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Jun 1, 2022

प्रकृतिः हवाएँ हुईं आवारा


- प्रमोद भार्गव

हवाएँ जब आवारा होने लगती हैं तो लू का रूप लेने लग जाती हैं। लेकिन हवाएँ भी भला आवारा होती हैं ? वे तेज, गर्म व् प्रचंड होती हैं। जब प्रचंड से प्रचंडतम होती हैं तो अपने प्रवाह में समुद्री तूफ़ान और आँधी बन जाती हैं। सुनामी जैसे तूफ़ान इन्हीं आवारा हवाओं के दुष्परिणाम हैं। इसके ठीक विपरीत ठंडी और शीतल भी होती हैं। हड्डी कंपकंपा देने वाली हवाओं से भी हम रूबरू होते हैं। लेकिन आजकल आवारा पूंजी की तरह हवाएँ भी आवारा व्यक्ति की तरह समूचे उत्तर भारत में मचल रही हैं. तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुँच गया है, जो लोगों को पस्त कर रहा है। अतएव हरेक जुबान पर प्रचंड धूप और गर्मी जैसे बोल आमफहम हो गए हैं। हालाँकि लू और प्रचंड गर्मी के बीच भी एक अंतर होता है। गर्मी के मौसम में ऐसे क्षेत्र जहाँ तापमान, औसत तापमान से कहीं ज्यादा हो और पांच दिन तक यही स्थिति यथावत बनी रहे तो इसे ‘लू’ कहने लगते हैं। मौसम की इस असहनीय विलक्षण दशा में नमी भी समाहित हो जाती है। यही सर्द-गर्म थपेड़े लू की पीड़ा और रोग का कारण बन जाते हैं। किसी भी क्षेत्र का औसत तापमान, किस मौसम में कितना होगा, इसकी गणना एवं मूल्यांकन पिछले 30 साल के आँकड़ो के आधार पर की जाती है। वायुमंडल में गर्म हवाएँ आमतौर से क्षेत्र विशेष में अधिक दबाव की वजह से उत्पन्न होती हैं। वैसे तेज गर्मी और लू पर्यावरण और बारिश के लिए अच्छी होती हैं। अच्छा मानसून इन्हीं आवारा हवाओं का पर्याय माना जाता है, क्योंकि तपिश और बारिश में गहरा अंतर्सम्बंध है।

धूप और लू के इस जानलेवा संयोग से कोई व्यक्ति पीड़ित हो जाता है, तो उसके लू उतारने के इंतजाम भी किए जाते हैं। दरअसल लू सीधे दिमागी गर्मी को बढ़ा देती है। अतएव इसे समय रहते ठंडा नहीं किया तो यह बिगड़ा अनुपात व्यक्ति को बौरा भी सकता है। वैसे शरीर में प्राकृतिक रूप से तापमान को नियंत्रित करने का काम मस्तिष्क में ‘हाइपोथैलेमस’ अर्थात ‘अधश्चेतक’ क्षेत्र करता है। इसका सबसे मत्त्वपूर्ण कार्य पीयूष ग्रंथि के माध्यम से तंत्रिका तंत्र को अंतःस्रावी प्रक्रिया के माध्यम से तापमान को संतुलित बनाए रखना होता है। इसे चिकित्सा शास्त्र की भाषा में हाइपर-पीरेक्सिया कहते हैं। यानी शरीर के तापमान में असमान वृद्धि या अधिकतम बुखार का बढ़ जाना। इसकी चपेट में बच्चे और बुजुर्ग आसानी से आ जाते हैं।

बाहरी तापमान जब शरीर के भीतरी तापमान को बढ़ा देता है, तो हाइपोथैलेमस तापमान को संतुलित बनाए रखने का काम नहीं कर पाता। नतीजतन शरीर के भीतर बढ़ गई अनावश्यक गर्मी बाहर नहीं निकल पाती है, जो शरीर में लू का कारण बन जाती है। इस स्थिति में शरीर में कई जगह प्रोटीन जमने लगता है और शरीर के कई अंग एक साथ निष्क्रियता की स्थिति में आने लग जाते हैं। ऐसा शरीर में पानी की कमी यानी डी-हाईड्रेशन के कारण भी होता है। दोनों ही स्थितियां जानलेवा होती है। इस स्थिति के निर्माण हो जाने पर बुखार उतारने वाली साधारण गोलियां काम नहीं करती हैं। क्योंकि ये दवाएँ दिमाग में मौजूद हाइपोथैलेमस को ही अपने प्रभाव में लेकर तापमान को नियंत्रित करती हैं। जबकि लू में यह स्वयं शिथिल होने लग जाता है।

ऐसे में यदि पानी कम पीते हैं तो हालात और बिगड़ सकती है, इसलिए पानी और अन्य तरल पदार्थ ज्यादा पीने की जरूरत बढ़ जाती है। रोग-प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन लू को नियंत्रित करता है। लू लगे ही नहीं इसके लिए जरूरी है कि गर्मी के संपर्क से बचें और हल्के रंग के सूती कपड़े या खादी के वस्त्र पहने। सिर पर स्वाफी (तौलिया) बांध लें और छाते का उपयोग करें। आम का पना, मट्ठा, लस्सी, शरबत जैसे तरल पेय और सत्तू का सेवन लू से बचाव करने वाले हैं। ग्लूकोज और नींबू पानी भी ले सकते हैं।

हवाएँ गर्म या आवारा हो जाने का प्रमुख कारण ऋतुचक्र का उलटफेर और भूतापीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) का औसत से ज्यादा बढ़ना है। इसीलिए वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि इस बार प्रलय धरती से नहीं आकाशीय गर्मी से आएगी। आकाश को हम निरीह और खोखला मानते हैं, किंतु वास्तव में यह खोखला है नहीं। भारतीय दर्शन में इसे पाँचवाँ तत्व यूँ ही नहीं माना गया है। सच्चाई है कि यदि परमात्मा ने आकाश तत्व की उत्पत्ति नहीं की होती, तो संभवतः आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। हम श्वास भी नहीं ले पाते। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारों तत्व आकाश से ऊर्जा लेकर ही क्रियाशील रहते हैं। ये सभी तत्व परस्पर परावलंबी हैं। यानी किसी एक तत्व का वजूद क्षीण होगा तो अन्य को भी छीजने की इसी अवस्था से गुजरना होगा। प्रत्येक प्राणी के शरीर में आंतरिक स्फूर्ति एवं प्रसन्नता की अनुभूति आकाश तत्व से ही संभव होती है, इसलिए इसे बह्मतत्व भी कहा गया है। अतएव प्रकृति के सरंक्षण के लिए सुख के भौतिकवादी उपकरणों से मुक्ति की जरूरत है। क्योंकि हम देख रहे हैं कि कुछ एकाधिकारवादी देश एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भूमंडलीकरण का मुखौटा लगाकर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से दुनिया की छत यानी ओजोन परत में छेद को चौड़ा करने में लगे हैं। यह छेद जितना विस्तृत होगा वैश्विक तापमान उसी अनुपात में अनियंत्रित व असंतुलित होगा। नतीजतन हवाएँ ही आवारा नहीं होंगी, प्रकृति के अन्य तत्व मचलने लग जाएँगे।

सम्पर्कः शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224, 9981061100

2 comments:

Anonymous said...

महत्वपूर्ण जानकारी देता सुंदर आलेख। सुदर्शन रत्नाकर

नीलाम्बरा.com said...

सुंदर जानकारी