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Apr 1, 2022

पृथ्वी दिवसः पेड़ श्रीमद् भगवद् गीता का संदेश सुनाते हैं

- समीर उपाध्याय

मैं पेड़ हूँ।

हे संवेदन शून्य....!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

ज़मीं में अपनी जड़ें जमाता हूँ।

कई वर्षों तक तपस्या करता हूँ।

कुल्हाड़ी के घाव को सहता हूँ।

महावीर-सी साधना करता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य...!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

सूर्य की तपिश सहता हूँ।

घनी शीतल छाँव देता हूँ।

मीठे मधुर फल खिलाता हूँ

फूलों की सौरभ फैलाता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य...!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

पंछियों का बसेरा बनता हूँ।

कर्णप्रिय कलरव सुनाता हूँ।

मंद मंद 'समीर' बहाता हूँ।

पथिकों को सुकून देता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य...!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

जहरीली वायु पी जाता हूँ।

परिशुद्ध प्राणवायु देता हूँ।

ईंधन बन अस्तित्व मिटाता हूँ।

यज्ञ-समिधा बन जलता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य....!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी होता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

अमूल्य औषधियाँ देता हूँ।

असाध्य रोगों को मिटाता हूँ।

खुशहाली प्रदान करता हूँ।

जीवन का आधार बनता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य....!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

वर्षा के बादलों को खींच लाता हूँ।

बारिश की बौछार को सहता हूँ।

ज़मीं को धोने से बचाता हूँ।

धरित्री को हरियाली बनाता हूँ।

 

हे संवेदन शून्य...!

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

पीड़ा मुझे भी होती है,

मन मेरा भी रोता है।

सजीव हूँ, पत्थर तो नहीं!

परोपकार को धर्म बनाता हूँ।

निरपेक्ष भाव से सेवा करता हूँ।

फल की अपेक्षा नहीं रखता हूँ।

श्रीमद्भगवद् गीता का

संदेश सुनाता हूँ।

 

मैं पेड़ हूँ।

प्रकृति का अनमोल उपहार हूँ।

जीवन का आधार हूँ।

कुदरत का शृंगार हूँ।

मुझे मत काटो! मत काटो! मत काटो!

मुझे जीवन बख्श़ दो!

बख्श़ दो! बख्श़ दो!


सम्पर्कः मनहर पार्क: 96/
A, चोटीला:36520, जिला:सुरेंद्रनगर, गुजरात, मो. 9265717398, s.l.upadhyay1975@gmail.com

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