दापोली एक कोस्टल हिलस्टेशन है और
इसी तरह कोंकण क्षेत्र भी महाराष्ट्र की सबसे सुंदर जगह है। इसे कैंप दापोली भी कहा जाता है। दरअसल ब्रिटिश
शासनकाल में यहाँ हाई लेवल के ब्रिटिश ऑफिसर रहे थे। यहाँ
के ग्रेवयार्ड में उनकी कब्रें आज भी मौजूद हैं। महाराष्ट्र
के रत्नागिरी इलाके में यह एक छोटा सा शहर है। हम पुणे से 6 घंटे की लंबी
ड्राइव पर दापोली पहुँचे। लॉक डाउन खुलने के बाद यह
हमारी पहली आउटिंग थी रास्ते में हरियाली से सजे पहाड़ ...ऊँचाई से गिरते झरने और
सड़क के दोनों ओर कितने ही रंगों में मुस्कुराते जंगली फूल थे। थोड़ा और आगे बढ़ने पर पहाड़ों की ऊँचाई बढ़ गई। पश्चिमी घाट के ये पहाड़ कच्चे नहीं; बल्कि बेहद मजबूत चट्टानों के हैं। हम सुबह आठ बजे चले थे, दोपहर दो बजे तक ‘दि फर्न समाली रेजोर्ट’ पहुँचे। जंगल में
बना यह होटल लाल ईंटों से निर्मित है। और अपनी खूबसूरत
वास्तु शैली के कारण जंगल के हरेपन में ही घुलमिल गया लगता है। हमारे वहाँ पहुँचते ही बारिश शुरू हो गई । बीच
में थोड़ी देर के लिए रुकी थी
फिर लगातार जारी रही। ठंड थी इसलिए लंच लेने के बाद हम कहीं नहीं गए और रात को भी
डिनर के बाद बिस्तरों में ही दुबक लिये। मेरी नींद अक्सर पाँच बजे खुल जाती है। बाहर
जाकर बालकनी से देखा तो सारे पेड़-पहाड़ घनी धुंध में खो गए थे । बहुत दूर जलती हुई रोशनियाँ भी धुंध में बहुत धीमी चमक दे रही थीं। चारों ओर सिर्फ कोहरे का साम्राज्य था ... घना कोहरा और चिड़ियों की
आवाजें। दस बजे तक धूप निकल आई ... बच्चे अब खुश थे वे
बीच पर जाने की तैयारियों में व्यस्त हो गए। होटल से
बीच थोड़ी दूर पर ही था।
दापोली अरबसागर के बेहद करीब है
और यहाँ का समुद्रतट लगभग 50
किलोमीचर लंबा है। हालाँकि यहाँ सामान्य समुद्रतटों जैसी ही सारी
विशेषताएँ हैं, पर यहाँ की रेत काली है। हम वहाँ पहुँचे तो
तेज लहरों को देखकर चकित रह गए। बीच से काफी दूर
समुद्र में नावें आती -जाती दिख रही थीं। सफेद झाग लिये
लहरें बहुत तेजी से आती थीं और किनारे की काली रेत में
आकर गुम हो जाती थीं। नारियल और सुपारी के पेड़ों से घिरा दापोली समुद्र तल से 800
फीट की ऊँचाई पर स्थित है । ब्रिटिश शासनकाल में यहाँ सैनिकों के
शिविर होते थे। इसकी झलक आज भी यहाँ दिख जाती है।
दापोली, अंजारले, सारंग, मोपण, हरनाई, असद, खेरड़ी तथा मुरुड
जैसे आस-पास के गाँवों के लिए प्रमुख शहर की भूमिका निभाता है। दापोली से पंद्रह
किलोमीटर की दूरी पर दो किले हैं इनका नाम कनक दुर्ग और स्वर्ण दुर्ग है। रोचक ही
है कि कनकदुर्ग जहाँ भूमि पर बना हुआ है स्वर्णदुर्ग
समुद्री किला है। कहते हैं पहले इन दोनों किलों को एक सुरंग जोड़ती थी पर अब यह
बंद है और नावों के द्वारा ही स्वर्ण दुर्ग तक जाया जा सकता है। मूलतः इन किलों को
आदिलशाही वंश ने बनवाया, परंतु 1660 में शिवाजी महाराज ने इन पर कब्जा कर लिया।
यहाँ दाभोल रोड पर कोटजाई और धाक्ति नदियों के संगम के निकट गहरी घाटी में प्राचीन
गुफाएँ हैं जिनकी नक्काशी का संबंध तीसरी सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक का माना जाता
है।
यहाँ के अंजारले गाँव की सुंदरता
नारियल और सुपारी के पेड़ बढ़ाते हैं। यहाँ का बीच साफ सुथरा है और तट पर ढेरों
सुंदर सीपियाँ और शंख
मिल जाते हैं। मुरुड बीच, कोंकण क्षेत्र के
अत्यंत सुंदर और लंबे समुद्र तटों में से एक है। हरनाई, पोर्ट
और बीच दोनों की भूमिका निभाता है। अंजारले गाँव का गणेश मंदिर बारहवीं सदी
में बना था इसके अलावा भी यहाँ कई दर्शनीय स्थान हैं।
कैसे जाएँ- यहाँ हवाई मार्ग,रेल
मार्ग और सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। रत्नागिरी का डोमेस्टिक एयरपोर्ट दापोली
से 127 किलोमीटर की दूरी पर है, खेड़
रेलवे स्टेशन यहाँ से 29 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क मार्ग
से दापोली मुंबई से 220 किलोमीटर
और पुणे से 185 किलोमीटर की दूरी पर है।
2 comments:
Thanks Ratna ji
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