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Jun 1, 2022

लघुकथाः वो तुम न थी

- सुमन युगल

हम लोग कैफेटेरिया में घुसे तो सामने की टेबल पर बैठे एक सज्जन पर दृष्टि ठहर गई सुंदर, सौम्य, शांत, सरल  चेहरे पर शिशुओं जैसी स्निग्धता हलकी घुंघराली दाढ़ी और वैसे ही बाल कुल जमा एक मनहर छवि,चेहरे का आभामंडल भी देखते ही बनता था।

निश्चित रूप से वे या तो कोई कलाकार थे या दार्शनिक शून्य में अपलक निहारते।  मानो सारे रहस्यों से आज ही पर्दा उठा देंगे एक बार मन हुआ कि एक इंस्टेंट फोटो ले लिया जाए पर यह शिष्टाचार की श्रेणी में न आता था ।

कुछ देर बाद कोने की मेज़ पर एक सांवली, सलोनी युवती आकर बैठ गई अब उन दार्शनिक सरीखे दिखने वाले सज्जन की दृष्टि शून्य से हटकर उस सलोनी युवती पर आकर ठहर गई ...अपलक अनथक।

 शायद वे त्राटक क्रिया के अनुभवी अभ्यासी भी थे। कुछ देर बाद वह युवती तेज़-तेज़ चलकर आई और लगी बरसने दार्शनिक महोदय पर-

ऐ मिस्टर !

क्यों घूर रहे हो ?’

इतनी देर से क्या देखे जा रहे हो?’

 " ऐटीकेटस् नाम की भी कोई चीज़ होती है आखिर ! "

ब्लैब -ब्लैब... !

लड़की थी या राजधानी एक्सप्रेस!

चार सौ शब्द प्रति मिनट की रफ्तार।

दार्शनिक महोदय ने दृष्टि ऊपर उठाकर शांत और सधे शब्दों में कहा-

वो तुम न थी कल्याणी

मैं कौने में बैठी जिस लड़की को देख रहा था | वह निहायत सौम्य, सरल, शांत ,सलोनी और सहृदय दिख रही थी

लड़की चिल्लाई -, ‘वो मैं ही थी

मैं ही बैठी थी वहाँ

 ‘न!वो तुम न थी ! यह कहते हुए उन सज्जन ने एक गहरी साँस छोड़ी और आँखें बंद कर ली ।

लड़की कुछ सेकेंड बड़बड़ाई और फिर पैर पटकती हुई चली गई ।

संप्रति : भावातीत ध्यान शिक्षिका, अभिरुचि : पठन -पाठन, लेखन : तुकांत -अतुकांत कविताएँ, लघुकथा, कहानी, लघु नाटक, निबंध। 

1 comment:

Anonymous said...

Sunder rachna