का हाहाकार
- सुधा भार्गव
कुश और राधा की खुशी का ठिकाना न था उनके बेटे
हैपी को प्रसिद्ध नर्सरी स्कूल में दाखिला मिल गया था। बस एक ही मुश्किल आन पड़ी
थी राधा की पिछले माह ही नौकरी लगी थी सुबह की निकली-निकली शाम को ही घर में घुसना
होता। स्कूल की बस घर से थोड़ी दूर पर आकर रुकती थी वहाँ से घर तक का रास्ता हैपी
अकेले नहीं तय कर सकता था। उसे बस तक छोडऩे और लाने के लिए एक का होना जरूरी था ।
मियां- बीबी घर में होते हुए भी आफिस जाने की जल्दी में होते
।
घर में
हैप्पी की दादी माँ भी थी पर वृद्ध। बेंत के सहारे ही चल पाती थीं। घर की
देखरेख के लिए तो पहले से एक नौकर था पर बच्चे के लिए अन्य एक साफ सुथरी और
तमीजदार नौकरानी की तलाश होने लगी जो बच्चे का ध्यान माँ की तरह रखे। जल्दी ही
उनके माली ने अपनी विधवा बहन को लाकर कुश
और राधा को उबार दिया ।
जिस दिन हैपी को स्कूल जाना थ राधा जल्दी उठी।
बेटे को तैयार कर उसने उसकी मन पसंद का टिफिन भी लगा दिया। इतने में चन्दा नौकरानी
भी आ गई।
-चन्दा तू समय
पर आ गई । स्कूल बस भी आती होगी। हैपी को छोडऩे जा ।
हैपी ठिठक गया और लगा माँ को घूरने ।
-क्या हो गया! स्कूल क्यों नहीं जाता। अभी तो तू
बड़ा खुश नजर आ रहा था ।
-मैं नहीं जाऊँगा ।
-क्यों नहीं जाएगा ?
-आप छोडऩे चलो ।
-मैं- मैं कैसे जा सकती हूँ। मुझे आफिस निकलना
है । देरी हो जाएगी। चन्दा जल्दी
हैपी के साथ जा ।
चन्दा उसका
हाथ पकड़े बाहर निकली और खींचती हुई ले जाने लगी। वह भी डरी हुई थी कि कहीं बस न
छूट जाए । हैपी का स्कूल जाने का सारा उत्साह फीका पड़ गया। पहली बार वह घर से इस
तरह काफी देर के लिए अकेला अलग हो रहा था। चाहता था माँ से टाटा करते हुए बस में
चढ़े और माँ उसकी चुम्बी ले । वह अपने को
किसी तरह बस की ओर घसीट रहा था, लग रहा था
मानो दोनों पैरों से 1-1
किलो के पत्थर लटक रहे है ।
बस स्टॉप पर हैपी ने देखा - कोई दोस्त अपनी माँ
के साथ आ रहा है तो कोई बतियाते हुये अपने बाबा का हाथ थामे हुए हैं। उसके दिल में कुछ चुभ-सा गया
और उदासी की परतें गहरी हो गईं। वह बस में बैठ तो गया ; लेकिन जैसे ही बस चली उसकी
रुलाई फूट पड़ी। बच्चों का ध्यान रखने के लिए बस में स्कूल की एक कर्मचारी महिला
थी। उसने कुछ देर तक तो फुसलाया- बेटा चुप हो जा स्कूल में तुझे सब बहुत प्यार
करेंगे। लेकिन जब उसने चुप होने का नाम नहीं लिया तो गुर्रा पड़ी- अरे चुप हा जा
वरना अभी बस से नीचे उतार दूँगी। हैपी भयभीत हो चुप तो हो गया पर स्कूल तक
सिसकियाँ भरता रहा ।
स्कूल आने पर बच्चों को एक -एक करके बहुत
सावधानी से उतारा गया। हर बस के पास एक टीचर ड्यूटी पर तैनात थी। प्रिन्सिपल भी उन
पर नजर रखे हुए थी। इस कारण उनके व्यवहार और आवाज में कोमलता का पुट कुछ ज्यादा ही
था ।
कुछ बच्चे माँ से अलग होने के कारण दुखी से थे, कुछ
नए वातावरण से घबराए हुए थे, पर हैप्पी तो माँ की बेरुखी से दु;खी था। माँ की मजबूरी समझने के लायक
उसकी उम्र न थी ।बस उसे तो नौकरानी की जगह माँ चाहिए ।
कक्षा में टीचर्स ने हँस हँसकर उनका स्वागत
किया। एक- दूसरे की तरफ दोस्ती के नन्हें-नन्हें हाथ बढ़ने लगे । कुछ देर के लिए हैपी सब कुछ भूलकर नए साथियों में मग्न हो
गया ।
टिफिन का समय होने पर आवाज लगी- बच्चों नैपकिन
निकालकर अपना- अपना टिफिन खाओ। कुछ ने अपना टिफिन बॉक्स खोला, कुछ
की मदद की गई पर हैपी गुम-सा बैठा रहा ।
-बेटा, तुम्हें
भूख नही नहीं लग रही। महिला कर्मचारी ने पूछा ।
-नहीं ।
-कुछ तो खा लो, चलो
मैं खिलाती हूँ ।
उसने दो- तीन गस्से पूरी के खिलाए ,फिर उसे
उठना पड़ा। उसे दूसरे बच्चे जो देखने थे। इतने में घंटी बज गई और हैपी भूखा ही रह
गया।
स्कूल से छुट्टी मिली, तो बच्चे पंक्तिबद्ध बस
में बैठने लगे। घर जाने की खुशी में, माँ
से मिलने की खुशी में चेहरे कमल की तरह खिले हुए थे। बस स्टॉप आने से पहले ही हैपी
माँ की एक झलक पाने को खिडक़ी से झाँक -झाँककर
देख रहा था। माँ की जगह नौकरानी को खड़ा देख वह मन ही मन उबल पड़ा। बस
रुकने पर बोला-मैं नहीं उतरूँगा। नौकरानी ने उसे जबर्दस्ती उतारा और एक हाथ पकडक़र
उसे खींचने लगी। खींचातानी में उसके कंधे में झटका लगा और वह दर्द से चीख पड़ा।
नौकरानी ने उसे गोद में लेना चाहा पर वह तो
रोता हुआ उसके हाथों से सरककर भाग निकला। आगे- आगे हैपी पीछे-पीछे चन्दा।
बच्चे की तरह तो क्या भागती- हाँ भागते- भागते हाँफने जरूर लगी ।
पोते के रोने की आवाज सुन दादी माँ तड़प उठी ।
-दादी- दादी मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा है
कहकर उससे चिपट गया मानो एक अरसे के बाद मिला हो। प्यार की गरमाई पा वह दादी के
बिछौने पर भूखा ही सो गया ।
चन्दा
भी हैपी के दर्द को देख परेशान थी। उसे अपनी नौकरी खतरे में नजर आई। जल्दी
से जल्दी उसने वहाँ से निकल जाना
ठीक समझा। मालकिन के आते ही बोली- मेमसाहब मुझे थोड़ा जल्दी घर जाना है
-ठीक है ,मैं
तो आ ही गई हूँ पर कल समय से आ जाना।
-हाँ में हाँ मिलाते हुए चन्दा तो खिसक गई ।
कुछ देर बाद हैपी सोकर उठा। पापा ने प्यार से
उठाना चाहा पर वह तड़प उठा- पापा बहुत दर्द---।
राधा भागी- भागी आई-क्या हुआ बेटा !
-चन्दा ने मेरा हाथ बहुत ज़ोर से खींचा। माँ तुम
बस स्टॉप पर मुझे लेने आ जाती, तो ऐसा नहीं होता। माँ- कल मुझे छोड़ने चलोगी--- बोलो न माँ । हैपी का
गला भर्रा उठा ।
राधा का रोम- रोम आहत हो उठा और हैपी को कलेजे से चिपकाते हुए बोली- हाँ बेटा जरूर
चलूँगी ।
-मज़ाक करती हो! कैसे छोडऩे जाओगी? अभी-
अभी तो आफिस जाना शुरू किया है। नहीं गईं तो बॉस नाराज हो जाएगा।
-होने दो। मुझे उसकी चिंता नहीं! चिंता है अपने
हैपी की। अगर वह गुस्सा हो गया तो--। वाक्य पूरा होने से पहले ही खुशियाँ घर की
देहली पार कर अंदर आ गईं।
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