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May 1, 2023

दोहेः साँसों का यह साज


 - रश्मि विभा त्रिपाठी

तुम बोलो सुनती रहूँ, मधुरिम ये आवाज।

तुमसे ही तो है सधा, साँसों का यह साज।।

2

तकिया तेरी बाँह का, थपकी देते हाथ।

मेरे सुख की नींद का, कारण तेरा साथ।।

3

मेरे दुख से हो दुखी, ढूँढा तुरत निदान।

पाया तेरे रूप में, ज्यों मैंने भगवान।।

4

उल्टा पड़ता आज तो,  लू का हर इक दाँव।

तेरा प्यार मुझे हुआ, वट की प्यारी छाँव।।

5

धन- दौलत, पद, नाम की, कैसी है दरकार।

मुझको बरकत दे रहा, तेरा पावन प्यार।।

6

घोर अँधेरे में धरे, रोज दुआ के दीप।

प्रेम तुम्हारा चाँद- सा, चमका सदा समीप।।

7

इसीलिए तो कट गए,  बाधाओं के जाल।

तुमने छोड़ा ही नहीं, मेरा कभी खयाल।।

8

कैसे मिलता है तुम्हें, मेरे मन का हाल।

दूरी अपने बीच की, धरती से पाताल।।

9

सरगम मेरी साँस की, छेड़ सुनाते राग।

तुमने मन का कर दिया, हरा- भरा यह बाग।।

10

करते हो नित नेम से,  मेरी खातिर जाप।

मीत मुझे लगता नहीं, तभी समय का शाप।।

11

चुभ सकता है क्या भला, मुझको कोई शूल।

मीत तुम्हारा प्यार ये, है पूजा का फूल।।


1 comment:

विजय जोशी said...

बहुत ही सुंदर भाव और उतनी ही सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई।