यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो ।
यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित
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यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो ।
यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत, स्वयम्भू,
ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो ।
यह वह विश्वास, नहीं
जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई
को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान,
अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक,
अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह
चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु, प्रबुद्ध,
सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो ।
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