एक सवारी
- अंकुश्री
वह बहुत जल्दीबाजी में था।
तेजी
में
जब
टैक्सी
स्टैण्ड
पहुँचा
तो
आवाज
सुनाई
पड़ी, 'एक
सवारी, एक
सवारी।’ उसे
खुशी
हुई
कि
टैक्सी
की
सवारी
पूरी
हो
गई है, मात्र
एक
सवारी
के
लिए रुकी हुई
है।
उसके
बैठते
ही
टैक्सी
खुल
जाएगी, इसी विश्वास
के
साथ
उछल
कर
वह
टैक्सी
में
बैठ
गया।
आशा के विपरीत टैक्सी
में
उसके
बैठ
जाने
के
बाद
भी
टैक्सी
वाले
का
चिल्लाना
जारी
रहा, 'एक
सवारी, एक
सवारी...’
कुछ देर में एक और
व्यक्ति
आया
अैर
टैक्सी
में
सवार
हो
गया।
लेकिन
उसके
बावजूद
न
तो
टैक्सी
खुली
और
न
टैक्सीवाले
का
चिल्लाना
ही
बंद
हुआ।
लोग
एक-एक
कर
आते
गए और टैक्सी
में
सवार
होते
गए।
टैक्सी के सभी सवार जल्दी
में
थे।
एक
तो
जल्दीबाजी
के
कारण
वे
घबराए हुए थे, दूसरे
उनके
शरीर
का
कोई
न
कोई
अंग
किसी
न
किसी
यात्री
से
दबा
हुआ
था।
टैक्सी
में
टसमस
होने
तक
की
जगह
नहीं
बची
थी।
बेसब्री
और
परेशानी
के
कारण
सभी
यात्रियों
की
हालत
सोचनीय
होती
जा
रही
थी।
तभी
एक
और
सवारी
आकर
टैक्सी
में
बैठा।
उसके
बैठने
पर
सभी
यात्रियों
ने
राहत
की
साँस ली कि अब
टैक्सी
खुल
जाएगी.. लेकिन तभी
टैक्सी
वाला
फिर
चिल्लाया, 'एक सवारी, एक
सवारी...’
सम्पर्क: सिदरौल, प्रेस
कॉलोनी, पोस्ट
बॉक्स
28, नामकुम, रांची-834
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