर या लेट कर लिखते थे। कोई लेखक पहाड़ पर जा कर ही लिख पाता है तो किसी को घर का शोर- शराबा ही लिखने के लिए प्रेरणा देता है। कुल मिला कर ये एक बहुत ही रोचक अध्ययन है और इस बात पर भी रोशनी डालता है कि लेखक कुछ न कुछ रचते रहने या राइटर्स ब्लॉक से बचने के लिए क्या क्या जुगतें नहीं भिड़ाता।
आइये इस अंक से क्रमशः पढ़ते हैं दुनिया भर के लेखकों की कुछ ऐसी रोचक बातें जो लेखकों की भीतरी दुनिया में ले जाती है-
• अर्नेस्ट हेमिंग्वे, चार्ल्स डिकेंस, वर्जीनिया वुल्फ, लेविस कैरोल और फिलिप रोथ और आचार्य नगेन्द्र जैसे लेखक खड़े होकर लिखते या टाइप करते थे। बीच-बीच में हरिवंश राय बच्चन भी खड़े होकर लिखते रहे।
• आगाथा क्रिस्टी अपने उपन्यासों के लिए कत्ल के प्लॉट सोचने के लिए बाथ टब में बैठकर सेब कुतरा करती थीं।
• गर्टूड स्टेन पार्क की गई कार में लिख सकते थे।
• व्लादीमीर नबोकोव भी कार में बैठ कर लिखते थे। कार के भीतर का सन्नाटा लिखने के लिए एकदम उम्दा माहौल देता था। वे कई बार बाथ टब में लेटे हुए लिखने का आनंद उठाते थे। उन्होंने अपने अधिकतर नॉवेल 3X5 इंच के कार्डों पर लिख कर ही तैयार किये जिन्हें वह पेपर क्लिप लगा कर छोटे छोटे बक्सों में तरतीब से लगा कर रखते थे।
• जॉर्ज ऑर्वेल, मार्क ट्वेन, एडिथ वार्टन, विंस्टन चर्चिल और मार्सेल प्रोउस्ट आदि लेखक अपना अधिकतर लेखन बिस्तर में लेटकर ही करते थे।
• फ्रांसीसी नाटककार एडमंड रोस्ताँ भी अपने बाथ टब में बैठ कर लिखा करते थे।
• रेमंड कार्वर जिन्हें अपनी कहानियों के लिए अमेरिकी चेखव का खिताब हासिल था, अपनी कार में बैठ कर लिखा करते थे।
• जोसेफ हेल्लर को बस की सवारी में ही लिखने के विचार आते थे।
• ट्र्युमैन कपोते पीठ के बल लेट कर लिखते थे। एक हाथ में शेरी और दूसरे हाथ में पेंसिल। लगातार सिगरेट के कश लगाते और कॉफ़ी पीते। जब शाम ढलने लगती तो कॉफ़ी की जगह मिंट चाय आ जाती। फिर शेरी और अंत में मार्टिनी। वे अपना बेहतरीन लेखन हाइवे पर बने मोटल में ही कर पाते थे। एक बार एक स्क्रिप्ट लिखनी थी तो एक ट्रेन टिकट खरीदकर वे पूरी यात्रा में लिखते रहे। न्यूयार्क और शिकागो के बीच वे 140 पन्ने घसीट चुके थे।
• हिंदी कवि दिविक रमेश शुरू- शुरू में शहतूत के पेड़ पर बैठकर कविता लिखते थे।
• पंजाबी कहानी के जनक नानक सिंह गरीबी के बावजूद पहाड़ पर जाकर लिखते थे।
• हिंदी कहानीकार मोहन राकेश भी पहाड़ पर जा कर लिखते थे। वे अपना लेखन टाइराइटर पर करने वाले हिंदी के शुरुआती लेखकों में से थे।
• मौका निकाल कर राजेन्द्र यादव और उपेन्द्र नाथ अश्क भी लिखने के लिए पहाड़ों पर जाते रहे।
• नाजिम हिकमत ने अपनी कविताएँ जेल में रहते हुए सिगरेट की डिब्बियों पर लिखी थीं।
• बेन फ्रेंकलिन पहले अमरीकी थे जिन्होंने बाथ टब खरीदा था। वे उसी में लेट कर लिखते थे।
• मार्क ट्वेन और राबर्ट लुई स्टीवेन्सन लेटकर लिखते थे जबकि लेविस कैरोल, थॉमस वुल्फ खड़े होकर लिखते थे।
• सर वाल्टर स्कॉट घोड़े की पीठ पर सवार होकर कविता रचते थे।
• फिलिप रोथ अमेरिकी लेखक खड़े हुए, चहलकदमी करते हुए सोचते हुए लिखते हैं। हर पन्ना लिखने के बाद आधा मील चलते हैं।
• जैक केरॉक ने ऑन द रोड का पहला ड्राफ्ट 120 फुट लंबे टेलिटाइप रोल पर तीन हफ्ते में लिखा था।
• फ्रांज काफ्का न्यूडिस्ट कैंपों में जाया करते थे; लेकिन अपनी पैंट उतारने से मना कर दिया करते थे। उन्हें बाकी लोग The Man in the Swimming Trunks के रूप में जानते थे।
• नोएल कावर्ड का ये दावा था कि वे हर सुबह टाइम्स में मृत्यु के शोक संदेशों वाला कॉलम पढ़कर अपना दिन शुरू करते थे। अगर उसमें उनका नाम नहीं होता था, तो वे काम करना शुरू कर पाते थे।
• मौलियर की मृत्यु अपने ही एक नाटक में अभिनय करते हुए मंच पर ही हुई थी। संयोग से वे भ्रम रोगी (हाइपोकांड्रियाक) की भूमिका कर रहे थे।
• मिकी स्पीलेन ने अपने उपन्यास किस मी, डैडली की 50,000 प्रतियाँ इसलिए वापिस मँगवा ली थीं; क्योंकि शीर्षक में कौमा (,) लगना रह गया था। ये प्रतियाँ नष्ट कर दी गयी थीं।
• वेस्टर्नस लुई लामौर के लेखक की रचनाएँ प्रकाशित होने से पहले 200 बार उनकी रचनाएँ लौट चुकी थीं। अब उनके उपन्यासों की दुनिया भर में 32 करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं।
• 1862 में उपन्यासकार सर एडवर्ड बुलवेर लिटन ने सबसे पहले कहा था कि कलम में तलवार से ज्यादा ताकत होती है (the pen is mightier than the sword) इस वाक्यांश के लिए उन्हें ग्रीस का राजमुकुट देने की पेशकश की गयी थी।
• आधुनिकतावादी कथाकार कैथरीन मैंसफील्ड ने अपनी पहली शादी में शोक का जोड़ा पहना था और शादी की रात को ही पति को छोड़ कर चली गयी थी।
• टूमैन कपोते अपना कोई भी काम शुक्रवार को शुरू नहीं कर पाते थे। यहां तक कि अगर उनके होटल के कमरे का नंबर 13 हो तो वे कमरा बदल लेते थे। वे ऐशट्रे में सिगरेट के तीन टोटों से ज्यादा कभी नहीं छोड़ते थे। अगर टोटे ज्यादा हो जाएँ तो अपने कोट की जेब में ठूँस लेते।
क्रमशः आगामी अंक में-
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