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Mar 1, 2022

कविता- मुझे बंदिशों में रहना पसंद है

 - दिव्या शर्मा

मैं नहीं स्वछंद होना चाहती 

मुझे रिश्ते निभाना पंसद है।

   हाँ, मैं उड़ना चाहती हूँ एक पक्षी की तरह

   लेकिन लौटकर घर आना पंसद है।

कोई टोकता है मुझको जब

तब नखरे दिखाना पंसद है।

      होना चाहती हूँ सशक्त मैं; लेकिन

       माथे बिंदियाँ सजाना पंसद है।

जब कहते हैं हमें पिछड़ा

तो मुझे पिछड़ जाना पंसद है।

       करके हाथ आटे में गीले

       गोल रोटियाँ बनाना पंसद है।

बातें सुनकर मासूमियत- सी

मुझे बस माँ बन जाना पंसद है।

        करके कुछ शृंगार

         करना इंतजार पंसद है।

हाँ मैं स्त्री हूँ बस मुझे

प्यार लुटाना पंसद है।

     नहीं चाहती जीना खुद के लिए

      हाँ मुझे बंदिशों में रहना पंसद है।

सम्पर्कः मकान नंबर- 4, गली नंबर-9 ए, अशोक विहार फेज - 2, गुरुग्राम, हरियाणा- 122001, मो. 7303113924

3 comments:

Unknown said...

Bahut Sunder Sajeev Abhivyakti se Bhari rachna hai Aurat ke charita ka vyaakhyan "Devi" Banaane se kuch nahi hoga Use to Bas Rishto ka sahi maayne me Sbeh v Aadar chahiye.

Writerdivya Sharma said...

सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार🙏🌷

Sonneteer Anima Das said...

अति सुंदर भावपूर्ण रचना 🌹🙏