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Apr 1, 2023

तीन बाल कविताएँ

- प्रभुदयाल श्रीवास्तव






1. खुद सूरज बन जाओ न

चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,

फुरर-फुरर कर कहाँ चली।

दादी अम्मा जहाँ सुखातीं,

छत पर बैठीं मूँगफली।


चिड़िया रानी चिड़िया रानी,

मूँगफली कैसी होती।

मूँगफली होती है जैसे,

लाल रंग का हो मोती।


चिड़िया रानी चिड़िया रानी,

मोती मुझे खिलाओ न।

बगुला भगत बने क्यों रहते,

बनकर हंस दिखाओ न।

चिड़िया रानी चिड़िया रानी,

हंस कहाँ पर रहते हैं।

काम भलाई के जो करते,

हंस उन्हीं को कहते हैं।


चिड़िया रानी चिड़िया रानी,

भले काम कैसे करते।

सूरज भैया धूप भेजकर,

जैसे अंधियारा हरते।


चिड़िया रानी चिड़िया रानी,

सूरज से मिलवाओ न।

अपना ज्ञान बाँटकर सबको,

खुद सूरज बन जाओ न।







2. रोटी कहाँ छुपाई

लगे देखने टेलीवीज़न,

चूहे घर के सारे।

देख रोटियाँ परदे पर,

उछले खुशियों के मारे।


सोच रहे थे एक झपट्टे,

में रोटी लें बीन।

लेकिन बिजली बंद हुई तो,

रोटी हुई विलीन।


लिए कई फेरे टी वी के,

बड़ा गज़ब है भाई।

बिजली बंद हुई, टीवी ने

रोटी कहाँ छुपाई?








3. करने दो 
आबाद हमें घर

काँधे बस्ता लादे- लादे ,
हालत हो गई खस्ता जी ।

नहीं छुएँगे बस्ता जी ।
नाम न लो पुस्तक कॉपी का,
फेको रबर पेन्सिल दूर ।
सन्डे की छुट्टी में पढ़ने,
लिखने का हो दूर फितूर ।
हमको ख़ा लेने दो छककर,
गरम-समोसे खस्ताजी ।

 होम वर्क जैसे शब्दों को ,
 करो प्रवाहित निर्झर में ।
 कूदम-फादम, हल्लम-गुल्लम
 का आरक्षण हो घर में ।           
 स्कूलों की कूट-चाल में,
 ना फँसने दें बस्ता जी ।

खेल कबड्डी, गुल्ली डंडा ,
खो -खो-का आयोजन हो । 
हर घंटे रसगुल्ले-चमचम ,  
मालपुओं का भोजन हो ।
करने दो आबाद हमें घर 
दिन भर मस्ता-मस्ता जी ।

सम्पर्कः 12 शिवम सुन्दरम नगर छिन्दवाड़ा मध्य प्रदेश 480001


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