- चन्द्रप्रभा सूद
पति और पत्नी दोनों को सामंजस्य पूर्वक जीवन बिताना चाहिए। अपने जीवनकाल में और मृत्यु के पश्चात अपनी सुरक्षा के बारे में समय रहते सोचना चाहिए। आज आपाधापी के समय दोनों ही कार्य करते हैं। अच्छा तो यही है कि एक-दूसरे के बैंक अकांऊट, बैंक लाकर, धन-संपत्ति, लेनदेन, इन्श्योरेंस पालिसी, शेयर आदि के बारे में दोनों ही को जानकारी होनी चाहिए। कई लड़कियों को उनके माता-पिता धन-संपत्ति देते हैं। उसका भी दोनों को ही पता रहना चाहिए। यदि दोनों को सारी जानकारी रहे तो एक साथी के काल-कवलित हो जाने पर दूसरे साथी को किसी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता।
यदि दोनों में ऐसा विश्वास व तालमेल नहीं हो तो एक-दूसरे के अनजान रह जाने पर सब बरबाद हो जाता है। बहुत-सी धन-संपत्ति जो बेनामी होती है वह हाथ नहीं आती। इस तरह मेहनत की कमाई व्यर्थ चली जाती है। जिस परिवार को सुरक्षित रखने के लिए दिन-रातहाड़तोड़ मेहनत की वह उनके काम नहीं आती।
जहाँ पत्नी नौकरी नहीं करती वहाँ पति का दायित्व और बढ़ जाता है। हर समझदार पति का कर्तव्य है कि वह ऐसा कार्य करे,जिससे उसकी पत्नी व बच्चे उसके जीवनकाल में तो सुख-सुविधाओं का भोग तो करें ही पर उसकी मृत्यु के बाद भी सुरक्षित रहें। यथासमय पत्नी व बच्चों की यथोचित सुरक्षा हेतु वसीयत तैयार करवा ले। इससे उसकी मृत्यु के उपरान्त उसकी विधवा पत्नी व बच्चों को उनका हक मिल सके ताकि उनको दर-बदर की ठोकरें न खानी पड़ें। ऐसा देखा गया है कि कई बार विधवा बहू को ससुराल वाले सम्पत्ति के लालच में परेशान करते हैं और घर तक से निकाल देते हैं। लालच में अंधे होकर वे अपने पोते-पोतियों तक की परवाह नहीं करते। उन्हें धन-सम्पत्ति से बेदखल करके ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं।
ऐसी स्थिति में उसके पास अपने मायके जाने का विकल्प बचता है। परन्तु वहाँ भी भाई-भाभी इस महँगाई में अपना भरण-पोषण करने के लिए परेशान रहते हैं। फिर दो-तीन लोगों का अनावश्यक बोझ वे नहीं उठा पाते या उठाना ही नहीं चाहते। अत: वहाँ भी उन्हें ठौर नहीं मिल पाता।
जहाँ लड़क़ी को सम्हालने के लिए माता या पिता अथवा दोनों ही हैं वहाँ पर बात अलग होती है। आज इक्कीसवीं सदी में बहुत-सी लड़कियाँ शिक्षा ग्रहण करके अपने पैरों पर खड़ी हैं। वे तो कुछ हद तक परिस्थितियों को झेल लेती हैं। पर यदि किराए के मकान में रहना पड़ जाए तो फिर समस्याओं का अंबार लग जाता है।
बच्चे जब अपने जीवन में सेटल हो जाते हैं और तब यदि पति की मृत्यु होती है तो भी पत्नी के लिए सब कुछ इतना सरल नहीं होता। आजकल बहुत से स्वार्थी बच्चे ऐसे हैं जो अपनी असहाय माँ के विषय में नहीं सोचते। यदि माँ के नाम धन-संपत्ति हो तो लालच के कारण उसे सम्मान दे दिया जाता है। परन्तु यदि माँ के नाम पर कोई वसीयत नहीं की गई हो तो नालायक सब कुछ धोखे से हड़प कर लेते हैं।
अपनी ही जननी को धक्के खाने के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं। ये अपने माता-पिता के अहसानों को भी भूल जाते हैं। ऐसे बच्चे एहसान फरामोश होते हैं जो अपने माता-पिता के अहसानों को भी भूल जाते हैं।
पति-पत्नी दोनों ही थोड़ी समझदारी यदि दिखाएँ तो एक के जाने के बाद दूसरा असहाय अनुभव नहीं करता। इसलिए सभी सुधीजनों को उचित समय पर इस परेशानी से बचने का उपाय सोच लेना चाहिए।
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