- डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
लिखती भी क्या; पीड़ा, अपमान या प्रतिमान
भाग्य, कर्म, संयोग - वियोग, सपनों का बलिदान।
वही लिखा, जो जीवन ने कहने नहीं दिया
ऐसा अनकहा, जो नैनों ने बहने नहीं दिया।
कभी संस्कारों ने सौगंध देकर रोका
भोजपत्र ने संबंधों के अनुबंध पर टोका।
रोक लिया किवाड़ के गर्वित आभास ने
हाथ बांधे गरिमा कहलाते कारावास ने।
उपस्थिति-अनुपस्थिति, प्रेम, भाव-अभाव
इनका नहीं अब कोई भी विशेष प्रभाव।
इन्हें लिखने का भी कोई नहीं अर्थ
व्यामोह, सम्मोहन, संबोधन व्यर्थ।
लिखती क्या; छल-प्रपंच, अनुरक्ति, विरक्ति
साधना, प्रमाद, विषाद, प्रतिपल मुक्ति।
हर्ष-स्पर्श मिथ्या अब देह से चेतन मुक्त हुआ
राग-द्वेष तिरोहित मानस अब उन्मुक्त हुआ।
जीवन कोई युद्ध नहीं, ऐसा ज्ञान जगा होता
कला है प्रतिबंध नहीं, ऐसा भान हुआ होता।
No comments:
Post a Comment