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May 1, 2023

जीवन दर्शनः बाधा तोड़ें सबको जोड़ें - पाँच उँगलियों का सिद्धांत

  - विजय जोशी -

 पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

जब कोई अपने हाथ में लेकर चला कुदाल
दुनिया को करना पड़ा उसका इस्तकबाल 
     किसी भी समाज में सब एक सी विचारधारा के नहीं होते हैं। यही विशिष्टता स्थिति को एकरसता से बचाती है। नेतृत्व की खूबी भी इसमें निहित है कि वह विभिन्न मानसिकता वाले लोगों को एक सूत्र में बाँध संस्था हित में उपयोग कर सके। यह कार्य आसान तो नहीं है पर सबको जोड़कर एक लक्ष्य की ओर प्रेरित कर पाने की कला सफल नेतृत्व की पहली सीढ़ी है। आरंभ में भले ही यह कार्य कठिन लगे पर थोड़े से धैर्य, समझदारी के साथ इसे परवान चढ़ाना आसान लगेगा एवं समय के साथ सब खुद ब खुद लक्ष्य प्राप्ति की ओर बढ़ चलेंगे बशर्ते उन्हें योगदान की सार्थकता का भरोसा दिलाया जा सके।
 - इस संदर्भ में एक नए सिद्धांत से सबसे पहले मुझे जिनके द्वारा परिचित कराया गया वे हैं जल प्रबंधन विशेषज्ञ एवं मैग्सेसे तथा जमनालाल बजाज पुरस्कार सम्मानित श्री राजेन्द्र सिंह जो ‘वाटर मैन ऑफ इंडिया’ नाम से प्रसिद्ध हैं। जल के लिये तरसते राजस्थान निवासी साथियों की पीड़ा उनसे देखी न गई तथा वे अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर भरी जवानी में जल सत्याग्रह यानी जल बचाओ के मिशन पर एकला चलो की तर्ज पर निकल पड़े। आज उन्हीं के प्रयत्नों का फल है कि कभी पानी के लिये तरसता भीकमपुरा क्षेत्र आज जल आप्लावित है। उन्हें इस कार्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। समाज में ऐसे कितने लोग हैं जो पारिवारिक सुख को त्यागकर ठेठ देहात में गाँव वालों के बीच एक असंभव से मिशन की मशाल थामे निकल पड़ते हैं।
 - मेरे लिये उनसे मिलना एक अद्भुत सुख का साधन बना। उनका यह सिद्धांत समय की कसौटी पर सिद्ध किया हुआ है। इसके तहत हम समाज में उपस्थित लोगों का वर्गीकरण हाथ की पाँचों उँगलियों से  इस प्रकार कर सकते हैं :- 
1. अँगूठा (Thumb) : कर्ता (Performer)
2. तर्जनी (Index) : सकारात्मक/सक्रिय (Positive/Proactive)
3. मध्यमा (Middle) : सकारात्मक/तटस्थ (Positive/neutral)
4. अनामिका (Ring) : अवसरवादी (Opportunist)
5. कनिष्ठा (Little) : नकारात्मक (Negative)
 1. अँगूठा उर्फ कर्ता
इसके तहत अँगूठा यानी कर्ता आप स्वयं है जिस पर जोड़ने की जिम्मेदारी है। सबको पहले प्रयत्न में ही जोड़ लेंगे यह संभव भी नहीं, लेकिन लक्ष्य प्राप्ति के लिये सबको साथ लेना भी जरूरी है। यह स्थिति विकट तथा धर्मसंकट वाली है। आपका ध्येय एक समरस टीम गठित करना है जो केवल आपकी सूझबूझ व धैर्य पर निर्भर है। अत: आप सबसे पहले अपने लक्ष्य को निर्धारित करते हुए उद्देश्य प्राप्ति के तरीके को ठीक से समझें। उसे अपने आचरण में उतारें ताकि पहले लोग आपके इरादों की ईमानदारी से सहमत हो सकें।
2. तर्जनी यानी सकारात्मक एवं अग्र सक्रिय :
 तर्जनी अँगूठे के साथ मिलकर एक नृत्य की मुद्रा को प्रकट करती है। समाज में कुछ लोग सकारात्मक सोच वाले होते हैं। पूरे जोश व होश के साथ किसी भी अच्छे कार्य में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने आतुर। उन्हें अधिक प्रेरणा की आवश्यकता भी नहीं होती। बस केवल उद्देश्य के महत्त्व से परिचित करा दीजिये, वे स्वत: आपके साथ आगे बढ़कर (Proactive) जुड़ जाएँगे। यही वर्ग आपके इरादों को ठोस नींव प्रदान कर सकता है। अत: दूसरों की चिंता किए बगैर इनको साथ लेकर अपना कार्य आरंभ कर दीजिए। यह सफलता की पहली सीढ़ी है।
3. मध्यमा अर्थात सकारात्मक, किंतु तटस्थः 
यह वह वर्ग है जो सकारात्मक (Positive) तो है पर अग्र सक्रिय (Proactive) नहीं। आम तौर पर ड्राइंग रूम में बैठकर मात्र चर्चा करने वाले लोगों को आप इस श्रेणी में रख सकते हैं। इनकी बुद्धि कुशाग्र होती है तथा किसी भी विषय पर विश्लेषण कर दूध व पानी अलग-अलग कर देने की क्षमता इस समूह में होती है। पर चूंकि इनमें पहल (Initiative) लेकर आगे बढ़ने की जिद नहीं होती, इसलिए आवश्यकता सिर्फ इस बात कि है कि इन्हें किसी प्रकार उत्साह बढ़ाकर उद्देश्य की मुख्यधारा में लाया जाए। चूँकि वे उद्देश्य की सार्थकता से सहमत हैं, अत: एक बार जुड़ गए, तो योगदान तो देंगे ही साथ ही बीच मार्ग में साथ छोड़कर वापस लौटेंगे भी नहीं।
4. अनामिका यानी अवसरवादीः  
यह वर्ग अवसरवादियों का समूह है जो स्वार्थ पूर्ति हेतु हमेशा मौके की ताक में रहता  है। जिधर बम उधर हम। जिधर सब उधर हम। एक बार इनकी मन:स्थिति समझ जाने पर न तो अधिक समय बर्बाद करना पड़ता है और न ही विशेष प्रयत्न। ये परावलंबी हैं और जैसे ही पहले दोनों वर्ग जुड़ते है, ये स्वत: जुड़ जाते हैं। बिल्कुल ऐसे जैसे इनसे अधिक समर्पित और इरादों का पक्का और कोई नहीं।
5. कनिष्ठा अर्थात् नकारात्मकः 
यह वर्ग मूलत: नकारात्मक (Negative) है, जो हर बात का विरोध करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है। यह भी एक तरह से अच्छा ही है कि हम आरंभ से इनसे दूर ही रहें। इन छिद्रान्वेषी तत्त्वों की तुलना आप चूहों से कर सकते हैं, जो खाते कम हैं और बर्बाद अधिक करते हैं। ध्यान से देखिए चूहे कभी भी बोरी ऊपर से काटकर अपनी भूख शांत नहीं करते; बल्कि नीचे से छेदकर सब बिखराते हैं। पर चूँकि समाज में सब एक दूसरे पर निर्भर हैं अत: अंत में कोई विकल्प न देखकर ये भी समूह में सम्मिलित हो जाएँगे और तब बन जाएगा एक सुगठित एवं संगठित समूह जो एक सर्वमान्य उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समर्पित होगा।
- इस उदाहरण से स्पष्ट है कि नेतृत्व को पूरी समझ, सहनशीलता का परिचय देते हुए विभिन्न विचारों व मानसिकता वाले लोगों को धैर्य के साथ एकजुट करना होगा। पांचों उँगली व अँगूठा एकमत होने पर मुट्ठी का स्वरूप प्राप्त कर लेते हैं, जो न केवल एकता का संदेश देती है; बल्कि कार्य संपन्नता हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति का भी।  इसे आम जन की भाषा में यों भी तो समझाया गया है कि बँधी मुट्ठी लाख की, खुल जाए तो खाक की। ■■
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com


39 comments:

देवेन्द्र जोशी said...

सफल नेतृत्व के लिए आवश्यक है कि सबको साथ लेकर एवं साध कर आगे बढ़े। एक अच्छा नेतृत्व स्वयं के ध्येय के प्रति समर्पित होकर ही आगे बढ़ता है। लोग स्वतः ही जुड़ने लगते हैं। जुड़ने वाले लोग कई प्रकार के हो सकते हैं। उन्हें साधने के लिए उपरोक्त वर्गीकरण उपयोगी पथ प्रदर्शक है। लेखक को गूढ विषय को आसानी से समझाने की अद्भुत प्रतिभा है ।

Anonymous said...

आदरणीय जोशी जी, पाँच उँगलियों के सिद्धांत की सरल शब्दों में अति सुन्दर व सटीक उपमा दी है आपने। देश के नेतृत्व से अपेक्षा है कि इस उदाहरण से सबक़ लेकर देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करे। शुभेच्छा सहित,
-वी.बी.सिंह
लखनऊ

Anonymous said...

Very nice description of the importance
of five fingers ....Vandana Vohra

Daisy C Bhalla said...

Fantastic correlation between God’s creation of giving us five fingers with important thumb as doer- and each finger relates to a persona distinct with different traits🙏🏼 The enigma of holding five fingers together as a fist to achieve target goals by leadership - has been explained vivid & with best.

प्रेम चंद गुप्ता said...

प्रबंधन का मूलभूत सिद्धांत अत्यंत सहज और सरल तरीके से अभिव्यक्त हुआ है। सबका साथ और सबका विकास ही वह मूल तत्व है जो सबको जोड़े रखता है।
राजेन्द्र जी ने इस सिद्धांत को भली भांति समझा और प्रयोग किया। आपने इस सिद्धांत को सर्वजन हिताय आलेख रूप में प्रस्तुत किया। अत्यंत सराहनीय और मूल्यवान।
बहुत बधाई।

Anil Markam said...

अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी इस लेख द्वारा मिलती है कि हमेशा एकजुट रहना कितना आवश्यक है। कहते है न पांचों उंगीलिया बराबर नहीं होती लेकिन सबकी अपनी अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं हमें अपने जीवन में उनकी विशेषताओं को एकजुट कर कार्य का निष्पादन करते रहना चाहिए।

Anonymous said...

An innovative narrative of 5 fingers . Very well constructed article.
S N Roy

Hemant Borkar said...

पिताश्री अत्यंत सरल शब्दों में आपने इस आलेख में समझाया कि पाँच उगलियाँ बराबर नहीं होती है लेकिन जब ये एक मुट्ठी का रूप लेती है तो कोई भी काम आसान हो जाता है। पिताश्री above all each of your writeup teaches us many traits that are important in our day to day life. Warm regards wit lots of love पिताश्री. 🙏

Anonymous said...

वाह, बहुत बढ़िया सर। पाँचों अंगुलियों की स्वयं की विशेषताएँ और फिर उनको जोड़कर बनी मुट्ठी (टीम) को आपने बख़ूबी समझाया है। ऐसे ही व्यावहारिक जीवन में, वो चाहे कार्यालय हो या एक परिवार, एक टीम में सभी विशेषताओं का जब एकजुट होकर मिश्रण होता है तो सफलता को कोई नहीं रोक सकता।

निशीथ खरे

Anonymous said...

पाँचों उँगलियों की क्षमता अलग-अलग होती है. किन्तु किसी कार्य को कम से कम समय में पूर्ण शक्ति के साथ निर्वहन के लिये पाँचों उँगलियों को एक साथ रहकर कार्य करने का संदेश मस्तिष्क (नेतृत्व) के द्वारा मिलता है. किसी भी कार्य या टीम का उद्देश्य एवं नेतृत्व अच्छा है तो निश्चित ही पाँचों उँगलियाँ मिलकर ही कार्य करेंगी और अपने उद्देश्य में सफल भी होंगी. कोई भी व्यक्ति स्थायी रूप से Negative या Positive नहीं होता. परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति के विचार बदलते रहते हैं.

विजय जोशी said...

बिल्कुल सही कहा आपने. उदारता नेतृत्व का सबसे पहला गुण है. पहल भी समूह के प्रथम पुरुष को ही करना चाहिये. आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

आप तो लखनऊ नगर के आदर्श नुमाइंदे हैं साक्षात. सरल तथा सज्जन. हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

सिंह साहब, आपकी सरलता का तो मैं सदा से कायल हूं. हार्दिक धन्यवाद सहित सादर

विजय जोशी said...

Dear Vandana, Thanks very much. Regards

विजय जोशी said...

Dear Daisy, I'm aware about your passion for good and value added reading. Thanks very much. Regards

विजय जोशी said...

Dear Hemant, everyone is a leader unless he or she doesn't supress basic trait. Thanks very much. With affection

विजय जोशी said...

प्रिय निशीथ, भोपाल यूनिट तो सदा से लीडरशिप का अनूठा उदाहरण रही है. हम सब इसके साक्षात प्रत्यक्षदर्शी हैं. हार्दिक आभार सहित सस्नेह

विजय जोशी said...

Thanks very very much sir for the encouragement. Kind regards

विजय जोशी said...

प्रिय अनिल, हम सबने पारिवारिक वातावरण में साथ में काम किया है. हार्दिक धन्यवाद सहित. सस्नेह

विजय जोशी said...

आ. गुप्ता जी, यही तो जीवन प्रबंधन का भी सूत्र है. परहित से सुख का सोपान. हार्दिक आभार सहित सादर

Anonymous said...

बहुत ही अच्छे उदाहरण के साथ आपने उचित व्याख्या की.. बधाई आदरणीय सर 💐🙏🏼

Mahesh Manker said...

सर,
"एकता एवम् कार्य संपन्नता हेतु दृढ़ इच्छा शक्ति",अति उत्तम लेख !

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद प्रिय महेश सस्नेह

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार मित्र

Mandwee Singh said...

सादर प्रणाम आदरणीय
सदा की तरह देर से प्रतिक्रिया देने की आदत को सुधार नहीं पा रही हूं।परंतु इसके पीछे कारण है आपके आलेख को दो -तीन बार पढ़कर समझने की ।आलेख पढ़ते समय वह क्षण जीवंत हो गया जब पूरी डॉक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से आदरणीय राजेंद्र सिंह जी ने राजस्थान में पानी की समस्या और योगदान का खाका खींचा था।दो -तीन बार अलग - अलग स्थानों पर उनके व्याख्यान का सुअवसर भी आपके सौजन्य से प्राप्त हुआ था।प्रबंधन के गुर इस प्रकार सरल और सहज भाव से आपकी लेखनी खूब कमाल तरीके से सिखाती हैं।आत्मिक आभार।
सादर

Sk Agrawal said...

सुन्दर, अति सुंदर
जय श्रीरामजी

Sharad Jaiswal said...

आदरणीय सर,
सफल नेतृत्व के मूलभूत सिद्धांत को समझाता हुआ अति उत्तम लेख । अत्यंत सरल शब्द, उत्कृष्ट उदाहरण, अनुकरणीय ।
धन्यवाद ।

सुरेश कासलीवाल said...

जोशी जी, आपने सभी मानवी गुणो को पांच उंगलियों के दृष्टांत में बड़े ही सरलता से समझाया है।एक विचार मन में आया है,कि जैसा अंगुठा मोटा होता है, कर्ता को भी सशक्त होना चाहिए।और कनिष्ठिका छोटी, पतली होती है, तों नकारात्मकता भी दुनिया में कम होना चाहिए। शायद यही कारण रहा होगा जिससे मानव संस्कृति ने अनादि काल से इतनी प्रगति की है।

विजय जोशी said...

प्रिय शरद, हार्दिक धन्यवाद। सस्नेह

विजय जोशी said...

आ. कासलीवाल जी, बिल्कुल सही व्याख्या की आपने। नेतृत्व का सशक्त होना तो पहली शर्त है। हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार मित्र श्रीकृष्ण

विजय जोशी said...

प्रिय मांडवी, समय के संकट के बीच पढ़ती ही हो यही मेरे लिये सुख का सोपान है। राजेंद्रजी जैसे व्यक्तित्व तो देवदूत सदृश्य हैं। मिलने मात्र से जीवन में कुछ अच्छा करने की उमंग की गंगा मन में प्रवाहित होने लगती है। शीघ्र अवसर मिलेगा। इन्हें फिर एक बार आमंत्रित करने की योजना बन रही है। सस्नेह।

Vijendra Singh Bhadauria said...

Sir you have literally explained the complete essence of leadership so easily.. Hats off to you.

विजय जोशी said...

Dear Vijendra, Thanks very very much..

Anonymous said...

🙏☺️

Anonymous said...

Thank U Sir. I m fond of good reading n always like to react with the essence about the learning to b imbibed.! I see You always have apt remarks on all posts🙏🏼

Anonymous said...

I always enjoyed your wisdom.

रामगोपाल ठाकुर said...

बहुत प्रेरणास्पद

रामगोपाल ठाकुर said...

बहुत प्रेरणादायक