उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jan 1, 2022

कविताः भोर की लालिमा में

- डॉ. कविता भट्ट

जब वो हँसता है ना;

तो लगता है जैसे -

असंख्य गुलाबी फूल

भोर की लालिमा में

स्नान कर; हो गए हों-

और भी सुकुमार !

जैसे रजनीगंधा ने

बिखेरी हो सुगन्ध

आँचल की अपने!

जैसे मोती- भरे सीप

भर लाई षोडशी लहर

किनारे पर उड़ेल गई!

या प्रेयसी ने पसारी हों

अपनी प्रतीक्षारत बाहें!

चुप से रहने वाले उस

गम्भीर प्रेमी के लिए

जिसे मुक्त पवन भी

न कर सकी हो स्पर्श।

2 comments: