- ज्योत्स्ना प्रदीप
भारत माँ ने आँखें खोलीं,
देखो वो भी कुछ तो बोली।
बालक मेरे हैं अवसादित,
पथ ना जानें क्यों हैं बाधित।
वसुधा वीरों की मुनियों की,
ज्ञान कोष थामें गुनियों की।
कोई तो था प्रभु का साया,
कोई गंगा भू पर लाया।
संतानें अब बदल गई हैं,
माँ की आँखें सजल भई हैं।
निकलो अपनी हर पीड़ा से,
खुद को सुख दे हर क्रीडा से।
कुटिया चाहे ठौर बनाना ,
घी का चाहे कौर न खाना।
पावनता को अपनाना है,
नवयुग सुख का फिर लाना है।
किरणें थामे नैन कोर हो,
सबकीअपनी सुखद भोर हो।
बनना खुद
के भाग्य विधाता,
आस लगाये भारत माता।
सम्पर्कः प्रदीप कुमार शर्मा (CRPF), मकान 32,गली न – 9, न्यू
गुरुनानक नगर , गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर -पंजाब-144013
1 comment:
वाह ज्योत्स्ना जी, भारत माँ का हम सब के लिए बहुत प्रेरणादायक सन्देश। आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
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