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पास की थी जब मैट्रिक
प्रथम श्रेणी में
अखबार की सुर्खियों में था नाम
उठाते हुए अखबार
नम थी आँखें आपकी
तब पूछा था मैंने
पापा आप रो रहे हैं !
ख़ुशी नहीं हुई मेरे पास होने की ?
कहा था आपने
पगली! बाप का ख़ुशी जताने का
अपना तरीका होता है
बाप जब बहुत खुश होता है
तो रो देता है |
उस दिन ज्वाइन करते हुए नौकरी
बहुत खुश थी मैं
आप भी थे साथ मेरे मगर
सिग्नेचर करते हुए
देखा था मैंने आपको
भीगी थी आँखें आपकी
किया नहीं कोई प्रश्न
उत्तर जो जानती थी मैं
बिदा होते समय उस दिन
संग रो रहा था मेरे पूरा घर,
नहीं
देखा आपको
चली आई थी अपने कमरे में
आप नम आँखों से
मेरे टेडीबियर को
सहला रहे थे
समझ गई थी
यह ख़ुशी उस पिता की है
जिसकी बेटी अपना नया संसार
रचाने जा रही है
पहली बार बनी थी माँ
आपका ओहदा और ऊँचा
हो गया था
अपनी नवासी को लेते हुए
गोद में कभी उसकी
नन्ही उँगली पकड़ते,
कभी छोटे- छोटे पैरों को
माथे लगाते हुए देखा था
आपकी छलकती आँखों को मैंने
पूछा नहीं था आपसे कुछ
महसूस कर पा रही थी
आपकी खुशी को
फिर एक दिन
अचानक बिना किसी से कुछ कहे
आप चले गए
अनंत यात्रा पर ,
चाहकर भी आपको देख नहीं पाऊँगी
मगर पापा,
खुशियों से सराबोर वे आँखें
धरोहर के रूप में
छोड़ गए आप
आँखों में मेरी
जब भी बच्चे हासिल करते हैं
कोई खुशी
आँखें मेरी छलक आती हैं।
रचनाकार के बारे में- शिक्षा - एम
ए अर्थशास्त्र, एम ए हिन्दी, एम एड., पी एच डी हिन्दी., जन्म- शोलापुर महाराष्ट्र. महाविद्यालय
में प्राचार्य। पिछले 9 वर्षों से आकाशवाणी एवं दूरदर्शन
पर संचालन, कहानी
तथा कविताओं का प्रसारण, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका
में रचनाएँ प्रकाशित। मो. 9926481878, सम्पर्कः 30 सीनियर एमआईजी, अप्सरा कोम्प्लेक्स, इंद्रपुरी, भेल क्षेत्र, भोपाल-
462022
5 comments:
पिता की यादों को सहेजती सुंदर कविता-बधाई।
अनकहे पर सबकुछ छलक जाने वाले भावों को केवल पिता ही व्यक्त करते हैं.....मान-सम्मान और आत्मविश्वास का नाम है पापा।
बहुत सुंदर व सजीव कविता।
बधाई हो बधाई।
पिता का प्यार और स्मृतियाँ बेटी की अनमोल धरोहर होती हैं बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी कविता। बधाई
सुंदर
भाव-जगत को झँकॄत करती मार्मिक रचना।पिता के अनकहे भावों को व्यक्त करते आँसू बहुत कुछ कह देते हैं।बधाई डॉ. लता जी।
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