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Nov 1, 2022

शौर्य गाथाः वीरता और संकल्प की मूरत- मेजर मोहित शर्मा

-  शशि पाधा

वर्ष 1857 से 1947 तक के इतिहास को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इस काल में भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने के लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता की लड़ाई के इस महायज्ञ में अनेक महानायकों ने अपने जीवन की आहुति दी है। हम भारतवासी उन वीर योद्धाओं, वीरांगनाओं के ऋणी हैं, जिनके सतत्त प्रयास और बलिदान के फलस्वरूप आज भारत स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव बहुत उल्लास और गौरव के साथ मना रहा है। हम भारतीय भाग्यशाली हैं जो इस उत्सव के साक्षी हैं।

जब हम स्वतंत्रता के इस महासंग्राम के इतिहास पर दृष्टि दौड़ाएँ, तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना की जो लौ इन वीरों ने जलाई थी, उसकी ज्योति को स्वतंत्र भारत की नई पीढ़ी ने बुझने नहीं दिया। जब भी भारत भूमि की रक्षा पर आँच आई अथवा जब भी शत्रु ने भारतभूमि की पावन धरती पर पाँव रखने का दुस्साहस किया, इस नई पीढ़ी ने उतने ही संकल्प और पराक्रम से सीमाओं पर शत्रु को पछाड़कर देश की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा।

इस असीमित आकाश में स्वतंत्रता के ध्वज को गर्व के साथ थामने वाले वाहकों में से आज मैं आपको एक ऐसे योद्धा से परिचित कराती हूँ, जिसने अपनी वीरता के साथ-साथ अपने सैनिक प्रशिक्षण से प्राप्त की हुई सूझबूझ के द्वारा बार- बार चालाक शत्रु के देश की सीमाओं में हिंसा फैलाने के प्रयत्नों को विफल किया।

  स्वतंत्रता की उसी ज्वलंत ज्योत को थामने वाले मेजर मोहित शर्मा की शौर्य गाथा को स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के स्वर्णिम पलों में ऋणी देशवासियों के साथ साझा करते हुए मुझे अपरिमित गौरव और गर्व की भावना की अनुभूति हो रही है।

 उनकी कहानी कहाँ से आरम्भ करूँ?  मनुष्य इस संसार में एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति, किसी संदेश को प्रचारित करने के लिए जन्म लेता है और उसी के अनुसार अपना कर्मक्षेत्र भी निर्धारित कर लेता है। मेजर मोहित के मन में देश प्रेम, स्वाभिमान और साहस की भावना बचपन से ही प्रबल थी। भारत माता के जाँबाज सपूत मोहित शर्मा उन लोगो में से थे, जिन्हें खुद से ज़्यादा देश से प्यार था।

मोहित शर्मा का जन्म रोहतक, हरियाणा में 13 जनवरी 1978 को हुआ था। मोहित के घरवाले उन्हें प्यार से चिंटू और उनके दोस्त माइक कहकर बुलाते थे। मोहित के माता-पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे;  इसीलिए मोहित ने स्कूल के बाद संत गजानन महाराज कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, महाराष्ट्र में एडमिशन भी लिया था।

दरअसल मोहित के घर वालों का मानना था कि उनका वजन काफी कम है, वह शरीर से भी थोड़े दुर्बल हैं, इसी कारण वह कभी सेना में भर्ती नहीं हो सकते हैं। इधर मोहित ने मन ही मन ठान लिया था कि वह भारतीय सेना में भर्ती होकर ही रहेंगे। इसके लिए उन्होंने इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के बाद भी एनडीए की तैयारी शुरू कर दी और कुछ समय बाद उन्होंने एनडीए की परीक्षा भी पास कर एसएसबी का इंटरव्यू भी पास कर लिया। यह सब उन्होंने अपने माता-पिता की जानकारी के बिना ही किया। जब उन्होंने यह बात अपने घर वालों को बताई कि वह  NDA की परीक्षा में सफल हो गए हैं, तब उनके परिवार वालों को यकीन ही नहीं हुआ। मेजर मोहित शर्मा ने घरवालों से छुपाकर NDA का फॉर्म भरा था और चुपचाप ही तैयारी कर रहे थे। यानी अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने हर उस बाधा को लाँघा, जो उनके मार्ग में आई। इस बाधा को लाँघने के लिए युवा मोहित ने अपने परिवार से अपने मन के भेद को छुपाने का मार्ग अपनाया।

आखिर उनकी ज़िद्द पूरी हुई और 11 दिसंबर 1999 को आइएमए से पास आउट होकर उन्हें मद्रास रेजिमेंट में कमीशन मिली थी। इस यूनिट के अंतर्गत उन्होंने काउंटर इंसरजेंसी (COUNTER INSERGENSI) ऑपरेशन के हिस्से के रूप में कश्मीर में 38 राष्ट्रीय रायफल्स के साथ कई बार आतंकियों से लोहा लिया था और हर बार सफल हुए थे। उनके इस वीरतापूर्ण  अभियानों की सफलता के फलस्वरूप वह  चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ के  COMMNEDTION मैडल से भी अलंकृत हुए थे।

भारतीय सेना के वीर योद्धाओं की शौर्य गाथा सुनाते हुए मैं एक बात स्पष्ट करना चाहती हूँ कि सीमाओं पर शत्रु के साथ युद्ध करना और अपने देश की सीमाओं के भीतर घने जंगलों में छिपे हुए, अपने ही जैसी वेशभूषा और बोली बोलने वाले देश के शत्रुओं के साथ आमने- सामने का युद्ध करना कहीं अधिक कठिन होता है। इसके लिए सैनिक को विशेष प्रशिक्षण लेना पड़ता है, जिसमें वीरता के साथ-साथ साहस और युद्ध शास्त्र के दाँव- पेच को भी अपने मन मस्तिष्क में हर घड़ी तैयार रखना पड़ता है।


मोहित ने भी अपनी कश्मीर पोस्टिंग के समय कई बार आतंकियों को हराया
;  लेकिन उन के लिए बस इतना कुछ काफी नहीं था। वे तो वीरता के शिखर की ऊँचाइयों को  छूना चाहते थे। वे तो साधारण से कुछ असाधारण करना चाहते थे। अपनी इसी उमंग और जोश के कारण उन्होंने भारतीय सेना की महत्वपूर्ण पलटन ‘1पैरा सपैशल फोर्सेस’ में सम्मिलित होने के लिए वालंटियर  किया। यह पलटन उन दिनों कश्मीर के पहाड़ों और जंगलों में छिपे हुए आतंकवादियों का सफाया करने के महत्त्वपूर्ण अभियानों में लगी हुई थी।

मोहित के जीवन का हर पल बस आतंकियों को समूल नष्ट करने के जुनून में बीतता था। अपने इसी संकल्प को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने आतंकियों की भाषा सीखी, उनके जैसी वेशभूषा धारण की और अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कुछ असाधारण  करने की योजना बनाई। आइए अब मैं आपको मोहित के उस संकल्प और साहस की कहानी सुनाती हूँ जिसे सुन कर हर किसी के रोंगटे खड़े हो सकते हैं...

कश्मीर के किसी इलाके में एक युवा कश्मीरी बालक, इफ्तिकार भट्ट ने कंधे तक लम्बे बालों के साथ और पारम्परिक कश्मीरी पोशाक ‘फिरन’ पहने हुए, बड़ी बदहवास हालत में शोपियाँ, कश्मीर में खूँखार हिजबुल मुजाहिदीन से संपर्क किया। जब इनसे वहाँ आने का कारण पूछा गया, तो बहुत आत्मविश्वास के साथ उसने अपने मन में गढ़ी हुई कहानी दोहरा दी। जब उनसे पूछा गया कि वह भारतीय सेना से क्यों लड़ना चाहते हैं, तो उन्होंने शुद्ध कश्मीरी में सेना पर सबसे अच्छे अपशब्दों से वार किया और बड़े संयत स्वर में उन्हें बताया कि वर्ष 2001 में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए पथराव की घटना में उन्होंने अपने भाई को खो दिया था। उन्होंने बड़े रोष के साथ सुरक्षा-बलों को अपने भाई की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया। अब वह अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहते थे और इसके लिए उन्हें आतंकियों की सहायता चाहिए। कुछ प्रश्न पूछने पर मोहित ने आतंकियों के नेताओं को बताया कि उनकी प्लानिंग आर्मी चेक प्वाइंट पर सेना के काफ़िले पर हमला करने की है और इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी भी कर ली है।

शत्रु के सामने अपना संकल्प रखने के लिए उन्होंने न जाने कितने दृढ़ आत्मविश्वास का सहारा लिया होगा। शायद यह उनकी ट्रेनिंग का ही प्रतिफल था कि आतंकियों के नेता उनकी सहायता के लिए तैयार हो गए। मोहित ने उनसे कहा कि वह कई सप्ताह के लिए भूमिगत रहेंगे,  ताकि हमले के लिए पूरे हथियार और मैप आदि जुटा सकें। इस बीच वह अपने गाँव भी नहीं जाएँगे। आतंकी नेता ‘तोरारा’ और ‘सबजार’ ने मोहित के लिए ग्रेनेड की खेप इकट्ठा करनी शुरू कर दी और उन्हें अन्य तीन आतंकियों के साथ पास के गाँव में एक कमरे में ठहरा दिया।

आशंका के कारण बार-बार उनकी कहानी की जाँच की गई;  लेकिन हर बार वह उन्हें झाँसा देने में सफल हो गए। पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद उन्हें आगे के प्रशिक्षण के लिए उस पार के कैम्प में ले जाया गया। अन्य रंगरूटों के विपरीत इस युवा लड़के ने उत्कृष्ट पहल और उत्साह का प्रदर्शन किया;  तो उन्हें और आगे के नेतृत्व और वैचारिक प्रशिक्षण के लिए तुरंत चिह्नित किया गया। आखिरकार उन्हें एलओसी पार करने और भारतीय सेना की चौकी पर हमला करने का मौका दिया गया। इस अभूतपूर्व फैसले में उन्हें अबू सब्जार और अबू तोरारा नाम के हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडरों के तहत सीधे तौर पर प्रतिनियुक्त किया गया।

कुछ दिनों में ही मोहित ने दोनों को आश्वस्त किया कि वह सेना की चौकी पर हमला कर सकता है, 

जिससे सेना का अधिकतम नुकसान हो सकता है। अपनी इस सुनिश्चित योजना के अनुसार वह उन्हें एक सुविधाजनक स्थान पर ले गया और उन दोनों को प्रभावित करते हुए उसने अपनी योजना का विस्तृत प्रदर्शन किया। उनके कौशल को देखकर अबू सब्जार को अब इस बात पर संदेह हो गया कि बिना सैन्य अनुभव वाला यह युवक इतनी सावधानी से सैन्य हमले की योजना कैसे बना सकता है। वह उससे उसकी पृष्ठभूमि और कहानी के बारे में एक बार फिर से सवाल पूछने लगा।

उनके अविश्वास को भाँपते हुए युवा लड़के ने उनसे कहा, “अगर आपको मुझ पर कोई शक है, तो मुझे गोली मार दो। इसके साथ ही इस निर्भीक योद्धा ने निडरता से अपनी एके 47 ज़मीन पर गिरा दी और कहा कि अगर वे उस पर भरोसा नहीं करते हैं, तो वे उसे गोली मार सकते हैं। तोरारा यह सुनकर सोच में पड़ गया और आश्वस्त होने के लिए उसने अपने दूसरे साथी की ओर देखा। यही एक सूक्ष्म पल था, जब मोहित ने अपने जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया। मोहित की आँखों में झाँकते हुए उन दोनों ने अपने हथियार रख दिए और पीठ मोड़कर आगे चलने लगे। कुछ कदम मोहित भी उनके साथ चलता रहा। आगे चलकर वह रुका, अपनी कमरबंद से अपनी 9 एमएम की पिस्तौल निकाली और उन दोनों को गोली मार दी। यह एक भारतीय सेना के पैरा एसएफ ऑपरेटर के ट्रेडमार्क शॉट्स थे

, जिसकी ट्रेनिंग वह कितनी बार ले चुके थे। आज उन्हें वह अवसर मिला कि वह अपनी शिक्षा के सिद्धांतों को मूर्तरूप कर सके। इस अभूतपूर्व, साहसिक घटना के बाद इफ्तिकार भट्ट अपने सारे हथियार उठाकर छिपते-छिपाते, चुपचाप नज़दीकी आर्मी कैंप में चले गए। अब वह पुन: मेजर मोहित शर्मा थे।

परमवीर मेजर मोहित शर्मा के लिए यह छद्म वेश का अभियान एक खेल के समान था। इस ऑपरेशन के बाद वह अपनी यूनिट लौटे, जो कि हिमाचल प्रदेश के एक खूबसूरत स्थान नाहन में स्थित थी। चार वर्षों तक उन्हें भारत के विभिन्न सैन्य शिक्षा संस्थानों में एक प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया। कालान्तर में इस युवा सैन्य अधिकारी की भेंट एक अन्य युवा सैनिक अधिकारी कैप्टन रिश्मा सरीन से हुई। दोनों के जीवन का एक ही ध्येय था, राष्ट्र सेवा और राष्ट्र रक्षा। जल्दी ही दोनों विवाह बंधन में बँध गए।

इनका वैवाहिक जीवन बहुत ही कम अवधि तक रहा। ‘1 पैरा स्पेशल फोर्सेस’ उस समय कश्मीर घाटी में फैले आतंकवाद से लड़ने के लिए वहाँ पर तैनात थी। मोहित को भी अपनी ‘ब्रावो  असाल्ट टीम’ के साथ कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अभियान के लिए भेज दिया गया।

21 मार्च 2009 के दिन विश्वस्त सूत्रों के द्वारा मोहित को जंगलों में कुछ आतंकियों के छिपे होने की खबर मिली थी, जो घाटी में घुसपैठ करके आतंक फ़ैलाने की कोशिशें कर रहे थे। इन्हें नष्ट करने के लिए ‘1 पैरा स्पेशल फोर्सेस’ की ब्रावो टीम को आदेश दिए गए। शत्रु को परास्त करने की मंशा से मोहित ने पूरे ऑपरेशन की योजना बनाई और अपनी कमांडो टीम का नेतृत्व करते हुए घने जंगलों में शत्रु की टोह लेते हुए, अँधेरे को चीरते हुए आगे बढ़ते रहे।

ऐसे अभियान में शत्रु का पलड़ा हमेशा भारी इसलिए होता है;  क्योंकि उन्हें उस जंगल के चप्पे- चप्पे की पहचान होती है। इसके विपरीत हमारे सैनिकों को उन्हें अँधेरे में ढूँढकर उन पर प्रहार करना होता है। इस अभियान में भी आतंकी तीनों तरफ से फायरिंग कर रहे थे। मेजर मोहित बड़ी कुशलता से अपनी टीम को आगे बढ़ने के निर्देश देते रहे। उस जंगल के हर कोने से परिचित आतंकियों की फायरिंग इतनी सही निशाने पर थी कि मोहित की टीम के चार कमांडो तुरंत ही उसकी चपेट में आ गए। उस समय मोहित ने अपनी सुरक्षा पर ज़रा भी ध्‍यान नहीं दिया और वह रेंगते हुए अपने साथियों तक पहुँचे और उनकी जान बचाई। इसी बीच उन्होंने आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके। दो आतंकी वहीं ढेर हो गए। आमने-सामने के इस युद्ध में मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई। इसके बाद भी वह रुके नहीं। बुरी तरह घायल होने के बाद भी अपने कमांडोज़ को निर्देश देते रहे। उस समय मोहित को अपने साथियों पर खतरे का अंदेशा हो गया था। अपनी गहरी चोट को बिलकुल नज़रंदाज़ करते हुए उन्होंने आगे बढ़कर फिर से शत्रु पर हमला किया और बचे हुए आतंकियों को ढेर किया।  इस अभियान में वीरता और संकल्प की मूरत यह वीर योद्धा  अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। उनके अंतिम शब्द थे... ‘देखना एक भी न बचे’।

मेजर मोहित जिस ऑपरेशन का नेतृत्व  कर रहे थे, उस ऑपरेशन को ‘ऑप रक्षक’ नाम दिया गया था। पराक्रम और अदम्य साहस की मिसाल मेजर मोहित शर्मा ने उस रात वास्तव में रक्षक नाम को अक्षरश: चरितार्थ कर दिया।

 अपने सेवा काल में ‘सेना मेडल’ से अलंकृत मेजर मोहित को इस अभियान में उनकी बहादुरी के लिए शांति काल में दिए जाने वाले सर्वोच्‍च सम्‍मान ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया। यह सम्‍मान मरणोपरांत उन्हें दिया गया, जो उनकी सैनिक पत्नी मेजर रिश्मा सरीन ने ग्रहण किया।

राष्ट्रहित वेश बदलकर शत्रु के साथ युद्ध में शत्रु को हराने की बहुत सी घटनाएँ भारत के इतिहास में मिल जाएँगी। भगवान् कृष्ण को राजनीति और कूटनीति में दक्ष माना गया है। अपने जीवन काल में उन्हें भी कई बार छलपूर्ण नीति का सहारा लेना पड़ा और इसके लिए उन्हें वेश भी बदलना पड़ा। लेकिन सत्य और धर्म की रक्षा के लिए यह करना आवश्यक था। यदि वह ऐसा नहीं  करते तो समाज में अधर्म का राज होता। इसी प्रकार स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चन्द्र बोस भी पठान का वेश बनाकर भारत से बाहर गए थे। इसके बाद ही उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज की नींव रखी थी। अगर उस समय वह यह कदम नहीं उठाते, तो शायद भारत की स्वतंत्रता की कहानी के पन्नों में कुछ और लिखा जाता ।

युवा सैनिक अधिकारी मेजर मोहित ने भी कभी वेश बदलकर और कभी युद्ध के दाव-पेंच के सहारे खूँखार आतंकियों को और उससे भी अधिक उनके हिंसक इरादों को अपनी वीरता और सूझबूझ से नष्ट कर दिया। शायद उन्होंने अपने बाल्यकाल में भगवान् कृष्ण और सुभाषचंद्र बोस की कहानियाँ सुनी होंगी।

 आज मेजर मोहित युवा वर्ग के हृदय में शौर्य शक्ति को उद्भासित करके, राष्ट्र सेवा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्राण उत्सर्ग करने के जीवंत प्रतिमान बन कर खड़े हैं। स्वाधीनता के महायज्ञ की अमर ज्योति में उनका नाम अकम्पित लौ के समान सदैव प्रकाशित रहेगा।

 अप्रतिम योद्धा मेजर मोहित शर्मा को समर्पित एक सैनिक पत्नी के उद्गार -

खो न जाए गहन गुहा में

हो न जाए बात पुरानी

आओ फिर से दोहराएँ हम

उन वीरों की कथा-कहानी।                      

3 comments:

Anonymous said...

प्रेरणादायी एवं रोमांचक शौर्य गाथा शशि पाधा जी मोहित शर्मा को नमन।सुदर्शन रत्नाकर

शिवजी श्रीवास्तव said...

मेजर मोहित शर्मा की पराक्रम गाथा प्रेरक है,धन्य हैं भारत के ऐसे युद्धवीर।इस रोमांचक गाथा को प्रस्तुत करने हेतु शशि पाधा जी को साधुवाद।

Vikram Singh said...

बहुत बढ़िया