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Mar 1, 2023

कविताः 20 मार्च गौरैया दिवस - नीड़ बना ले


- शशि पाधा

अरी गौरैया, चुग ले दाना

जब तक रहते खेत हरे।

 

देर नहीं जब इन खेतों में

कंकर-पत्थर बिछ जाएँगे

गगन चूमते भवन मंजिलें

धूमिल बादल मँडराएँगे

अरी  गौरैया, नीड़ बना ले

जब तक दिखते पेड़ हरे।

 

जंगल-पर्वत, बाग़- बगीचे

पोखर- झरने कल की बात

न आँगन, न लटके छींके

न तसला, न नेह परात

अरी गौरैया प्यास बुझा ले

जब तक नदिया नीर बहे

 

सुनसुन तेरी चहक-कुहकुही

आँख खुली थी धरती की

पत्ती-पत्ती डाली- डाली

छज्जा-खिड़की हँसती सी

अरी गौरैया, जी भर जी ले

जब तक निर्मल पवन बहे।

1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

जंगल-पर्वत, बाग़- बगीचे
पोखर- झरने कल की बात
न आँगन, न लटके छींके
न तसला, न नेह परात....बहुत सुंदर गीत।