हिन्दी मुस्काई
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
बरस बीतते एक दिवस तो
मेरी सुध आई
मन हिन्दी मुस्काई।
गिट-पिट बोलें घर बाहर सब
नाती और पोते
नन्ही स्वीटी रटती टेबल
खाते और सोते
खूब पार्टी घर में अम्मा
बैठी सकुचाई
मन हिन्दी मुस्काई!
ओढ़े बैठे अहंकार की
गर्द भरी चादर
मान करें मदिरा का छोड़ी
सुधामयी गागर
पॉप, रैप के संग डोलती
बेबस कविताई
मन हिन्दी मुस्काई!
अपनों में अपनापन लगता
झूठा- सा सपना
कहाँ छोड़ आए हो बोलो
स्वाभिमान अपना
गौरव गाथा दीन-हीन की
जग ने कब गाई
मन हिन्दी मुस्काई!
1 comment:
उत्तम सृजन सखी ..हार्दिक बधाई
Post a Comment