मिथक में कैद मोबाइल
- डॉ. महेश परिमल
भारतीय
समाज तेजी से बदल रहा है। कई अभिव्यंजनाएँ बदल रही हैं। जैसे- आज के युवा तब सोते
हैं, जब मोबाइल की बैटरी 5% रह जाती है। युवा इसलिए सोते हैं, ताकि मोबाइल को
आराम मिल जाए। मोबाइल के बिना जीवन बिलकुल अधूरा है। इसके बिना जीवंत जीवन की
कल्पना ही नहीं की जा सकती। सबसे अधिक विश्वसनीय बन गया है आज मोबाइल। पहले रोज
सुबह उठकर हम अपनी हथेली को देखते थे, ताकि हमें लक्ष्मी की
प्राप्ति हो। अब सोकर उठते ही हाथों में मोबाइल होता है। फिर दिन भर वही उसका सबसे
सच्चा दोस्त होता है।
इन
हालात में हम कह सकते हैं कि आज का युवा जाग उठा है। अब वह जब तक दो जीबी डाटा
खत्म नहीं कर लेता, तब तक चैन से नहीं बैठेगा। इससे हम कह सकते हैं कि कराग्रे वसते मोबाइल,
करमूले फेसबुक करमध्ये तु वाट्सअप, प्रभात करे
साइन इन....। आज का सच यही है कि आज वही मानव सबसे सुखी है, जो
किसी भी वाट्स एप ग्रुप में नहीं है।

आज
जीवन का कटु सत्य यह है कि आप चाहकर भी इस मोबाइल से अलग हो ही नहीं सकते। केवल
दृढ़ संकल्प ही हमें इससे दूर कर सकता है। कुछ देशों में यह रिवाज शुरू भी हो गया
है कि अब रविवार को कोई भी किसी को किसी भी प्रकार का संदेश नहीं भेजेगा और न ही
इस तरह का संदेश स्वीकार करेगा। रविवार का दिन आपका है, आपके परिवार का है, इसे अपने परिवार के साथ बिताएँ। उनके सुख-दु:ख में शामिल हों। उन्हें ऐसा
न लगे कि वे परिवार के साथ रहकर भी अकेले हैं। एक दिन ई फास्ट रखा जा सकता है। यह
अब बहुत ही आवश्यक हो गया है, अच्छा जीवन जीने के लिए। आज
अमेरिका में यह अभियान चल रहा है कि विश्व को आपके विचार की आवश्यकता नहीं है,
बल्कि आपके परिवार को आपके विचार की आवश्यकता है। आज कोई भी कुछ भी
कह सकता है कि ऑनलाइन रहकर वह चाहे जो कर सकता है। ऐसे में हमें यह सोचने को विवश
करता है कि अपने परिवार के लिए यदि हमारे पास समय नहीं है, तो
हमसे अधिक कोई गरीब हो ही नहीं सकता। किसी भी बात पर सोशल मीडिया जब दिलो-दिमाग पर
कब्जा कर लेता है, तो कई लोग मानसिक रोगी होने के कगार पर
पहुँचने लगते हैं।

आज इस
मोबाइल ने हमारी संवेदनाओं को मार डाला है। अब हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा
पड़ोसी बीमार है या फिर उसके घर में किसी तरह का शोक है। हम उसे भूलकर अपना पूरा
काम उसी रूटीन के साथ करते हैं। मोबाइल में जो सामने हैं, उसे अनदेखा कर रहे हैं और जो
अनजाना दूर है, उसे हम सहजता से स्वीकार रहे हैं। कई बार तो
हमें यह भी पता नहीं होता है कि जिससे हम चेटिंग कर रहे हैं, वह युवक है या युवती। वह रास्ते का कोई भिखारी भी हो सकता है या फिर आपके
घर काम करने वाली कामवाली बाई भी हो सकती है। मोबाइल ने देश-दुनिया ही नहीं,
बल्कि समाज को भी काफी छोटा कर दिया है। सारे रिश्ते उँगलियों में कैद होकर रह गए हैं। हम तड़पकर रह
जाते हैं, कोई अपना मिल जाए, प्यार से
सिर पर हाथ फेरे, हम उनसे ऊर्जा पाएँ, हमारे
आँसू बहकर निकल जाएँ, हम हलके हो लें, कोई
माँ की तरह हमें भींच ले, हमारी तड़प खत्म हो जाए। हम बचपन
में लौट जाएँ, जहाँ कुछ नहीं था, पर उस
संसार में सब कुछ समाया था।
email- parimalmahesh@gmail.com
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